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कैसे कहूं कि तुम क्या हो मेरे लिए

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कैसे कहूं कि तुम क्या हो मेरे लिए। पूर्णिमा की चांद सी हो तुम, जो अपनी छटा से जग को रोशन करती है। घास पर पड़ी ओस की बूंद हो तुम, जो गगन से उतरकर भूमि में मिल जाती है। फूल की पंखुड़ियों में छिपी पराग हो तुम, जिसे फूल छिपाकर रखना चाहता है। समंदर की लहर सी हो तुम, जो दूर रहकर भी मुझमें समा जाती है। कैसे कहूं कि तुम क्या हो मेरे लिए।। वसंत की हवा हो तुम, जो पास से गुजर जाए तो बदन सिहर उठती है। पतझर के पत्ते सी हो तुम, जो पेड़ से बिछड़कर अपना अस्तित्व ढूंढती है। नदी की धार हो तुम, जो समुंदर में मिलकर खुद को भूल जाती है। पहाड़ की चोटी सी हो तुम, जो आकाश की बुलंदियों को छूना चाहती है। कैसे कहूं कि तुम क्या हो मेरे लिए।। नवनीत कुमार जायसवाल

जिंदगी की सच्चाई है मौत! जिसे छोड़कर कोई नहीं भाग सकता

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उस रात का इंतजार है जब मौत मुझसे आकर पूछे... चलें वो मुझे वक्त भी देगा लेकिन अब वक्त का क्या? जो बीत गया वो बीत गया... अब कोई उसे लौटा नहीं सकता मैं जनता हूं... अब ज्यादा वक्त नहीं है थोड़ी देर ही सही लेकिन हर किसी को एक न एक दिन आनी है वो हमेशा अपने चाहने वालों को पास बुला लेता है लेकिन मैंने कौन का कर्म किया जो तुम्हारा चाहने वाला हो गया चलो अच्छा है तुम ले चलो इस झंझावतों से शायद लोगों ने मेरा कद्र नहीं किया अब किसी और जन्म में आकर उन कमियों को पूरा करेंगे जो रह गई है... -नवनीत कुमार जायसवाल ये भी पढ़ें:- वो अनकही बातें हो कभी कह नहीं पाया

वो अनकही बातें हो कभी कह नहीं पाया

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तकलीफें बहुत सी रही है जिंदगी में। कुछ को हँस कर काट लेते हैं और कुछ को संघर्ष में। तुमको जाने देना भी बहुत तकलीफदेह था। मगर तकलीफों को सहन करना पड़ता है। उस दिन भी यही किया था। काश! तुम देख पाती, समझ पाती कि अपने ही हाथों से अपनी क़ीमती चीज को तोड़ देना कितना दुःखद होता है। ये ठीक उसी तरह था जैसे आसमान में इकलौती पतंग आपकी उड़ रही हो और आप उसकी डोर अपने ही हाथों से तोड़ दें, हवा में बह जाने के लिए। उस दिन तुम्हारे सवाल का जवाब "हाँ" में देना था। मगर दिया कुछ और गया था। तुमसे मोहब्बत के सारे सबूत, सारी भावनाएं चेहरे पर से मिटा दी गयी थीं। वो खोखली मुस्कान,जो चेहरे पर तैर रही थी, उसको पढ़ने भी नही दिया तुमको। ये बहुत मुश्किल था,मगर ये करने का निर्णय बहुत दृढ़ था। तुम जा रही थी, और मैं देख रहा था। कई बार रोकना चाहा, कई बार सोचा कि तुम्हारा नाम पुकार कर बुला लूँ वापस और समेट लूँ तुम्हे अपनी बाहों की कैद में। मगर मेरे लिए ये मुमकिन न था उस दिन। तुम्हें जाने देना ही मेरी मोहब्बत की जीत थी और न मैं खुद हारना चाहता था और न ही तुमको हारने देना चाहता था। बेईमानी, कभी-कभी रिश...

देखा है मैंने

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देखा है मैंने एक बुढ़ी आँखों को तरसते हुए. जो कही दूर से खाने की तलाश में थी. देखा है मैंने ठिठुरते हुए हाथ को. जो राह ताक रही थी एक कपड़े के लिए. देखा है मैंने भूख से बिलखते छोटे बच्चे को. जिसे तलाश है की कोई एक वक़्त का खाना दे दे. देखा है मैंने उस बेबस बाप को. जो अपना पूरा समय बेटे की आस में गुजार दिया।

उसकी यादों का घराना

एक और शाम ढल गयी उसकी याद के शामयानें में। सो कर भी आँखे खुली रही उसकी यादो के आशियाने में । जाग जाग कर ना बीत जाये ज़िन्दगी बिना वजह के। वरना लोग कहेंगे, कमीं तो थी इसके दिल के इ...

