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Showing posts from August, 2017

छात्र छात्राओं को अब साफ़ सुथरा और पौष्टिक भोजन मिलेगा

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उत्तराखंड के चार जिले देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और नैनीताल के सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में छात्र छात्राओं को अब अधिक साफ़ सुथरा और पौष्टिक भोजन उपलब्ध हो सकेगा और साथ ही बच्चे पठन-पाठन पर अधिक ध्यान दे सकेंगे, अब उन्हें दोपहर के भोजन को लेकर मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी। त्रिवेंद्र सरकार की मंत्रिमंडल ने इन चार जिलों में दोपहर का भोजन बनाने का जिम्मा अक्षय पात्र फाउंडेशन को सौंपा है।  बुधवार को सचिवालय में हुई त्रिवेंद्र सरकार की मंत्रिमंडल की बैठक में कई निर्णय लिए गए  । सरकार के प्रवक्ता और  कैबिनेट मंत्री  मदन कौशिक ने मंत्रिमंडल के फैसलों की जानकारी दी । उन्होंने बताया कि दो मैदानी जिलों हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर के साथ ही और दो जिलों में देहरादून व नैनीताल के मैदानी क्षेत्रों के विद्यालयों में मध्याह्न भोजन के लिए नई व्यवस्था पर सहमति बन गई है।  चार जिलों के कक्षा एक से आठवीं तक 3,59,435 छात्र-छात्राओं को दोपहर का भोजन स्वयंसेवी संस्था अक्षय पात्र फाउंडेशन के जरिए मुहैया कराया जाएगा। इस वक़्त संस्था वर्तमान में दोपहर का भोजन बनाने पर हो रहे खर्च पर भी अधिक साफ

उत्तराखंड में खेती की तकदीर

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उत्तराखंड में 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के लक्ष्य को राज्य के धरातल पर आकर देने के लिए त्रिवेंद्र सरकार ने कवायद शुरू कर दी है। इस कड़ी में कृषि व उससे जुड़े रेखीय बिभागों को विशिष्ट कृषि उत्पादन के लिए पंचायत के साथ ही क्लस्टर दृष्टिकोण को मौजूदा प्रणाली के अनुसार अपनाने को कहा गया है। राज्य सरकार उन्नत बीज, नयी तकनीकी और खेती के लिए एक लाख तक दो फीसदी ब्याज पर ऋण समेत अन्य योजनाओं के लिए कदम उठा रही है। ये तो ठीक है लेकिन पिछले अनुभवों को देखा जाये तो इसमें बहुत सी चुनौतियां है जिसे पार करना वर्तमान सरकार के लिए आम बात नहीं है।  दरअसल देखा जाए तो विषम भूगोल वाले उत्तराखंड की परिस्थितियां बेहद जटिल है। मैदानी क्षेत्रों में खेती पर शहरीकरण की मार पड़ी है तो वहीं पर्वतीय क्षेत्रो में सुविधाओं और रोजगार के आभाव से हो रहे पलायन के कारण गांव खाली हो रहे हैं। पलायन के कारण खेती की सबसे ख़राब हालत पहाड़ में ही है। यही नहीं मौसम की खराबी, जंगली जानवरों का भय, बंजर खेत जैसे कारणों से लोगों का खेती से मोह भंग हो रहा है।  आपको बता दें कि राज्य के 95 में से 71 विकासखंडो में खेती पूरी तरह

