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Showing posts from January, 2020

लिट्टी चोखा बिहारी के लिए व्यंजन नहीं एहसास है

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मुझे घर से बाहर रहते हुए 12 साल हो गए। पहले पटना, रांची और कोलकाता की यात्रा के बाद 2015 में हरिद्वार आया और 2017 से दिल्ली-एनसीआर में हूं। लेकिन अपनी मिट्टी से जुड़ाव कभी खत्म नहीं हुआ। मैंने पिछली होली 2014 में परिवार के साथ मनाया था। हर साल पर्व त्योहार पर घर की याद आती रहती है। जब पटना में था शनिवार-रविवार घरवालों के साथ ही बिताता था। अब ऐसा वक़्त आया है कि साल या दो साल में एक बार ही घर जा पाता हूं। सच में जहां आपका बचपन बीतत ा है उस जगह को आप भुला नहीं पाते, यही मेरे साथ भी है। समय बदलने के साथ साथ हालात भी बदलता है और एक समय ऐसा आता है जब घर का मोह छोड़कर कुछ कर गुजरने की चाहत आपको सभी चीजों से विरक्त कर देती है। आज सुबह अचानक लिट्टी बनाने का प्लान बना सोचा चलो इसी बहाने कुछ पुरानी यादों का ताजा कर लिया जाए। घर पर ठंड के दिनों में पापा उपले (गोइठा) पर सेंककर बनाते थे। यहां व्यवस्था न होने के कारण तेल में फ्राई कर बनाने का सोचा। वैसे छुट्टी होने के कारण आलस्य की पराकाष्ठा पर कर चुका था। अचानक दिमाग में आईडिया आने के बाद शरीर में फुर्ती आ गयी। तुरंत उठकर समान तैयार

बादलों के बीच सुकून से समय बिताने के लिए लैंसडाउन सबसे शानदार जगह

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महानगर के समीप अगर कोई हिल स्टेशन हो, तो आज की भागती जिंदगी के लिए वह सोने पर सुहागे से कम नहीं है। दिल्लीवासियों के लिए उत्तराखंड या हिमाचल प्रदेश के पर्यटन स्थल सबसे पसंदीदा वीकेंड गेटवेज में से एक हैं। खासकर, ऋषिकेश, मसूरी, नैनीताल, शिमला, मनाली आदि। लेकिन यहां कई बार भीड़ छुट्टियों का मजा किरकिरा भी कर देती है। इनमें उत्तराखंड का लैंसडाउन थोड़ा अलग है, जहां सुकून के साथ मिलता है प्रकृति के बीच समय बिताने का मौका... प्रसिद्ध चीनी दार्शनिक लाओ सू ने कहा था कि एक अच्छे यात्री की कोई निश्चित योजना नहीं होती है और न ही वह कहीं पहुंचने की इच्छा या अभिलाषा रखता है। वह बस चलते ही रहना चाहता है। हमारे घुमक्कड़ों का समूह भी कुछ ऐसी ही ख्वाहिश रखता था। इसलिए मौका मिला नहीं कि मन शहर से बाहर निकलने को आतुर हो जाता है। वीकेंड पर लैंसडाउन जाने का प्लान भी यूं ही बन गया। दिल्ली से करीब 270 किमी. की दूरी पर स्थित पहाड़ी स्थल सैलानियों की भीड़-भाड़ से अभी भी काफी हद तक बचा हुआ है। तय हुआ कि अहले सुबह पौ फटने से पहले निकल पड़ेंगे, जिससे ट्रैफिक की बाधा न मिले। हमने दिल्ली-मेरठ-बिजन

