दुनिया की लीला

ये कैसी दुनिया की लीला है।
न जाने क्यूं सभी इस दुनिया में अकेला है।
अकेलेपन को दुर करने जाते हैं लोग मन्दिर में।
मगर दिल के सुनापन को दुर कौन कर सकता है।
सूनेपन के आग में जलते रहते हैं लोग।
एक सच्चा साथी ढूंढते रहते हैं लोग।
इस दुनिया में सही को गलत मान लेते हैं लोग।
फिर पछताते,सर पटकते रह जाते हैं लोग।
सोंचते हैं कि काश ये गलती न करता।
मगर क्या फायदा अब समय चला बीतता।
सच्चे साथी मिलते मुश्किल से,
गलत मिलने में देर न लगती।
मुश्किल तो हजारों हैं लेकिन,
मुश्किल को पार किये बिना मंजिल नही मिलती।
             
                              नवनीत कुमार जायसवाल
                           एम.ए.पत्रकारिता एवं जनसंचार
                          देव संस्कृति विश्वविद्यालय,हरिद्वार

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