कैसे कहूं कि तुम क्या हो मेरे लिए

कैसे कहूं कि तुम क्या हो मेरे लिए।

पूर्णिमा की चांद सी हो तुम, जो अपनी छटा से जग को रोशन करती है।

घास पर पड़ी ओस की बूंद हो तुम, जो गगन से उतरकर भूमि में मिल जाती है।

फूल की पंखुड़ियों में छिपी पराग हो तुम, जिसे फूल छिपाकर रखना चाहता है।

समंदर की लहर सी हो तुम, जो दूर रहकर भी मुझमें समा जाती है।

कैसे कहूं कि तुम क्या हो मेरे लिए।।

वसंत की हवा हो तुम, जो पास से गुजर जाए तो बदन सिहर उठती है।

पतझर के पत्ते सी हो तुम, जो पेड़ से बिछड़कर अपना अस्तित्व ढूंढती है।

नदी की धार हो तुम, जो समुंदर में मिलकर खुद को भूल जाती है।

पहाड़ की चोटी सी हो तुम, जो आकाश की बुलंदियों को छूना चाहती है।

कैसे कहूं कि तुम क्या हो मेरे लिए।।

नवनीत कुमार जायसवाल

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