आदिवासी क्षेत्र में नरसंहार और नई विचारधारा का विकास है खतरनाक

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झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम में पत्थलगड़ी का विरोध करने पर उपमुखिया जेम्स बूढ़ समेत सात लोगों की हत्या कर दी गयी। उनके शवों को पास के ही जंगलों में फेंक दिया गया। पुलिस का कहना है कि पत्थलगड़ी समर्थकों द्वारा रविवार को ग्रामीणों के साथ बैठक की गई थी। इसी दौरान समर्थकों ने विरोध करने वालों को पीटने लगे और जंगल में फेंक दिया। यह पूरी तरह नरसंहार ही है। पत्थलगड़ी हमेशा से स्वतंत्र व्यवस्था स्थापित करने के लिए आंदोलन करती आ रही है। ये सरकार की योजना का पुरजोर विरोध करते हैं। ये अपने क्षेत्र में सिर्फ आदिवासी को ही घुसने देते हैं। इसीलिए सीमा पर चेतावनी भी लिख दी जाती है। इनपर देशद्रोह का भी मुकदमा चल रहा है। हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री बनने के बाद 29 दिसंबर को फैसला लिया था कि पत्थलगड़ी समर्थकों पर लगे देशद्रोह के मुकदमे खत्म किए जाएंगे। इसके साथ साथ एक नई विचारधारा "कुटुंब परिवार" पांव पसार रही है। ये खुद को 'आदिवासी भारत' और खुद को 'आदिमानव' बताते हैं। तभी उनलोगों के नाम के आगे 'एसी' लिखा होता है। वे खुद शासक हैं, इसीलिए उनपर कोई राज नहीं कर

वसंत ऋतु के आगमन से नए कपोलों को मिलते हैं पंख

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वसंत के आगमन के साथ बारिश होने से उन नए कपोलों को पंख मिल जाते हैं। जो बाहर आकर इस नई दुनिया को देखना चाहते हैं और महसूस करना चाहते हैं। पतझड़ के बाद आने वाले नए पत्ते का भी प्रकृति हवा के झोंको से स्वागत करती है। गेंदा के नए फूल भी सहमति से मधुमक्खी को पराग ले जाने के लिए आमंत्रित करती है। वो नए उगे गेंहू के हरे पौधे जिसे देखकर लगता है किसी ने हरी घास की कालीन बिछा दी हो। उन गोभी मटर या आलू के पौधे जो अपना सर्वस्व न्यौछावर कर लोगों को पोषक तत्व प्रदान कर रही हो। पक्षियों का झुंड कलरव करते तालाब के इर्दगिर्द अटखेलियां करते हैं। दूर कहीं एक मशीन की आवाज के साथ सौंधी सौंधी खुशबू आती रहती है। पास जाकर पता चलता है कि यहां चूड़ा तैयार होता है। यहां लोग लंबी कतार के साथ उस भट्ठी के किनारे बैठकर हाथ सेंकते हुए अपनी बारी का इंतजार करते हैं। एक खुशी होती है कि कई महीनों की मेहनत के बाद निकले फसल को आज पूरा परिवार मिलकर एक साथ बड़े चाव से खाएगा। उन दिहाड़ी मजदूरी करने वालों की आंखों में खुशी झलकती है कि अब जल्दी काम मिलेगा और कमाए उन पैसों से बच्चों की ख्वाहिशें पूरी करूंगा। वो मकर सं

दीपिका के JNU जाने पर मीडिया में क्यों मचा है बवाल?

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वरुण ग्रोवर ने सही कहा था। मीडिया बारूद और माचिस भी देती है। जरूरत पड़े तो आग भी लगाती है। आग लगने के बाद लोगों दिखाती भी है कि ये देखो हमारे देश में क्या हो रहा है। कल शाम जब से दीपिका JNU गई है तब से तथाकथित और SO CALLED पत्रकार फ़ेसबुक और ट्विटर पर शोर मचाए हुए हैं। कैसे पत्रकार हो बे...अगर तुम्हें क्रांति करनी है तो तुम भी जाकर छात्रों की तरह विरोध करो। लेकिन सोशल मिडिया पर आकर किसी को सपोर्ट और विरोध करना है तो मुख्यधारा में उतर जाओ लेकिन पत्रकार होने का ढोंग मत करो। पत्रकारिता समाज का आईना है और आईने में तुमने पहले ही प्रतिबिंब बना लिया है। तुमने वही भेड़ चाल को अपना लिया है जहां सभी जा रहे हैं। तब तुममें और आम आदमी में कोई अंतर नहीं है। तुमने दिमाग में बना लिया कि दीपिका का विरोध करना चाहिए या किसी द्वारा कह दिया गया कि सोशल मीडिया पर विरोध करो। तुम आंख मूंदकर उसी रास्ते पर चल पड़े। मुझे ये समझ मे नहीं आया कि दीपिका का विरोध किस बात पर किया जा रहा है। इसीलिए कि वो JNU गई? या छात्रों के विरोध में शामिल हुई? क्या किसी ने दीपिका को एक भी शब्द कहते सुना? नहीं न