उत्तराखंड में रोजाना 50 किसान खेती छोड़ रहे हैं

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उत्तराखंड राज्य के लिए चुनौतियाँ दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है, वर्त्तमान में एक नयी चुनौती उभरकर सामने आयी है, प्रदेश में रोजाना 50 किसान खेती छोड़कर अन्य व्यवसाय अपना रहे हैं जो राज्य के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। बीते 17 वर्षो में जब से राज्य का गठन हुआ है तब से लगभग तीन लाख लोग खेती छोड़ चुके हैं। इनमे से ज़्यादातर लोग सूबे के दुर्गम पहाड़ी जिलों से पलायन कर चुके हैं। अखिल भारतीय किसान महासभा ने एक सर्वे किया है और उन्होंने दावा किया है कि राज्य में  करीब नौ लाख परिवार ही खेती कर रहे हैं। प्रदेश में घटती खेती के पीछे इन्वेस्टमेंट की कमी को भी प्रमुख कारन माना जा रहा है पहाड़ में जोत छोटी होने के कारण खेती में निवेश नहीं हो पा रहा है और जो किसान खेती के नाम पर लोन लेते हैं उसका उपयोग वे व्यवसाय या घर बनाने में कर देते हैं।  अभी तक पूरे प्रदेश में इतने लोग खेती छोड़ चुके है  अभी तक जिलावार खेती छोड़ने वाले किसान  देहरादून में 20625  किसान,  नैनीताल में 15075  किसान,  चमोली में 18535  किसान,  अल्मोड़ा में 36401  किसान,  बागेश्वर में 10073  किसान,  उत्तरकाशी में 11710  किसान, 

भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ लोग बीमार होने के लिए खाते हैं

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हम भारतीयों की एक खास बात है, हमलोग खाने पीने के शौकीन होते हैं। आपको राह चलते ऐसे बहुत से ठेले, रेहड़ी और स्टॉल मिल जायेंगे जहाँ ये सब खाने की चीजें आसानी से मिल जाती है और खासकर महिलाएं इन चीजों की शौकीन होती हैं। गोलगप्पे चटाखेदार मसाला पानी, उबले आलू मटर से भरे गोल गोल गोलगप्पे को देखकर ही मुंह में पानी आ जाता है। गोलगप्पे,  पानी बतासे,  फुचका और पता नहीं क्या क्या नाम से बोला जाता है। चाट अगर कुछ  चटपटा  खाने का मन है, तो  चाट  से स्वादिष्ट और  चटपटा  क्या हो सकता है। चाट कई प्रकार के होते हैं छोले चाट, टिक्की चाट  मोमोज़ मोमोज तो आज कल लगभग सभी की पसंद बन गयी है और ज्यादातर तो यह लड़कियों को पसंद होता है।  मोमोज को भाप में पकाकर बनाया जाता है।  इसे बनाने में तेल भी बहुत कम लगता है. इसलिए ये खाने में हल्के और पौष्टिक भी होते हैं. मोमोज़ एक तिब्बती, लज़ीज़ व्यंजन है जिसे भारत में लोग बेहद पसंद करते हैं . छोले-भटूरे छोले भटूरे  का नाम पंजाब में पॉपुलर डिश में लिया जाता है और वाकई इसका चटपटा स्वाद हर किसी को भाता है.  चौमीन चाउमिन बच्चों के तो फेवरेट होते ही हैं

भगवा आतंकवाद है ? केसरीया आतंकवाद vs हरा आतंकवाद

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कुछ समय पहले की बात है भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संवित पात्रा ने कहा कि अगर केसरिया आतंकवाद है तो हरा भी आतंकवाद ही है और ये काफी हद तक सही भी है। कुकी हरा रंग मुस्लिम का प्रतीक माना जाता है।  आइये जानते है क्या है भगवा आतंकवाद  भगवा आतंकवाद का सबसे पहला प्रयोग अंग्रेज़ी में सन् 2002 में फ़्रंटलाईन नामक अंग्रेज़ी पत्रिका के एक लेख में गुजरात दंगे को संबोधन करने के लिए हुअा था। लेकिन इस शब्द का अधिक प्रयोग 29  सितंबर सन् 2008 के मुंबई के मालेगाँव धमाके के बाद हुआ क्योंकि जांच के सिलसिले में धमाके से संबद्धित, कथित तौर पर, एक हिन्दू संगठन से जुङे लोगों को गिरफ्तार किया गया। हालांकि इस्लामी उग्रवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन पर भी दोष आया था क्योंकि इसी इलाके में सन् 2006 के धमाके में इंडियन मुजाहिदीन का हाथ होने की आशंका थी (असल में इंडियन मुजाहिदीन उस समय 'स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट आॅफ़ इंडिया' के नाम से जाना जाता था)। लेकिन, जांच आगे बढ़ने के बाद किसी हिन्दू संगठन के शामिल होने की कथित तौर पर​ पुष्टि हो गई। शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के अनुसार, शरद पवार ने ही सबसे प

