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Showing posts from September, 2020

कैसे कहूं कि तुम क्या हो मेरे लिए

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कैसे कहूं कि तुम क्या हो मेरे लिए। पूर्णिमा की चांद सी हो तुम, जो अपनी छटा से जग को रोशन करती है। घास पर पड़ी ओस की बूंद हो तुम, जो गगन से उतरकर भूमि में मिल जाती है। फूल की पंखुड़ियों में छिपी पराग हो तुम, जिसे फूल छिपाकर रखना चाहता है। समंदर की लहर सी हो तुम, जो दूर रहकर भी मुझमें समा जाती है। कैसे कहूं कि तुम क्या हो मेरे लिए।। वसंत की हवा हो तुम, जो पास से गुजर जाए तो बदन सिहर उठती है। पतझर के पत्ते सी हो तुम, जो पेड़ से बिछड़कर अपना अस्तित्व ढूंढती है। नदी की धार हो तुम, जो समुंदर में मिलकर खुद को भूल जाती है। पहाड़ की चोटी सी हो तुम, जो आकाश की बुलंदियों को छूना चाहती है। कैसे कहूं कि तुम क्या हो मेरे लिए।। नवनीत कुमार जायसवाल

हिमालय दिवस: एक यात्रा रोहतांग दर्रे तक की

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रोहतांग दर्रा हिमालय (भारत) में स्थित एक प्रमुख दर्रा है। यह मनाली को लेह से सड़क मार्ग द्वार जोड़ता है। यह दर्रा समुद्र तल से 4,111 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इस दर्रे का पुराना नाम 'भृगु-तुंग' था, 'रोहतांग' नया नाम है। यहाँ से पहाडों, सुंदर दृश्‍यों वाली भूमि और ग्‍लेशियर का शानदार दृश्‍य देखा जा सकता है। हिमाचल प्रदेश के लाहोल-स्पीति ज़िले का प्रवेश द्वार कहा जाने वाला यह दर्रा कभी 'भृगु तुंग' के नाम से पुकारा जाता था। यह बौद्ध सांस्कृतिक विरासत के धनी लाहोल-स्पीति को हिन्दू सभ्यता वाले कुल्लू से प्राकृतिक रूप से बाँटता है। मनाली से रोहतांग दर्रे तक पहुँचने के लिए क़रीब पचास किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। यहाँ मौसम अचानक बदल जाता है। बर्फीली हवा से बचकर रहना पड़ता है अन्यथा तबीयत खराब होने का भय बना रहता है। रोहतांग दर्रा पार करने से लेकर वापिस आने तक बहुत ही जोखिम भरा पर्यटन होता है। सुबह मनाली से यात्रा प्रारंभ की थी। यहाँ की पर्वत श्रृंखलाएँ पल-पल अपना रंग बदलतीं है। खूबसूरत दृश्यों को एकटक देखते रहिए पर जी नहीं भरता। सूर्य रश्मियों से पहाड़ों की खूबसूरती