बूँद

कुछ बूँद गिरी है आज यहाँ, न समझू मैं वह क्यों आयी, भीग गया है जो तन मेरा, वह क्यों आई मैं ना जानू, मधु सी मीठी वह याद रही, सविता की किरणों सी लाली भायी, आज न जाने क्यों वह मेरे , नयनो में बिन बादल है आई, कुछ बूँद गिरी है आज यहाँ, मैं न समझू वह क्यों आई , है याद बड़ी कोमल उसकी, नित प्रेम उसी में ही पायीं , जिससे माँगा था मैंने उसको, उसको भी आज न लज़्ज़ा आई, कुछ बूँद गिरी है आज यहाँ , मैं न समझू वह क्यों आई।                                     

छोड़ दीं पढ़ाई

बिहार बोर्ड करे लागल अब कड़ाई । का करीं पढ़ी की छोड़ दी पढ़ाई ।। पहिला में रहनी त कुछो ना बुझाइल, दूसरा में गइनी त कखगघ आइल । तीसरा में लइकन से कइनी लड़ाई , का करीं पढ़ी की छोड़ दी पढ़ाई ।। पहाड़ा याद भइल चौथा में आके, हेड सर से कहनी हम पांचवां मे आके । डरेस के पैसा बोलीं कहिया भेंटाई, का करीं पढ़ी की छोड़ दी पढ़ाई ।। छठा मे लगनी खूब गीत हम गावे, गीतवा हमार लागल सबकर के भावे । मन बा खेसरिया से भी आगे जाई, का करीं पढ़ी कि छोड़ दी पढ़ाई ।। सातवाँ मे छोड़ देनी बकरी चरावल, भूल गइनी सब हम सर के पढ़ावल । उम्मीद बा नौंवा में साइकिल भेटाई, का करी पढ़ी कि छोड़ दी पढ़ाई ।। फेल अगर मैट्रिक में हो भी  हम जाएम, त बन जाएम नेता घोटाला कराएम । रोज अखबार में नाम हमरो छपाई, का करी पढ़ी की छोड़ दी पढ़ाई ।।

एक भिखारी का जीवन

बस्तियों के बीच शोरगुल सा माहौल था, समां खामोश थी मौसम गमगीन था। आते-जाते राहगीर देखकर थे हैरान, इतनी शोर क्यों है इससे थे अंजान। माहौल को चीरकर था किसी ने बोला, आज मृतशय्या पर है जो था सबका मुंहबोला। याद आयी मुझे उसकी जब मिला था अनजान राहों पर, हाथ में कटोरे लिए बैठा था चौराहों पर। दया की भीख सबसे था वो मांगता, एक-एक,दो-दो रुपये राहगीर उसे देता रहता। अचानक टूटा दु:खों का पहाड़ उसपर, पल भर रुका फिर ढह गया अर्श से फर्श पर। किसी ने न सुनी उसकी चीख पुकार, शोर-शराबे में दबकर रह गयी उसकी करुण दहाड़। लोगों ने सोंचा होगा कोई लावारिस, कौन लाश को ठिकाने लगाए, है कोई वारिस। जैसे तैसे पुलिस ले गयी लाश, उसे अब न थी कफन की आश। आत्मा अभी भी उसकी सोंचती होगी, गरीब पैदा न होना यह सबसे कहती होगी।                                         नवनीत कुमार      ...

आज का बिहार डरता है

चले गए वो शांति के दिन आज का बिहार डरता है  हो रहे हत्या और किडनैप चैन कही न आता है बंद हुआ शराब यहाँ गलत परिणाम नजर आता है भूखे मर रहे गरीब किसान फ्री का माल  सब खाता है बात बात पर चलती गोली लालू के दिन याद दिलाता है कहां गए नीतीश के वो दिन आज का बिहार डरता है कहते है हो रहा विकास नजर कही न आता है खुलेआम करते चोरी पकड़ किसी के न आता है पैसों की खातिर करते लूटपाट डर इसका बैठ जाता है डराते रहते कमजोरों को बाहुबली बन कुर्सी पर बैठ जाता है यही वजह से आज का जंगलराज मुझे डरता है                                                      नवनीत कुमार जायसवाल                                                  एम ए पत्रकारिता एवं जनसंचार                     ...

