Posts

Featured Post

मध्य प्रदेश के सीधी में हुई घटना में जरूरी था कार्रवाई, यूसीसी से है सीधा संबंध

Image
जब से यूसीसी की चर्चा शुरू हुई है तब से पीएम मोदी आदिवासी के पक्ष में बयान देते नजर आ रहे हैं। इसका उदाहरण आपको उनके ट्वीट और भाषण में दिख जाएगा। इस बिल को लेकर अगर किसी में नाराजगी है तो वो आदिवासी समाज ही है। आदिवासी समाज ही इस बिल का विरोध कर रहा है। यहां तक छत्तीसगढ़ और झारखंड सरकार भी विरोध जाता चुकी है।  आदिवासियों का अपना नियम कानून और संविधान होता है। वो अपने दायरे में ही सीमित रहना पसंद करते हैं। बीजेपी अपने मेनोफेस्टो में कह चुकी है कि वह यूसीसी लेकर आएगी और वह लेकर आ रही है। उन्हें पता है कि कहां विरोध होगा और कहां समर्थन मिलेगा। इसी वजह से द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाया गया है ताकि आदिवासी समाज में विरोधाभास कम हो जाए। एक तरफ जहां बीजेपी आदिवासी समाज को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है। वहीं, मध्यप्रदेश में हुई इस घटना (पेशाब कांड) को कैसे बर्दास्त कर सकती है। वह चाहे बीजेपी कार्यकर्ता हो या कोई और कार्रवाई तो जरूरी था। आखिर बीजेपी की साख का सवाल था। इस कार्रवाई से एक संदेश जा रहा है कि मध्य प्रदेश सरकार और बीजेपी आदिवासी के साथ है। इसपर अपन

कुंभ कथा-5: अपने नंबर पर आए और कुंभ में गंगा नहाए देवी-देवता

कोरोना वायरस के संक्रमण की चुनौतियों के बीच हुए हरिद्वार कुंभ में गंगा नहाने आए श्रद्धालुओं के लिए तरह-तरह की पाबंदियां थी। हरिद्वार आने के लिए सबसे पहले तो श्रद्धालुओं के पास कोरोना की नेगेटिव रिपोर्ट होनी चाहिए थी और उसके बाद हरिद्वार में हरकी पैड़ी तक पहुंचने के लिए कड़ी मशक्कत का सामना करना पड़ रहा था। जिन दिनों में शाही स्नान पड़ रहे थे, उन दिनों आम श्रद्धालुओं के लिए हरकी पैड़ी को बंद कर दिया गया था। शाही स्नान के दिन हरकी पैड़ी पर केवल अखाड़े स्नान कर सकते थे। अखाड़ों  के साधुओं के लिए स्नान का क्रम तय किया गया था। यानी सबसे पहले किस अखाड़े के संत स्नान के लिए जाएंगे और कितनी देर हरकी पैड़ी पर स्नान कर सकेंगे यह सब कुछ मेला प्रशासन ने तय कर दिया था। महाशिवरात्रि पर पहले शाही स्नान में सबसे पहले जूना अखाड़े के संतों ने स्नान किया था और 12 तथा 14 अप्रैल को हुए शाही स्नान में सबसे पहले श्री निरंजनी अखाड़े के संतों ने हरकी पैड़ी पर गंगा में डुबकी लगाई।  हम सब जानते हैं कि सभी तेरह अखाड़ों के लिए स्नान का क्रम निर्धारित था लेकिन आपको जानकर आश्चर्य हो सकता है कि अखाड़ों की तरह ही कुंभ

