रक्षाबंधन पर बहनों से राखी बंधवाना, एक दूसरे को मिठाई खिलाना और फिर गिफ्ट देना, ऐसा तो हर साल होता है लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि देश के एक बड़े सामाजिक बदलाव के दौर से गुजर रहा है। अगर सब कुछ इस पैटर्न पर चलता रहा तो रक्षाबंधन की ख़ुशी आने वाले दिनों में फीकी पड़ सकती है।
रक्षाबंधन के बहाने हम देश में सेक्स रेशियों की मौजूदा स्थिति पर गौर कर रहे हैं। सेक्स रेशियों का सीधा मतलब ये है कि किसी भी जगह प्रति 1000 पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की तादात कितनी है। हम देख सकते है कि साल 2001 की जनगणना के मुताबिक, देश में औसतन हजार पुरुषों के मुकाबले 943 महिलाएं है। सेक्स रेशियों के मामले में सबसे आगे केरल है, जहाँ प्रति हजार पुरुष के मुकाबले 1084 महिलाएं हैं। लिस्ट में हरियाणा सबसे निचले पायदान पर है, जहाँ प्रति हजार पुरुषों के मुकाबले 879 महिलाएं ही हैं।
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चिंता की बात यह है कि पिछले 5 दशकों से देश में सेक्स रेशियों 930 के आसपास ही बना हुआ है इसमें, तेज रफ़्तार से सुधार होता नहीं दिख रहा है। अगर तर्क की बात करें, तो किसी घर की एक ही बहन अपने चाहे कितने ही भाइयों को राखी बांध सकती है, लेकिन बात इतनी सीधी नहीं है। अब उच्च वर्गीय ही नहीं, मध्य या निम्न मध्य वर्ग के परिवारों में भी दो संतानों का चलन तेजी से बढ़ रहा है। नया ट्रेंड ये भी है कि अगर पहली संतान लड़का हो तो उसके बाद फुलस्टॉप। इन बातों पर गौर करने का रक्षाबंधन से बेहतर मौका और कोण हो सकता है। जब गर्भ में पलती कन्याओं की रक्षा होगी और संतान के बीच लिंग के आधार पर भेदभाव ख़त्म होगा, तभी राखी का त्योहार आने वाले दौड़ में भी खुशियों का पैगाम लेकर आ सकेगा।
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