वसंत ऋतु के आगमन से नए कपोलों को मिलते हैं पंख

वसंत के आगमन के साथ बारिश होने से उन नए कपोलों को पंख मिल जाते हैं। जो बाहर आकर इस नई दुनिया को देखना चाहते हैं और महसूस करना चाहते हैं। पतझड़ के बाद आने वाले नए पत्ते का भी प्रकृति हवा के झोंको से स्वागत करती है। गेंदा के नए फूल भी सहमति से मधुमक्खी को पराग ले जाने के लिए आमंत्रित करती है। वो नए उगे गेंहू के हरे पौधे जिसे देखकर लगता है किसी ने हरी घास की कालीन बिछा दी हो। उन गोभी मटर या आलू के पौधे जो अपना सर्वस्व न्यौछावर कर लोगों को पोषक तत्व प्रदान कर रही हो। पक्षियों का झुंड कलरव करते तालाब के इर्दगिर्द अटखेलियां करते हैं। दूर कहीं एक मशीन की आवाज के साथ सौंधी सौंधी खुशबू आती रहती है। पास जाकर पता चलता है कि यहां चूड़ा तैयार होता है। यहां लोग लंबी कतार के साथ उस भट्ठी के किनारे बैठकर हाथ सेंकते हुए अपनी बारी का इंतजार करते हैं। एक खुशी होती है कि कई महीनों की मेहनत के बाद निकले फसल को आज पूरा परिवार मिलकर एक साथ बड़े चाव से खाएगा। उन दिहाड़ी मजदूरी करने वालों की आंखों में खुशी झलकती है कि अब जल्दी काम मिलेगा और कमाए उन पैसों से बच्चों की ख्वाहिशें पूरी करूंगा। वो मकर संक्रांति का समय जब कंपकपाती ठंड में जोश जोश में ठंडे पानी से नहाकर घरवालों के साथ बैठकर दही चूड़ा का आनंद लेना। अपनी साईकल लेकर दोस्तों के साथ दूर दूर तक घूमने जाना। मानो आज ही आज़ादी मिली हो और हमें पूरी धरती का भ्रमण करना है। उन स्कूलों बच्चों को खुशी होती है जब सबकी आराध्य मां सरस्वती के अवतरण का समय (वसंत पंचमी) आने वाली है। विद्या की देवी की मूर्ति देखने के लिए स्कूल बंक कर भागना और दोस्तों से पैसे जुटाकर उनकी स्थापना करने का विचार करना। ये उन यादों में शुमार करने की कोशिश करना कि इसबार नहीं तो अगली बार और पैसे जुटाकर मां सरस्वती के मूर्ति की स्थापना करना है। वसंत पंचमी के दिन खुशी से उठकर समय से पहले जाकर प्रसाद बनाने की तैयारी के साथ साज सज्जा में हाथ बंटाना उमंग और उल्लास लाता है। बच्चे इसी उम्मीद के साथ मां को प्रणाम करते हैं कि वो हमें विद्या देंगीं।

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