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Showing posts from February, 2020

पिथौरागढ़ के जन्मदिन पर जानिए कुछ खास बातें

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आज पिथौरागढ़ जिले का जन्मदिन है. 60 साल पहले आज ही के दिन पिथौरागढ़ जिले का गठन किया गया था. 24 फ़रवरी 1960 से पहले तक पिथौरागढ़ अल्मोड़ा जिले की एक तहसील हुआ करता था. 24 फरवरी 1960 को सीर, सोर, गंगोली व अस्कोट परगनों के साथ मुनस्यारी, धारचूला, डीडीहाट और पिथौरागढ़ को मिलाकर अलग जनपद के रूप में प्रदेश व देश के नक़्शे में ला दिया गया. यह उत्तराखण्ड के ऐतिहासिक नगरों में से एक है. इसे सोर घाटी के नाम से भी जाना जाता था. सोर का शाब्दिक अर्थ सरोवर होता है. कहा जाता है कि किसी समय में यहाँ पर सात सरोवर हुआ करते थे. वक़्त बीतने के साथ इन सरोवरों का पानी सूख जाने के कारण बनी पठारी भूमि में यह क़स्बा बसा. पठारी भूमि पर बसे होने के कारण ही इसका नाम पिथौरागढ़ पड़ा. इसके नाम एवं शासकों के बारे में इतिहासकारों के बीच मतभिन्नता है. पृथ्वीशाह का शासनकाल चौदहवीं शताब्दी का माना जाता है. इनका विवाह मायापुरहाट (अब हरिद्वार) के अमरदेव पुंडीर की बेटी गंगादेई के साथ हुआ. बाद में उनका विवाह गंगादेई की छोटी बहन मौलादेवी के साथ हुआ. यही मौलादेवी बाद में कत्यूरी राजमाता जिया रानी के नाम से जानी गयीं. ज

जिंदगी की सच्चाई है मौत! जिसे छोड़कर कोई नहीं भाग सकता

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उस रात का इंतजार है जब मौत मुझसे आकर पूछे... चलें वो मुझे वक्त भी देगा लेकिन अब वक्त का क्या? जो बीत गया वो बीत गया... अब कोई उसे लौटा नहीं सकता मैं जनता हूं... अब ज्यादा वक्त नहीं है थोड़ी देर ही सही लेकिन हर किसी को एक न एक दिन आनी है वो हमेशा अपने चाहने वालों को पास बुला लेता है लेकिन मैंने कौन का कर्म किया जो तुम्हारा चाहने वाला हो गया चलो अच्छा है तुम ले चलो इस झंझावतों से शायद लोगों ने मेरा कद्र नहीं किया अब किसी और जन्म में आकर उन कमियों को पूरा करेंगे जो रह गई है... -नवनीत कुमार जायसवाल ये भी पढ़ें:- वो अनकही बातें हो कभी कह नहीं पाया