कोलकाता का ऐसा बाजार जहां नुमाइंदगी होती है जिस्म की


उतनी गिनती भी नही आती,जितने लोग मेरे उपर चढ़ जाते हैं।मेरी चादर के फूल भी शर्म से लाल हो जाती है।बस एक चीज लाल नहीं होती...मेरी मांग!




मुझे सोनागाछी में सस्ते पाउडर लिपिस्टिक की पर्तों में छुपी ज़िंदा लाशों का क्रंदन इस क़दर सुनाई देता है। लगता है, जैसे पूरा सोनागाछी एक श्मशान है ,जहाँ हर कदम एक लाश जल रही है या दफ़न हो रही है। यहाँ लड़की जैसे ही अपनी दैनिक वृत्तियों को लेकर आत्मनिर्भर हो जाती है यानी फौरन औरत बन जाती है। माहवारी शुरू होने के पहले ही उसे ग्राहक को रिझाने औऱ देर तक उसे यौन के संलिप्त रखने के गुर सीख लेना ज़रूरी होता है क्योंकि कच्ची कली के पहली बार खिलने की खुशबू इस क़दर हमारे देश के कामुक पुरुषों को मतवाला करती है। जब यहाँ किसी लड़की का ज़िस्म पहली बार मंडी में उतरता है तो उसके ख़ैरख्वाहों और दलालों को तगड़ी रक़म ग्राहक से मिलती है। बाक़ायदा लड़कियाँ बॉलीवुड के सस्ते आयटम गानों पर भड़काऊ ढंग से नाचना सीखती हैं। शाम होते ही उनकी नुमाइश शुरू हो जाती है और रात गुजरते हुए ये लड़कियां या अपना जिस्म हारती है या ज़िन्दगी की दौड़ में रोटी हार जाती है।


पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के सोनागाछी जो एशिया के सबसे बड़े रेड लाइट एरिया के नाम से मशहूर है।यहां करीब 14000 वैश्याएं झुग्गियों में रहती है,जिन्हें 130 से 300 रुपये तक एक बार बिकने की कीमत मिलती है। इस छोटे से अमाउंट में अभी उनका दलाल भी अपना हिस्सा लेगा और उनका सरपरस्त भी। हर साल क़रीब 1000 नई औरतें यहां जिस्मफरोशी के धंधे में घुसती है। कुछ गरीबी और सामाजिक अत्याचारों से भागकर यहां शरण लेती है। कुछ को जबर्दस्ती यहां दफ़न किया जाता है। वे सोनागाछी की गलियों में मोगरे का गजरा बन कर ग्राहकों को महकाने में रम जाती है। अनगिनत यौन रोगों से जूझती हुई भी हर ग्राहक के जाने के बाद बटुए में नोट गिनती हुई अपनी नींद को चुनौती देती रहती हैं। उनके अंदर की औरत हर रात मरती है और उनकी ज़िंदगी लड़ने की जद्दोजहद हर रात जीतती है।

यहां काम करने वाली औरतें पहले घरेलू नौकरानी का काम करती थीं। तब करीब डेढ़ हजार रुपये महीने कमा पाती थी, लेकिन अब करीब 16 हजार रुपये तक कमाई हो जाती है।
30 साल की एक औरत (वैश्या) बताती हैं कि वे करीब 7 साल तक अपने पति के साथ शादीशुदा जिंदगी में रही। उनका पति शराबी था। वह उसे रोज मारता-पीटता था,लेकिन अपनी बेटी की जीवन को देखते हुए उसके साथ रहती थी। अब वह पति को छोड़ चुकी है और इस प्रोफेशन में आकर खुश है।
एक महिला ने कहा कि मेरे दोनों बच्चों ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली है और अब नौकरी भी करता है। क्या मैं घर पर बैठी रहती तो मैं उसकी फीस दे पाती? उन्होंने कहा कि सोसायटी को हमारी निंदा करने से पहले खुद के बारे में सोचना चाहिए। क्या हमें किसी ने अच्छी नौकरी दी?

वे सब यह धंधा खुलेआम कर रही हैं, लेकिन उनके ग्राहक सम्भ्रान्त समाज के वे पुरुष हैं, जो दिन के उजाले में एक इज्ज़त की ज़िंदगी जीते हैं और रात के अंधेरे में मुंह छुपाये सोनागाछी की गलियों में अपनी जिस्मानी भूख मिटाने के लिए चंद नोटों के बदले इन ग़रीब और मजबूर औरतों के स्त्रीत्व पर पच्च से थूक देते हैं।

एशिया के सबसे विशाल रेड लाइट इलाके सोनागाछी में आर्थिक गतिविधियां ठप होने की कगार पर पहुंच गई है। यौनकर्मियों के पास आने वाले ग्राहकों की संख्या में तेजी से कमी आई है। ऐसा कहा जाता है कि मंदी नोटबंदी के बाद हुआ है। 20 हजार यौनकर्मियों के निवास स्थल सोनागाछी में इससे पहले इतना सन्नाटा सन 1992 में दिखाई दिया था जब बाबरी ढांचे के ​गिरने के बाद साम्प्रदायिक तनाव की आशंका के कारण कोलकाता में कर्फ़्यू लगाया गया।

इलाके में लंबे समय से रह रही एक यौनकर्मी ने बताया कि सालों से ऐसी वीरानगी नहीं देखी गई है। ग्राहक कम हो गए हैं। यौनकर्मियों के सामने संकट पैदा हो गया है। यौनकर्मियों के विकास के लिए इलाके में सक्रिय संगठन दुर्बार महिला समिति के पदाधिकारियों का मानना है कि इलाके की हाईप्रोफाइल यौनकर्मियों ने ई पेमेंट जैसा माध्यम अपनाना शुरू कर दिया है। लेकिन ऐसी हाईप्रोफाइल यौनकर्मियों की संख्या 4 हजार से ज्यादा नहीं है। बाकी की 15 से 16 हजार यौनकर्मी असमंजस में हैं। वहीं ग्राहकों ने भी मुंह मोड़ लिया है। संगठन की सचिव भारती जाना ने बताया कि पुराने ग्राहकों पर तो भरोसा किया जा सकता है लेकिन नए ग्राहकों को भी समझाया जा रहा है।

हम बड़े शहरों में रहते है। कभी कभार इन मुद्दों को लेखन के जरिए उठाते हैं मगर सोनागाछी का क्या?


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