कुंभ कथा -4 :एक फोन कॉल और कुंभ मेले का विसर्जन

हरिद्वार में कुंभ एक अप्रैल से शुरू हुआ था। 16 अप्रैल आते आते हरिद्वार में कोरोना का कहर दिखना शुरू हो गया था।हर रोज कोरोना के 500- 600 या इससे भी अधिक पॉजिटिव मामले सामने आने लगे। हालांकि इसके पीछे कुंभ के चलते हरिद्वार में टेस्टिंग बढ़ाया जाना एक बड़ी वजह रही। ज्यादा टेस्टिंग हुई तो कोरोना के पॉजिटिव केस भी ज्यादा आने लगे। बहरहाल पूरे देश में यह बात फैल गई कि हरिद्वार कुंभ कोरोना का बड़ा संवाहक बन रहा है। राजनेताओं ने हरिद्वार कुंभ में कोरोना के संक्रमण फैलने को लेकर विवादित बयान दिए तो सोशल मीडिया पर भी कुंभ और कोरोना को लेकर चटकारे लिए जाने लगे। हरिद्वार से लौटने वाले लोगों को कोरोना के संभावित संवाहक के तौर पर देखे जाने लगा। सोशल मीडिया पर तो एक मैसेज खूब वायरल हुआ जिसमें कहा गया कि हरिद्वार से लौटे लोगों से दूरी बनाकर रखें, नहीं तो लोटे(अस्थियां) में हरिद्वार जाना पड़ेगा। संतों के बीच से भी कुंभ मेले को समय से पहले संपन्न किए जाने की बात उठने लगी थी। लेकिन अखाड़ों का एक धड़ा इसका प्रबल विरोध कर रहा था। श्री निरंजनी और आनंद अखाड़े ने 15 अप्रैल को घोषणा कर दी थी कि उनकी ओर से कुंभ

कुंभ कथा-3: बेटी की उम्र और कुंभ का अंतराल

बेटी व्याख्या का जन्म वर्ष 2010 में हुआ था। उस वर्ष हरिद्वार में कुंभ मेला लगा था। 2021 में कुंभ मेला आया तो बेटी 11 साल की हो चुकी है। बेटी ने कुंभ मेले के बारे में पूछा तो मैंने बताया कि हरिद्वार में  हर 12 साल बाद कुंभ पर्व आता है।इस पर बेटी ने सवाल किया कि जब  कुंभ वर्ष में उसका जन्म हुआ था तो इस कुंभ में वह 12 साल की क्यों नहीं है? मैंने बेटी को बताया कि इस बार कुंभ 11 साल में पड़ रहा है।इस पर बेटी ने कारण पूछा। दरअसल यह केवल मेरी बेटी का सवाल नहीं है बल्कि बहुत सारे लोग हैं जो 11 साल बाद कुंभ पर्व आने का कारण जानना चाहते हैं।  कुछ लोगों को छोड़ दें तो अधिकतर लोग निर्धारित अवधि से एक साल पहले कुंभ पर्व आने पर आश्चर्य जताते हैं। आइए इस एक साल के अंतर को समझते हैं। कुंभ पर्व का योग वैसे तो प्रत्येक 12 साल बाद बनता है मगर इस बार यह ग्रह योग 11 साल बाद बना है। कुंभ  गुरु बृहस्पति की गति पर निर्भर करता है जोकि कुंभ के बाद12 राशियों के ऊपर से गुजरते हुए 12वें साल में पुनः कुम्भ राशि मे प्रवेश करते हैं। इसका सीधा सा अर्थ है कि गुरु लगभग 1 वर्ष तक एक राशि मे रहते हैं और वापस उसी राशि मे आ

कुंभ कथा-2: महिलाएं और नागा

पिंडदान कर 200 महिलाएं बनेंगी नागा संन्यासी.. जैसे ही यह खबर वरिष्ठ पत्रकार और प्रोफेसर डॉ सुशील उपाध्याय ने पढ़ी तो उनका मैसेज आया कि भाई महिलाएं नागा कैसे बन जाएंगी? चूंकि यह स्टोरी मैंने की थी इसलिए जवाब भी तैयार था। दरअसल 2021 के हरिद्वार कुंभ में जूना अखाड़े की ओर से 200 महिलाओं को नागा संन्यासी के तौर पर दीक्षित किया गया। इससे पहले कुंभ मेलों में अधिकतर लोग नागा साधुओं का शाही स्नान देख सुन चुके हैं लेकिन महिला नागा संन्यासियों के बारे में अभी भी अधिकतर लोग अनजान ही हैं। हमने भी कुंभ मेले की रिपोर्टिंग करते हुए ही नागा संन्यासियों के बारे में जाना- समझा। महिला नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया गोपनीयता के साथ पूरी की जाती है। संन्यासियों के सबसे बड़े अखाड़ों में शुमार श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े के माईवाड़ा में महिला संन्यासियों का संन्यास दीक्षा कार्यक्रम हुआ था। नागा संन्यासी बनाने की प्रक्रिया काफी लंबी होती है और यह करीब 24 घंटे चलती है।सबसे पहले महिला नागा संन्यासियों की मुण्डन प्रक्रिया होती है। इस प्रक्रिया के दौरान अखाड़े के माईबाड़ा की पदाधिकारी मौजूद रहती हैं। महिला संन्

