बूँद

कुछ बूँद गिरी है आज यहाँ,

न समझू मैं वह क्यों आयी,

भीग गया है जो तन मेरा,

वह क्यों आई मैं ना जानू,

मधु सी मीठी वह याद रही,

सविता की किरणों सी लाली भायी,

आज न जाने क्यों वह मेरे ,

नयनो में बिन बादल है आई,

कुछ बूँद गिरी है आज यहाँ,

मैं न समझू वह क्यों आई ,

है याद बड़ी कोमल उसकी,

नित प्रेम उसी में ही पायीं ,

जिससे माँगा था मैंने उसको,

उसको भी आज न लज़्ज़ा आई,

कुछ बूँद गिरी है आज यहाँ ,

मैं न समझू वह क्यों आई।
               
                    


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