राजगीर यात्रा एक अनुभव

बहुत वर्षों के बाद आज मन किया कि फिर से बच्चा बनूं, अपने बचपन में खो जाऊं तो निकल गया एक पहल‌ की ओर। जिस विद्यालय में मैंने बचपन में पढाई की थी उसी विद्यालय की तरफ से आज बच्चों को राजगीर भ्रमण के लिए ले जाया जा रहा था तो मेरे अंदर का बच्चा फिर से जागृत हो गया। मैंने अबधेश सर से बात की तो उन्होने अपनी सहमति दे दी, फिर क्या था मैं भी सुबह चल दिया।
सुबह लगभग 7 बजे मैं अपने घर से राजगीर की ओर निकला, मन में एक अजीब सी कसमकस थी। मैं बहुत ही उघेरबुन में मन को एकाग्र किए चुपचाप चला जा रहा था। सुबह इतनी ठंड के कारण हाथ पैर मानो बर्फ हो रहा था, सड़कों पर घने कोहरे के कारण आगे का कुछ साफ दिखायी नही पड़ रहा था, गाड़ी ऐसे चल रही थी मानो उसे भी ठंड में ठंड मार गया क्योंकि सड़कें कोहरे के कारण साफ दिखाई नही दे रही थी और सड़कें शीत के कारण भीगी थी और घने कोहरे के कारण साफ दिखाई नही दे रहा था। हमारे साथ में अवधेश सर, मो. इमामुद्दीन इद्रीशी सर व कक्षा १०वीं के लगभग ५० बच्चे जा रहे थे। बच्चे काफी उत्सुक दिख रहे थे क्योंकि वे प्रथम बार राजगीर जा रहे थे।
हमलोगो ने पटना होते हुए यात्रा प्रारंभ की करीब ३ घंटे की यात्रा के बाद हमलोग निश्चित स्थान पर पहुंचे और वहां सर्वप्रथम पर्वत पर जाने लगे उस रास्ते में घुसते ही ऐसा लगा मानो किसी गंदी बस्ती में आ गया। चारों तरफ चिकन की महक और गंदगी से पूरा रास्ता महक रहा था। मनो लोग  पिकनिक मानाने नही गन्दगी फैलाने यहाँ  आते हैं । आजकल लोग घुमने के बहाने गंदगी फैलाने जा रहे हैं।
यहाँ लोग आध्यात्मिक पर्यटन के लिए आते हैं और गंदगी फैला कर चले जाते हैं। खैर इन सब के आगे पर्वतों की चढ़ाई प्रारंभ हुई। काफी ऊंचाई पर जैन धर्म के 34वें तीर्थंकर महावीर जी का मंदिर था। वहाँ सबसे ऊपर एक टीन शेड पर महावीर जी की चार मूर्ति है जो चारों दिशाओं की ओर है। हालांकि पहाड़ चढ़ते चढ़ते दोपहर हो गयी थी और गर्मी भी बहुत थी। प्यास भी जोरों की लगी थी। प्यास से हम सभी बिलबिला गए थे। ऊपर चढ़कर पानी पिया तब जाकर जान में जान आयी।

आईये जानते है राजगीर के इतिहास के बारे में

राजगीर का इतिहास 
राजगीर, बिहार प्रांत में नालंदा जिले में स्थित एक शहर एवं अधिसूचीत क्षेत्र है। यह कभी मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी, जिससे बाद में मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ।
पटना से 100 किमी उत्तर में पहाड़ियों और घने जंगलों के बीच बसा राजगीर न केवल एक प्रसिद्ध धार्मिक तीर्थस्थल है बल्कि एक सुन्दर हेल्थ रेसॉर्ट के रूप में भी लोकप्रिय है। यहां हिन्दु, जैन और बौद्ध तीनों धर्मों के धार्मिक स्थल हैं। खासकर बौद्ध धर्म से इसका बहुत प्राचीन संबंध है। बुद्ध न केवल कई वर्षों तक यहां ठहरे थे बल्कि कई महत्वपूर्ण उपदेश भी यहाँ की धरती पर दिये थे। बुद्ध के उपदेशों को यहीं लिपिबद्ध किया गया गया था और पहली बौद्ध संगीति भी यहीं हुई थी।
राजगृह का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। वसुमतिपुर, वृहद्रथपुर, गिरिब्रज और कुशग्रपुर के नाम से भी प्रसिद्ध रहे राजगृह को आजकल राजगीर के नाम से जाना जाता है। पौराणिक साहित्य के अनुसार राजगीर बह्मा की पवित्र यज्ञ भूमि, संस्कृति और वैभव का केन्द्र तथा जैन तीर्थंकर महावीर और भगवान बुद्ध की साधनाभूमि रहा है। इसका ज़िक्र ऋगवेद, अथर्ववेद, तैत्तिरीय उपनिषद, वायु पुराण, महाभारत, वाल्मीकि रामायण आदि में आता है। जैनग्रंथ विविध तीर्थकल्प के अनुसार राजगीर जरासंध, श्रेणिक, बिम्बसार, कनिक आदि प्रसिद्ध शासकों का निवास स्थान था। जरासंध ने यहीं श्रीकृष्ण को हराकर मथुरा से द्वारिका जाने को विवश किया था।



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