मनुष्य के श्रेष्ठता का प्रतीक है प्रार्थना

                                       
प्रार्थना मनुष्य की श्रेष्ठता की प्रतीक है क्योंकि यह उसके और परमात्मा के घनिष्ठ संबंधों को दर्शाती है। प्रार्थना एक तरह से परमेश्वर और भक्त के बीच बातचीत है । इस में भक्त भगवान को अपनी सारी स्थिति स्पष्ट कर देता है कुछ छिपाता नहीं। हर एक धर्म में प्रार्थना का बड़ा महत्व है । सभी धर्म-गुरुओं, ग्रंथों और संतों ने प्रार्थना पर बड़ा बल दिया है । उन्होंने प्रार्थना को मोक्ष का द्वार कहा है। प्रार्थना में परमेश्वर की प्रशंसा, स्तुति, गुणगान, धन्यवाद, सहायता की कामना, मार्गदर्शन की ईच्छा, दूसरों का हित चिंतन आदि होते हैं। प्रार्थना चुपचाप, बोलकर या अन्य किसी विधी से की जा सकती है। यह अकेले और सामूहिक, दोनों रूपों में होती है । यह ध्यान के रूप में या किसी धर्म ग्रंथ के पढ़ने के रूप में भी हो सकती है। प्रार्थना में माला, जाप, गुणगान पूजा संगीत आदि का सहारा लिया जाता है। बिना किसी ऐसे साधन के भी प्रार्थना की जा सकती है। प्रार्थना करने की कोई भी विधि अपनायी जा सकती है, और सभी श्रेष्ठ हैं । इसमें जितनी सच्चाई, सफाई, तन्मयता और समर्पण-भाव होगा, वह उतना ही प्रभावकारी होगी । प्रार्थना कभी भी और कहीं भी की जा सकती है, परन्तु प्रातरू और सायं नियमित रूप से करना बहुत लाभदायक रहता है। प्रार्थना का स्थान भी शांत, स्वच्छ, मनोरम, और खुला होना चाहिये। यह ऐसा होना चाहिये कि ध्यान नहीं बंटे और जहां शोरगुल न हो। मंदिर, मस्जिद, चर्च आदि इसके लिए अच्छे स्थान माने जाते हैं। प्रकृति की गोद में भी, कहीं भी, प्रार्थना करने में बड़ी सहायता मिलती हैं । प्रार्थना में मन की एकाग्रता बहुत आवश्यक है। गांधीजी, ईसा मसीह, महा‍त्मा बुद्ध,स्वामी विवेकानन्द, महर्षि अरविंद, पंडित श्री राम शर्मा आचार्य आदि को ईश्वर पर अटूट आस्‍था थी। उनकी सच्ची प्रार्थना का ही कमाल था कि वे अपने मनोबल को काफी मजबूत कर पाए व अपने लक्ष्‍य पर अडिग रहें तथा उसकी प्राप्ति करके ही रहे। 
प्रार्थना का अर्थ
प्रार्थना का अर्थ है जीवात्मा के साथ सक्रिय, अनन्य भक्ति तथा प्रेममय संबंध। ईश्वर-प्राप्ति के लिए आदर्श प्रार्थना आर्तता या व्याकुलता की भावा‍भिव्यक्ति है अतः हृदय में जैसे भाव उठेंगे, ईश्वर तक प्रार्थना उसी रूप में फलीभूत होगी। सभी धर्मग्रंथों में यह बात साफ तौर पर कही गई है कि आप ईश्वर से जिस भाव या भावना से प्रार्थना करते हैं, ईश्वर भी उसी रूप में उसे स्वीकार करता है। अतः मन तथा हृदय का पवित्र होना नितांत ही जरूरी है। 
क्या है प्रार्थना?
प्रार्थना एक धार्मिक क्रिया है। यह अखिल ब्रह्मांड की किसी विराट शक्ति यानी ईश्वर से जोड़ने का काम करती है। प्रार्थना व्यक्तिगत या सामूहिक दोनों हो सकती है। प्रार्थना निवेदन द्वारा ऊर्जा प्राप्त करने की शक्ति है। 
प्रार्थना में है अपार शक्ति... 
ईश्वर प्राप्ति का सहज मार्ग
भारत एक धर्मप्रधान देश है। यहां जनजीवन में धर्म व संस्कृति का बड़ा प्रभाव है। सुबह की दिनचर्या से निवृत्त होने के बाद व्यक्ति पूजा-पाठ हेतु ईश्वर के समक्ष होता है। पूजा पश्चात प्रार्थना का काफी महत्व है। प्रार्थना यानी ईश्वर से अपना सीधा संबंध जोड़ना। 
परमेश्वर से बातें करना
प्रार्थना और कुछ नहीं, सिर्फ परमेश्वर से बातें करना है। परमेश्वर आपको जानता है तथा वह यह भी जानता है कि आपके हृदय का व्यवहार कैसा है। सच्चे मन से परमेश्वर से की गई बातों को वह भी स्वीकारता है तथा तदनुरूप फल भी प्रदान करता है। 
ईश्वर प्राप्ति का सहज मार्ग
