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राजगीर यात्रा एक अनुभव

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बहुत वर्षों के बाद आज मन किया कि फिर से बच्चा बनूं, अपने बचपन में खो जाऊं तो निकल गया एक पहल‌ की ओर। जिस विद्यालय में मैंने बचपन में पढाई की थी उसी विद्यालय की तरफ से आज बच्चों को राजगीर भ्रमण के लिए ले जाया जा रहा था तो मेरे अंदर का बच्चा फिर से जागृत हो गया। मैंने अबधेश सर से बात की तो उन्होने अपनी सहमति दे दी, फिर क्या था मैं भी सुबह चल दिया। सुबह लगभग 7 बजे मैं अपने घर से राजगीर की ओर निकला, मन में एक अजीब सी कसमकस थी। मैं बहुत ही उघेरबुन में मन को एकाग्र किए चुपचाप चला जा रहा था। सुबह इतनी ठंड के कारण हाथ पैर मानो बर्फ हो रहा था, सड़कों पर घने कोहरे के कारण आगे का कुछ साफ दिखायी नही पड़ रहा था, गाड़ी ऐसे चल रही थी मानो उसे भी ठंड में ठंड मार गया क्योंकि सड़कें कोहरे के कारण साफ दिखाई नही दे रही थी और सड़कें शीत के कारण भीगी थी और घने कोहरे के कारण साफ दिखाई नही दे रहा था। हमारे साथ में अवधेश सर, मो. इमामुद्दीन इद्रीशी सर व कक्षा १०वीं के लगभग ५० बच्चे जा रहे थे। बच्चे काफी उत्सुक दिख रहे थे क्योंकि वे प्रथम बार राजगीर जा रहे थे। हमलोगो ने पटना होते हुए यात्रा प्रारंभ की करी