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Showing posts from May, 2016

हम आज के युवा है

हम आज के युवा है, देश के भविष्य है। क्रान्ति का हुनर रखते है, हमसे यह देश है। सोये को हम जगायेंगे, गिरते को हम उठायेंगे। हम ही अाज के राम, हम ही आज के श्री कृष्ण है। देश की भलाई में आगे आयें, यही संकल्प लेकर बढ़ते रहते है। यह राष्ट्र हमारा है और यही हमारा स्वदेश है। महापुरुषों से प्रेरणा लेकर स्वच्छंद बढते जाएंगे । परतंत्रता की जंजीर तोड़ कर आगे बढते जाएंगें । चाहे कितनी भी मुश्किल आये, हम नही घबरायेंगे। समाज की कुरीतियों का मुकाबला डटकर करते जाएंगे। राष्ट्र की संस्कृति और परम्परा को आगे बढाते जाएंगे। मार भगाएंगे दहेज दानव को, भ्रष्टाचार मुक्त बनाएंगे। राष्ट्र की एकता और अखंडता को बचाए चलते जाएंगे। भाईचारा का संदेश हम जन-जन तक पहुंचाएंगे। मातृभूमि का मान बढाने,  निकले आज युवा सभी। मन में दृढ संकल्प लिए पहल करने चले सभी । हम ही है सृजनकर्ता, हम ही कल के भविष्य है। क्रान्ति का हुनर रखते, हमसे यह देश है। हम आज के युवा है, देश के भविष्य है।                               नवनीत कुमार जायसवाल                           एम.ए.पत्रकारिता एवं जनसंचार       

कभी सोंचा न था

दिल जो चाहे उसे अपना लुं मैं। अपनी काबलियत को दिल से लगा लुं मैं। कौन कहता है दुनिया मतलबी है। अपने मतलब के लिए दुनिया को अपना लुं मैं। दुनिया सफलता के लिए क्या-क्या न करे। मगर सफलता के लिए क्या-क्या करुं मैं। वो बीते दिन की बातें, परिश्रम की वो यादें। बहुत याद आती है वो बीती बातें। मगर दिन कैसे ढल गये पता नही चला हमें। कभी सोंचा न था बड़ा बनुंगा मैं। अपने परिश्रम से आगे बढुंगा मै। सोंचा था आगे कुछ करूंगा मैं। सफलता के कदम चुमुंगा मैं। वो बीती बातें याद रखूंगा मैं। कभी सोंचा न था बड़ा बनुंगा मै।                                 नवनीत कुमार जायसवाल                           एम.ए.पत्रकारिता एवं जनसंचार                          देव संस्कृति विश्वविद्यालय,हरिद्वार

युवा जो राष्ट्र बदले

युवा वह जो राष्ट्र बदले, न तृष्णा में संलिप्त रहे । युवा वह जो सोंच बदले, न संसारिक मोह में लिप्त रहे। युवा वह जो सबकी मदद करे, न किसी को ठेस पहुंचाए। युवा वह जो अपना पुरुषार्थ बदले, न कुरीतियों के पथ पर जाए। हे मानव तुम अाज के युवा हो, पहले तुम खुद को बदलो। उठो, जागो, तभी संसार बदलेगा,  देश बदलेगी । हुनर है तुममें तुम कुछ करो, युं हाथ पर हाथ रखकर बैठे न रहो। भगवान ने यह शरीर मानव धर्म के लिए दिया है, पहले तुम बदलो फिर देश को बदलो। तुम्हारा भविष्य अपने हाथ में है, यह धन-संपत्ति पाने कि इच्छा छोड़ दो । लोग तो पैसे कमाने के लिए सब कुछ छोड़ देते हैं, तुम अपना लक्ष्य पाने के लिए सबकुछ छोड़ दो ।                                                नवनीत कुमार जायसवाल                               एम.ए पत्रकारिता एवं जनसंचार                             देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार

माता कहती पुकार के

माता कहती पुकार के, पुत्र मेरे राष्ट्र के। अब उठो जागो तुम, युं हाथ पर हाथ धरे न बैठो तुम। अपनी सोंच बदलना है तुम्हे, अन्यायों से लङना है तुम्हे। करना है कुछ काम तुम्हे, लेकर चलना है साथ तुम्हे। तुम अाज के युवा हो, देश के तुम भाग्य विधाता हो। बहू-बेटियों को बचाना है तुम्हे, बुद्ध-महावीर जैसा बनना है तुम्हे। सभी को एक साथ लेकर, देश में क्रांति लाना है तुम्हे। क्यों तुम व्यर्थ बैठे हो, भविष्य का गांधी बनना है तुम्हे। हरियाली इस धरा पर लाकर, वृक्षों को बचाना है तुम्हे। मार भगाओ दहेज दानव को, भविष्य को बचाना है तुम्हे। फल की चिन्ता मत करो, एक अच्छा राष्ट्र बनाना है तुम्हे ।                                        नवनीत कुमार जायसवाल                           एम.ए पत्रकारिता एवं जनसंचार                          देव संस्कृति विश्वविद्यालय,हरिद्वार

