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पुस्तक अंश: सर्पीली पहाड़ी रास्तों पर चलकर लग रहा था जैसे मुथा नदी लुका-छिपी का खेल खेल रही हो

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चलते–चलते रास्ते में हमारे दाएं हाथ पर एक साइन बोर्ड लगा था, लिखा था ‘फर्स्ट कोर्ट’। यह जगह लवासा एंट्री गेट से कोई दो–ढाई किलोमीटर रही होगी। कुछ और आगे गए तो एक और साइन बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था ‘सेकेंड कोर्ट’। ये नाम अपने आप में कुछ बताने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन मेरी समझ से बाहर थे। बाद में पता चला कि वहाँ के पॉश रेसिडेंशियल इलाक़ों के नाम हैं। अभी कोई दो सौ मीटर आगे ही गए थे कि दाएँ हाथ पर ‘हेलिपैड’ का साइन बोर्ड दिखाई पड़ता है। रास्ते में एक घुमावदार टर्न पर सड़क के दाईं ओर गुलाबी रंग के फूल, झाड़ियाँ और पेड़ दिखाई पड़े। यों तो सड़क पर फूल, पत्ती और पेड़ों का मिलना कोई विचित्र बात नहीं लेकिन हरी–हरी झाड़ियों पर लगे वह गुलाबी फूल, हरा–भरा छितराया हुआ सा वह पेड़, वह साफ़–सपाट सर्पीली सड़क और कार के अंदर से देखने पर वह पूरा दृश्य दीवार पर लगी उस तस्वीर की तरह लग रहा था जिसे बड़े प्यार से एक सुंदर फ्रेम में लगाया गया हो। जैसे–जैसे आगे बढ़ रहे थे, वैसे–वैसे उस अदभुत स्थान को देखने की जिज्ञासा अपने चरम की ओर अग्रसर थी। अब हम शहर में दाख़िल होने ही वाले थे। कोई दो–ढाई किलोमीटर चलने के बाद बाएँ हा