दान और दक्षिणा में क्या अंतर है ?
दान किसी वस्तु पर से अपना अधिकार समाप्त करके दूसरे का अधिकार स्थापित करना दान है। साथ ही यह आवश्यक है कि दान में दी हुई वस्तु के बदले में किसी प्रकार का विनिमय नहीं होना चाहिए। इस दान की पूर्ति तभी कही गई है जबकि दान में दी हुईं वस्तु के ऊपर पाने वाले का अधिकार स्थापित हो जाए। मान लिया जाए कि कोई वस्तु दान में दी गई किंतु उस वस्तु पर पानेवाले का अधिकार होने से पूर्व ही यदि वह वस्तु नष्ट हो गई तो वह दान नहीं कहा जा सकता। ऐसी परिस्थिति में यद्यपि दान देनेवाले को प्रत्यवाय नहीं लगता तथापि दाता को दान के फल की प्राप्ति भी नहीं हो सकती।
दक्षिणा - दक्षिणा वह मूल्य है जो किसी सेवा के रूप में दी जाती है।
हर वस्तु का मूल्य है, हर सेवा का मूल्य है।
जिसका भी मूल्य है वो अर्थ है।
धर्म और काम अर्थ पर ही निर्भर है इसीलिए अर्थ व्यवहार धर्म पूर्वक हो।
बिना मूल्य दिए दूसरे का द्रव्य लेना, दूसरे के द्रव्य का अपहरण है।
दूसरे के द्रव्य का अपहरण, अपने द्रव्य का नाश है।
अन्न और प्रजा ही समाज का धन है और अन्न का प्रजा से सम्बन्ध है।
अतः दान और दक्षिणा में अंतर समझना बहोत ही महत्वपूर्ण है।
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