दुनिया की लीला

ये कैसी दुनिया की लीला है। न जाने क्यूं सभी इस दुनिया में अकेला है। अकेलेपन को दुर करने जाते हैं लोग मन्दिर में। मगर दिल के सुनापन को दुर कौन कर सकता है। सूनेपन के आग में जलते रहते हैं लोग। एक सच्चा साथी ढूंढते रहते हैं लोग। इस दुनिया में सही को गलत मान लेते हैं लोग। फिर पछताते,सर पटकते रह जाते हैं लोग। सोंचते हैं कि काश ये गलती न करता। मगर क्या फायदा अब समय चला बीतता। सच्चे साथी मिलते मुश्किल से, गलत मिलने में देर न लगती। मुश्किल तो हजारों हैं लेकिन, मुश्किल को पार किये बिना मंजिल नही मिलती।                                             नवनीत कुमार जायसवाल                            एम.ए.पत्रकारिता एवं जनसंचार                           देव संस्कृति विश्वविद्यालय,हरिद्वार

देश की भलाई

दिन है ढलते वक्त है बीतता, जाने कैसी घङी है अायी। देश को कुछ दिखाने का समय नजदीक है अायी। कहीं हो रहे दंगे, कहीं हो रही लङाई। नेता अपने वोट के खातिर कराते मार-पिटाई। कहीं पैसो की होङ है,तो कहीं धर्म की लङाई। इसके कारण लङते अापस में भाई-भाई । तमाशे बने देख रहे हैं, मुख से कुछ न बोल रहे हैं। दुनिया आगे बढ रही है, बुद्धि सभी की घट रही है। लोग जाति-धर्म के नाम पर करते हैरान-परेशान। क्यूं न समझते आखिर एक माँ की है सब संतान। न जाने इस देश का क्या होगा। अब युवा को जाग्रत होना होगा। सोंच बदलकर आगे आयें, तभी होगा देश की भलाई ।                                                       नवनीत कुमार जायसवाल                              एम.ए.पत्रकारिता एवं जनसंचार                            देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार  

मेरी खोयी दुनिया

है कहीं खोयी सी दुनिया मेरी , न राह का पता,न मंजिल का। कोशिश है मैं राह खुद बनाऊं, आगे बढकर मंजिल खुद मै पाऊँ। यही सोंच लेकर बढ चला मैं, राह की मुश्किलो को दुर करुं मैं। पर पता नही किस ओर जा रहा हूं, अपने मकसद से भटकता जा रहा हूं। सोंचता हूं अाने वाले कल की, यही सोंचकर डरता जा रहा हूं। होगी कोई अजीब सी दुनिया इसके बाद, संधर्ष ही होंगे कुछ समय के बाद। दुनिया के नक्सेकदम पर चलना पङेगा, जो कहेगी दुनिया वह करना पङेगा। तब होगी असली जंग जिंदगी की, तब शुरू होगी सफर जिंदगी की। घर वाले भी होंगे परेशान, क्या कर रहा हूं मैं इससे होंगे अनजान। चुनौतियों का सामना करना पङेगा, अपनी मंजिल खुद पाना पङेगा। कुछ कर दिखाऊंगा अपनी जिंदगी को, दुनिया याद रखेगी इस युक्ति को।                        नवनीत कुमार जायसवाल                    एम.ए. पत्रकारिता एवं जनसंचार                    देव संस्कृति विश्वविद्यालय,हरिद्वार          

बिहार का बेटा

हूँ मैं बेटा बिहार का, कर्म मेरा परोपकार का। भाषा मेरी भोजपुरी है, वीरों की यह भूमि है। यहाँ ज्ञान मिला बुद्ध को, कर्ण की यह जन्मभूमि है। यह बिहार है उस जमाने की, जहां हिम्मत न हुई सिकन्दर को आने की। जिसने विदेशियों में ज्ञान जगाया, वह नालन्दा विश्वविद्यालय बिहार में पाया। जहां से गांधी ने किया आंदोलन, वहीं से बिस्मिल्ला ने लिया जन्म । जहां महावीर ने दिया उपदेश, यहीं से जन्म हुआ चाणक्य का। यह स्थान है अशोक सम्राट का, वह धरती है बिहार का।                      नवनीत कुमार जायसवाल                  एम.ए. पत्रकारिता एवं जनसंचार               देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार

बूढा केदार की यात्रा

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नव वर्ष के उपलक्ष्य में मैं और मेरे मित्र अमित रतूडी वर्षो से उपेक्षित एवं अंतर्मन को शांति प्रदान करने वाला स्थान बूढा केदार जाने का फैसला किया।  हमलोग सुबह 8 बजे तैयार होकर निकल पड़े  मंजिल की ओर , देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार से दूरी लगभग 250 किमी थी, लेकिन मन में जो ठान लिया वह करना ही था इसीलिए हमलोग दोपहिया वाहन स्कुटी से ऋषिकेश, नरेन्द्र नगर, चम्बा, टिहरी, घनसाली होते हुए बूढा केदार पहुंचे। उस ठंड के समय सुबह जब मै निकला तो मन काफी हर्षित और उत्साहित था मन में सिर्फ एक ही बात चल रही थी कि वह स्थान कैसा होगा जहां हम जा रहे हैं आ ज कुछ नया सीखने को मिलेगा नये-नये लोग मिलेंगे,नये-नये अनुभवो को अपने अंदर समेटने की ललक को लेकर चल पड़ा  था। ठंड काफी थी तो सर्वप्रथम नरेन्द्र नगर में रुककर चाय पी फिर यात्रा प्रारम्भ की वहाँ के टेढे-मेढे रास्ते काफी डरा रहे थे लेकिन मन की उत्सुकता के कारण वह डर भी धीरे-धीरे हमारे अंतर्मन से जाता रहा। जब हमारे हाथों ने काम करना बंद कर दिया तो कुंजापुरी के पास रुककर अपने हाथों को अाग से सेंककर चल दिए मंजिल की ओर। चलते-चलते काफी समय हो गया था और हम