देश की भलाई

दिन है ढलते वक्त है बीतता, जाने कैसी घङी है अायी।
देश को कुछ दिखाने का समय नजदीक है अायी।
कहीं हो रहे दंगे, कहीं हो रही लङाई।
नेता अपने वोट के खातिर कराते मार-पिटाई।
कहीं पैसो की होङ है,तो कहीं धर्म की लङाई।
इसके कारण लङते अापस में भाई-भाई ।
तमाशे बने देख रहे हैं, मुख से कुछ न बोल रहे हैं।
दुनिया आगे बढ रही है, बुद्धि सभी की घट रही है।
लोग जाति-धर्म के नाम पर करते हैरान-परेशान।
क्यूं न समझते आखिर एक माँ की है सब संतान।
न जाने इस देश का क्या होगा।
अब युवा को जाग्रत होना होगा।
सोंच बदलकर आगे आयें, तभी होगा देश की भलाई ।
                     
                                नवनीत कुमार जायसवाल
                             एम.ए.पत्रकारिता एवं जनसंचार
                           देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार
 

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