मनुष्य के श्रेष्ठता का प्रतीक है प्रार्थना
प्रार्थना मनुष्य की श्रेष्ठता की प्रतीक है क्योंकि यह उसके और परमात्मा के घनिष्ठ संबंधों को दर्शाती है। प्रार्थना एक तरह से परमेश्वर और भक्त के बीच बातचीत है । इस में भक्त भगवान को अपनी सारी स्थिति स्पष्ट कर देता है कुछ छिपाता नहीं। हर एक धर्म में प्रार्थना का बड़ा महत्व है । सभी धर्म-गुरुओं, ग्रंथों और संतों ने प्रार्थना पर बड़ा बल दिया है । उन्होंने प्रार्थना को मोक्ष का द्वार कहा है। प्रार्थना में परमेश्वर की प्रशंसा, स्तुति, गुणगान, धन्यवाद, सहायता की कामना, मार्गदर्शन की ईच्छा, दूसरों का हित चिंतन आदि होते हैं। प्रार्थना चुपचाप, बोलकर या अन्य किसी विधी से की जा सकती है। यह अकेले और सामूहिक, दोनों रूपों में होती है । यह ध्यान के रूप में या किसी धर्म ग्रंथ के पढ़ने के रूप में भी हो सकती है। प्रार्थना में माला, जाप, गुणगान पूजा संगीत आदि का सहारा लिया जाता है। बिना किसी ऐसे साधन के भी प्रार्थना की जा सकती है। प्रार्थना करने की कोई भी विधि अपनायी जा सकती है, और सभी श्रेष्ठ हैं । इसमें जितनी सच्चाई, सफाई, तन्मयता और समर्पण-भाव होगा, वह उतना ही प्