जिंदगी हमें

किधर ले जा रही है जिंदगी हमें। धूमिल सी लग रही है जिंदगी हमें। रास्ते का पता मगर मंजिल मिल नही रही हमें। गुमनाम सी लग रही जिंदगी हमें। कहाँ है वो शख्स जो राह दिखाए हमें। पल-पल तड़पा रही जिंदगी हमें। जिम्मेदारियों का बोझ न बढने दे रही हमें। गिले-शिकवे तो बहुत है जिंदगी से हमें। बार-बार एहसास दिलाती रहती हमें। बैठा था सागर मे मोती ढूंढ़ने, हाथ कुछ न अाया हमें। मन के अतरंगो ने बहुत समझाया हमें। शाॅर्टकट का झोल-झाल कभी समझ न आया हमें। मेहनत ही सफलता का मूलमंत्र लग रहा है हमें। मगर पता नही किधर ले जा रही है जिंदगी हमें।                                   नवनीत कुमार जायसवाल                               एम.ए.पत्रकारिता एवं जनसंचार     ...

हम आज के युवा है

हम आज के युवा है, देश के भविष्य है। क्रान्ति का हुनर रखते है, हमसे यह देश है। सोये को हम जगायेंगे, गिरते को हम उठायेंगे। हम ही अाज के राम, हम ही आज के श्री कृष्ण है। देश की भलाई में आगे आयें, यही संकल्प लेकर बढ़ते रहते है। यह राष्ट्र हमारा है और यही हमारा स्वदेश है। महापुरुषों से प्रेरणा लेकर स्वच्छंद बढते जाएंगे । परतंत्रता की जंजीर तोड़ कर आगे बढते जाएंगें । चाहे कितनी भी मुश्किल आये, हम नही घबरायेंगे। समाज की कुरीतियों का मुकाबला डटकर करते जाएंगे। राष्ट्र की संस्कृति और परम्परा को आगे बढाते जाएंगे। मार भगाएंगे दहेज दानव को, भ्रष्टाचार मुक्त बनाएंगे। राष्ट्र की एकता और अखंडता को बचाए चलते जाएंगे। भाईचारा का संदेश हम जन-जन तक पहुंचाएंगे। मातृभूमि का मान बढाने,  निकले आज युवा सभी। मन में दृढ संकल्प लिए पहल करने चले सभी । हम ही है सृजनकर्ता, हम ही कल के भविष्य है। क्रान्ति का हुनर रखते, हमसे यह देश है। हम आज के युवा है, देश के भविष्य है।                 ...

कभी सोंचा न था

दिल जो चाहे उसे अपना लुं मैं। अपनी काबलियत को दिल से लगा लुं मैं। कौन कहता है दुनिया मतलबी है। अपने मतलब के लिए दुनिया को अपना लुं मैं। दुनिया सफलता के लिए क्या-क्या न करे। मगर सफलता के लिए क्या-क्या करुं मैं। वो बीते दिन की बातें, परिश्रम की वो यादें। बहुत याद आती है वो बीती बातें। मगर दिन कैसे ढल गये पता नही चला हमें। कभी सोंचा न था बड़ा बनुंगा मैं। अपने परिश्रम से आगे बढुंगा मै। सोंचा था आगे कुछ करूंगा मैं। सफलता के कदम चुमुंगा मैं। वो बीती बातें याद रखूंगा मैं। कभी सोंचा न था बड़ा बनुंगा मै।                                 नवनीत कुमार जायसवाल                           एम.ए.पत्रकारिता एवं जनसंचार               ...

युवा जो राष्ट्र बदले

युवा वह जो राष्ट्र बदले, न तृष्णा में संलिप्त रहे । युवा वह जो सोंच बदले, न संसारिक मोह में लिप्त रहे। युवा वह जो सबकी मदद करे, न किसी को ठेस पहुंचाए। युवा वह जो अपना पुरुषार्थ बदले, न कुरीतियों के पथ पर जाए। हे मानव तुम अाज के युवा हो, पहले तुम खुद को बदलो। उठो, जागो, तभी संसार बदलेगा,  देश बदलेगी । हुनर है तुममें तुम कुछ करो, युं हाथ पर हाथ रखकर बैठे न रहो। भगवान ने यह शरीर मानव धर्म के लिए दिया है, पहले तुम बदलो फिर देश को बदलो। तुम्हारा भविष्य अपने हाथ में है, यह धन-संपत्ति पाने कि इच्छा छोड़ दो । लोग तो पैसे कमाने के लिए सब कुछ छोड़ देते हैं, तुम अपना लक्ष्य पाने के लिए सबकुछ छोड़ दो ।                                                नवनीत कुमार जायसवाल               ...