ईश्वर व आध्यात्मिक शक्तियों को प्राप्त करने हेतु दो विधियां हैं। ‍भक्ति मार्ग में प्रार्थना और ध्यान दोनों ही का महत्व बताया गया है। ध्यान प्रार्थना से थोड़ा कठिन है। प्रार्थना सहज है किंतु ध्यान में स्थि‍तप्रज्ञता व एकाग्रता की आवश्यकता होती है। 
भगवान से विनती
परमात्मा से हमेशा गुण ग्रहण की ही विनती की जानी चाहिए। प्रार्थना के साथ उसे आचरण में भी लाएं नहीं तो प्रार्थना फलीभूत नहीं होगी। अगर प्रार्थना भर ही की जाए तथा आचरण में नहीं लाया जाए, तो प्रार्थना का सुफल प्राप्त नहीं होगा। ईश्वर से कभी भी धन-दौलत, सोने-चांदी या गाड़ी-बंगले की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। यह उचित नहीं है। 
समस्याओं के समाधान में लाभदायी
सच्चे मन से की गई प्रार्थना से समस्या-समाधान में भी लाभ मिलता है। जब हमें कोई रास्ता नहीं सूझ रहा हो और हम अगर सच्चे मन से प्रार्थना करें तो हमें ईश्वर से मार्गदर्शन प्राप्त होता है। प्रार्थना से उलझनें सुलझ जाती हैं, शक्ति मिलती है, दुरूख के बादल छंट जाते हैं, और अंधकार में प्रकाश मिल जाता है। 
प्रार्थना से होती है सेहत ठीक
चिकित्सकों व मनोचिकित्सकों ने अपने अनुसंधान में पाया है कि जो व्यक्ति नियमित प्रार्थना करते हैं, वे उन व्यक्तियों की तुलना में अधिक जल्दी स्वस्‍थ होते हैं व जो नियमित प्रार्थना नहीं करते हैं या कम या कभी-कभार ही प्रार्थना करते हैं। इस प्रकार प्रार्थना का मनोवैज्ञाकि महत्व भी कम नहीं है । मन की शांत करने, बुद्धि को एकाग्र करने, संस्कारों को श्रेष्ठ बनाने और आत्मविश्वास प्राप्त करने का यह एक अनुपम साधन है । यह एक ऐसी आध्यात्मिक क्रिया है जिसमें धैर्य, ऊर्जा, पवित्रता, चरित्र की दृढ़ता जैसे गुण विद्यमान हैं । इसके द्वारा दूसरों का भी बड़ा भला किया जा सकता है । प्रार्थना के बल पर संतों, साधुओं, पैगम्बरों, आदि ने वह सब कुछ कर दिखाया है जो असंभव लगता है ।
प्रार्थना की शक्ति का महत्व
मनुष्य का जीवन उसकी शारीरिक एवं प्राणिक सत्ता में नहीं, अपितु उसकी मानसिक एवं आध्यात्मिक सत्ता में भी आकांक्षाओं तथा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए और कामनाओं का है। जब उसे ज्ञान होता है कि एक महत्तर शक्ति संसार को संचालित कर रही है, तब वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए, अपनी विषम यात्रा में सहायता के लिए, अपने संघर्ष में रक्षा के लिए आय प्राप्त करने के लिए प्रार्थना द्वारा उसकी शरण लेता है। प्रार्थना से बड़ा बल, विश्वास, प्रेरणा, आशा और सही मार्गदर्शन मिलता है । ऐसा करने से विनाश होता है और मानवीय गुण जैसे दया, अहिंसा, ममता, परोपकार, सहनशीलता, सहयोग, सादगी, उच्च विचार आदि पैदा होते हैं और उनका विकास होता है। विपत्ति, निराशा और संकट के समय प्रार्थना से बड़ा बल, आत्मविश्वास और शांति मिलती हैं ।
प्रार्थना बहुत अद्‌भुत है क्योंकि इससे असंभव भी संभव है। अनेक असाध्य रोगी इससे ठीक होते देखे गये हैं। इससे बुरे-विचार नष्ट होते हैं और अच्छे विचारों को बल मिलता है । यह परमपिता के प्रति अपनी कृतज्ञता का प्रकाशन है। प्रार्थना को सूत्रबद्ध करके किसी वस्तु के लिए निवेदन करना होगा। व्यक्ति को यह सवाल नहीं करना चाहिए। यदि सचाई के साथ सच्ची आंतरिक भावना के साथ याचना की जाए तो संभव है-वह स्वीकृत हो जाता है।                                                    
                          
                                          नवनीत कुमार
                              एम.ए. पत्रकारिता एवं जनसंचार
                
          देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार

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