कुंभ कथा-1: कुंभ और काले घोड़े की नाल

हरिद्वार पहुंचने के बाद श्रद्धालुओं का सबसे पहला उद्देश्य हरकी पैड़ी पर गंगा स्नान होता है। हालांकि 2016 के अर्द्धकुंभ और 2021 के कुंभ मेले में हरिद्वार शहर में गंगा किनारे अनेक नए घाट बनाए गए हैं। लेकिन इन पर ज्यादातर स्थानीय लोग ही स्नान करते हैं बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की पहली पसंद हरकी पैड़ी होती है। अगर किसी प्रशासनिक बंधन के चलते हरकी पैड़ी तक पहुंचने में बाधा आती है,तभी बाहर से आने वाले श्रद्धालु अन्य गंगा घाटों पर स्नान करते हैं। हरकी पैड़ी पर गंगा स्नान के बाद यात्री आसपास के बाजारों में खरीदारी करते हैं। हरकी पैड़ी के आसपास के बाजारों में पूजा पाठ का सामान, रत्न और नग आदि की खूब बिक्री होती है। कुंभ की रिपोर्टिंग के सिलसिले में हरकी पैड़ी के आसपास के बाजार में घूम रहा था। इस बीच कई व्यापारियों से बात हुई। जिज्ञासावश पूछा कि इस बार कुंभ में आने वाले श्रद्धालु किस चीज की ज्यादा डिमांड ज्यादा कर रहे हैं। जानकार आश्चर्य हुआ कि अन्य दिनों की अपेक्षा इस बार बाहर से आने वाले श्रद्धालु काले घोड़े की नाल और उससे बने छल्लों के बारे में कुछ ज्यादा पूछ रहे हैं। सूचना विभाग के सह

आकाशदीप शुक्ला से अस्तित्व तक पहुंचने का आधार है 'आखर'

Image
आकाश दीप शुक्ला यूँ तो पेशे से पत्रकार हैं, लेकिन साहित्य के गलियों में भी उनकी चर्चा आम है. यहां उनकी पहचान अस्तित्व के तौर पर है. अस्तित्व के नाम से लिखने वाले लेखक की किताब 'आखर' ने पाठकों को खूब लुभाया. विश्व पुस्तक मेले से लेकर सोशल मीडिया तक आज आकाश की पहचान 'अस्तित्व' में बदल चुकी है. हर वर्ग की उम्र के इस पसंदीदा लेखक ने लोगों के साथ जुड़कर एक नयी दिशा को अस्तित्व दिया. यूपी के रहने वाले आकाश ने एक बातचीत के दौरान अपनी इन दो पहचानों के बारे में बात की.  नज्म, शायरी और गजलों को कहने सुनने वाले आकाश यानी कि अस्तित्व एक कहानीकार भी हैं. उनकी लिखी कई कहानियां ना सिर्फ फिल्म बनकर सामने आयीं बल्कि कई मौकों पर सुनाई भी गयीं. अस्तित्व कहते हैं कि कहानीकार होना उनके लिए सम्पूर्णता का भाव है. बतौर पत्रकार जहां उन्हें अनगिनत कहानियां मिलती हैं वहीं उनके भीतर का एक सजीदा आदमी उन्हीं कहानियों को संजोता रहता है. ऐसे में कई बार उनके लिए एक पत्रकार और एक कहानीकार होना मुश्किल भी हो जाता है. अस्तित्व से एक बातचीत में उन्होंने बताया कि बतौर पत्रकार वो कई दफा ऐसी कहा

फिल्म रिव्यू : कागज़ पर मृत बने व्यक्ति की जीवंत कहानी दर्शाती फिल्म

Image
अगर कानून ने बिना अपराध के हमको मौत की सजा दे दी है, तो थोड़ा अपराध करके जिंदा होने का कोशिश कर लेते हैं. जी5 पर रिलीज हुई कागज फिल्म इस डायलॉग के साथ टर्न ले लेती है, जब एक आम आदमी व्यवस्थापिका से अपने हक की लड़ाई लड़ता है। चिट्ठियों पर चिट्ठी लिखकर जब उसे लगता है कि वह हारने वाला है, तो वह जीतने के लिए अपराध तक के लिए खुद को तैयार कर लेता है। कागज पूरी तरह गंवई कहानी है, जहां घरेलू संपति हड़पने के चक्कर एक इंसान को कागज पर मृतक घोषित कर दिया जाता है। उसे भनक तक नहीं होती है। फिर वह सिस्टम से ही जब मदद मांगने जाता है, तब पता चलता है कि उसे तो कागज पर मृतक बना दिया गया है। इसके बाद शुरू होती है, उसकी लड़ाई, सिस्टम से न्याय मांगने और हड्डी मांस के ढांचे को एक नाम देकर कागज पर जीवित घोषित करवाने की। हालांकि कागज की कहानी सत्तर से अस्सी दशक के आसपास गढ़ी गई है, पर जमीनी स्तर पर हालात अभी बदले नहीं हैं। मसलन आज भी तहसील में जन्म मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने के लिए सौ - दो सौ रुपए आसानी से लोग दे देते हैं। आप भले अंतरराष्ट्रीय कंपनी में काम करते हों, या उच्चाधिकारी हों, पर आम आदमी की परेशानी