माता कहती पुकार के

माता कहती पुकार के, पुत्र मेरे राष्ट्र के। अब उठो जागो तुम, युं हाथ पर हाथ धरे न बैठो तुम। अपनी सोंच बदलना है तुम्हे, अन्यायों से लङना है तुम्हे। करना है कुछ काम तुम्हे, लेकर चलना है साथ तुम्हे। तुम अाज के युवा हो, देश के तुम भाग्य विधाता हो। बहू-बेटियों को बचाना है तुम्हे, बुद्ध-महावीर जैसा बनना है तुम्हे। सभी को एक साथ लेकर, देश में क्रांति लाना है तुम्हे। क्यों तुम व्यर्थ बैठे हो, भविष्य का गांधी बनना है तुम्हे। हरियाली इस धरा पर लाकर, वृक्षों को बचाना है तुम्हे। मार भगाओ दहेज दानव को, भविष्य को बचाना है तुम्हे। फल की चिन्ता मत करो, एक अच्छा राष्ट्र बनाना है तुम्हे ।                                        नवनीत कुमार जायसवाल                         ...

दुनिया की लीला

ये कैसी दुनिया की लीला है। न जाने क्यूं सभी इस दुनिया में अकेला है। अकेलेपन को दुर करने जाते हैं लोग मन्दिर में। मगर दिल के सुनापन को दुर कौन कर सकता है। सूनेपन के आग में जलते रहते हैं लोग। एक सच्चा साथी ढूंढते रहते हैं लोग। इस दुनिया में सही को गलत मान लेते हैं लोग। फिर पछताते,सर पटकते रह जाते हैं लोग। सोंचते हैं कि काश ये गलती न करता। मगर क्या फायदा अब समय चला बीतता। सच्चे साथी मिलते मुश्किल से, गलत मिलने में देर न लगती। मुश्किल तो हजारों हैं लेकिन, मुश्किल को पार किये बिना मंजिल नही मिलती।                                             नवनीत कुमार जायसवाल                            एम.ए.पत्रकारिता एवं जनसंचार   ...

देश की भलाई

दिन है ढलते वक्त है बीतता, जाने कैसी घङी है अायी। देश को कुछ दिखाने का समय नजदीक है अायी। कहीं हो रहे दंगे, कहीं हो रही लङाई। नेता अपने वोट के खातिर कराते मार-पिटाई। कहीं पैसो की होङ है,तो कहीं धर्म की लङाई। इसके कारण लङते अापस में भाई-भाई । तमाशे बने देख रहे हैं, मुख से कुछ न बोल रहे हैं। दुनिया आगे बढ रही है, बुद्धि सभी की घट रही है। लोग जाति-धर्म के नाम पर करते हैरान-परेशान। क्यूं न समझते आखिर एक माँ की है सब संतान। न जाने इस देश का क्या होगा। अब युवा को जाग्रत होना होगा। सोंच बदलकर आगे आयें, तभी होगा देश की भलाई ।                                                       नवनीत कुमार जायसवाल                    ...

मेरी खोयी दुनिया

है कहीं खोयी सी दुनिया मेरी , न राह का पता,न मंजिल का। कोशिश है मैं राह खुद बनाऊं, आगे बढकर मंजिल खुद मै पाऊँ। यही सोंच लेकर बढ चला मैं, राह की मुश्किलो को दुर करुं मैं। पर पता नही किस ओर जा रहा हूं, अपने मकसद से भटकता जा रहा हूं। सोंचता हूं अाने वाले कल की, यही सोंचकर डरता जा रहा हूं। होगी कोई अजीब सी दुनिया इसके बाद, संधर्ष ही होंगे कुछ समय के बाद। दुनिया के नक्सेकदम पर चलना पङेगा, जो कहेगी दुनिया वह करना पङेगा। तब होगी असली जंग जिंदगी की, तब शुरू होगी सफर जिंदगी की। घर वाले भी होंगे परेशान, क्या कर रहा हूं मैं इससे होंगे अनजान। चुनौतियों का सामना करना पङेगा, अपनी मंजिल खुद पाना पङेगा। कुछ कर दिखाऊंगा अपनी जिंदगी को, दुनिया याद रखेगी इस युक्ति को।                        नवनीत कुमार जायसवाल                    एम.ए. पत्रकारिता एवं जनसंचार   ...

बिहार का बेटा

हूँ मैं बेटा बिहार का, कर्म मेरा परोपकार का। भाषा मेरी भोजपुरी है, वीरों की यह भूमि है। यहाँ ज्ञान मिला बुद्ध को, कर्ण की यह जन्मभूमि है। यह बिहार है उस जमाने की, जहां हिम्मत न ...