ध्यान करने से मिलती है मानसिक शांति

Image
जीवन में योग का बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान है। स्वस्थ रहने के लिए योग, प्राणायाम और ध्यान तीनों का समन्वय जरूरी है। योग और प्राणायाम से शरीर और ध्यान से मस्तिष्क स्वस्थ रहता है। पिछले दिनों लॉकडाउन की वजह से घरों में बंद होने के कारण लोगों को कई मानसिक विकृतियों का सामना करना पड़ा। इस स्थिति में लोगों के सामने डिप्रेशन समेत कई परिस्थितियां सामने आयी जिसे लोगों को झेलना मुश्किल हो गया। इस स्थिति से बचने के लिए जरूरी है कि वो ध्यान करें और मानसिक विकृतियों को दूर करें। यदि आप जीवन में उत्साह की कमी महसूस कर रहे हैं और आपकी भावनात्मक समस्याएं आपके काम पर असर डाल रही है तो आपको ध्यान अवश्य करना चाहिए। आपके दैनिक जीवन की समस्याओं को संभालने के लिए ध्यान बहुत आवश्यक है। क्या है ध्यान? ध्यान एक प्रकार की क्रिया है, जिसमें इंसान अपने मन को चेतन की एक विशेष अवस्था में लाने की कोशिश करता है। इसमें अपने मन को शांति देने से लेकर आंतरिक ऊर्जा या जीवन-शक्ति का निर्माण करना हो सकता है, जो हमारी जिंदगी में सकरात्मकता और खुशहाली लाती है। कैसे करें ध्यान? सबसे पहले शांत चित्त होकर शरीर ढीला करके बिल्कुल सी

पुस्तक अंश: सर्पीली पहाड़ी रास्तों पर चलकर लग रहा था जैसे मुथा नदी लुका-छिपी का खेल खेल रही हो

Image
चलते–चलते रास्ते में हमारे दाएं हाथ पर एक साइन बोर्ड लगा था, लिखा था ‘फर्स्ट कोर्ट’। यह जगह लवासा एंट्री गेट से कोई दो–ढाई किलोमीटर रही होगी। कुछ और आगे गए तो एक और साइन बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था ‘सेकेंड कोर्ट’। ये नाम अपने आप में कुछ बताने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन मेरी समझ से बाहर थे। बाद में पता चला कि वहाँ के पॉश रेसिडेंशियल इलाक़ों के नाम हैं। अभी कोई दो सौ मीटर आगे ही गए थे कि दाएँ हाथ पर ‘हेलिपैड’ का साइन बोर्ड दिखाई पड़ता है। रास्ते में एक घुमावदार टर्न पर सड़क के दाईं ओर गुलाबी रंग के फूल, झाड़ियाँ और पेड़ दिखाई पड़े। यों तो सड़क पर फूल, पत्ती और पेड़ों का मिलना कोई विचित्र बात नहीं लेकिन हरी–हरी झाड़ियों पर लगे वह गुलाबी फूल, हरा–भरा छितराया हुआ सा वह पेड़, वह साफ़–सपाट सर्पीली सड़क और कार के अंदर से देखने पर वह पूरा दृश्य दीवार पर लगी उस तस्वीर की तरह लग रहा था जिसे बड़े प्यार से एक सुंदर फ्रेम में लगाया गया हो। जैसे–जैसे आगे बढ़ रहे थे, वैसे–वैसे उस अदभुत स्थान को देखने की जिज्ञासा अपने चरम की ओर अग्रसर थी। अब हम शहर में दाख़िल होने ही वाले थे। कोई दो–ढाई किलोमीटर चलने के बाद बाएँ हा