हर बिहारी के अंदर क्यों होती है नेतागीरी

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हम सब जानते हैं कि बिहारी हर जगह हैं। देश हो या विदेश के अधिकांश कॉलेज में अपनी मौजूदगी बनाने में सक्षम हैं। उन में से आप एक दो को जानते होंगे। आप उसमे हमेशा अपनी चाहत को सच्चाई में बदलने की चाहत देखा होगा। उनमें एक जोश एक जूनून देखा होगा, जो किसी भी हद्द तक जाने को तैयार हो जाते होंगे।  बिहारी नेतागीरी करने में भी अपनी जिंदगी जीने के मायने ढूंढ लेते हैं, उनके  DNA में ही ये सब गुण होता है।   हमेशा अपनी लाइफ संघर्ष और आर्दशो में जीना पंसद करते हैं    बिहारी अपनी चाहत को पाने के लिए के लिए हमेशा अपनी लाइफ संघर्ष और आर्दशो में जीना पंसद करते हैं, वह अपने काम को लेकर दृढ़ संकल्प रहते है .अगर बिहारी आपका रुम मेट हो तो आपको इस बात का एहसास जरुर हो गया होगा.  अपनी मंजिल खुद तय करते हैं  मंजिल जब आसन हो तो चैले़ज का मजा निकल जाता हैं. उन्हें सब साफ मालुम होता हैं क्या करना हैं ? क्यों करना हैं ? कैसे करना हैं ? बिहारी हमेशा दौलत , शोहरत , ताकत , प्यार , दोस्ती , मंजिल की तलब में अपना रास्ता खुद व खुद साफ करते हैं. वे खुद को काफी गौरवान्वित समझते हैं  एक लोजीकल बॉलीवुड फिल्म

सूर्यनमस्कार द्वारा करें सूरज का वंदना और अभिवादन

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सूर्य नमस्कार शरीर का पूर्ण व्यायाम कहा जाता है। योग विशेषज्ञ कहते हैं कि सूर्य नमस्कार के 12 सेट 12 से 15 मिनट में 288 शक्तिशाली योग आसनों के समान है। जिनके पास समय की कमी है, स्वस्थ अनुभव करना चाहते हैं पर जानते नहीं कैसे करें। सूर्य नमस्कार के जगत में उनका स्वागत है। सूर्य नमस्कार 12 आसनों का एक क्रम है। सूर्य नमस्कार की सबसे अच्छी बात यह है कि जो लोग समय की कमी के कारण योग न कर पाने की शिकायत करते हैं, उनके व्यस्त समय में भी यह आसानी से बैठ जाता है। सूर्य नमस्कार के 12 सेट यदि सुबह के समय त्वरित गति से किया जाए तो एक अच्छा कार्डीओवैस्कुलर व्यायाम है। यदि इसी को धीमी गति से किया जाए तो ये आसन मांसपेशिओं को सुडौल बनाने वाले हो जाते हैं। सुबह व्यायाम की शुरूआत अंगो को हल्के फुल्के खिचाव से शरीर की अकड़न निकाल कर सूर्य नमस्कार के कुछ सेट करें जिससे शरीर का लचीलापन बढ़ता है और शरीर को गहन योग आसनों के लिये तैयार भी करता है। सूर्य नमस्कार का नियमित अभ्यास शरीर के विभिन्न अंगों को अनोखे लाभ प्रदान करता है। ये योग आसन हृदय, आंत, पेट, छाती, गला और पैर व शरीर के सभी अंगों पर गहरा

क्या ? देशभक्ति दिखाने के लिए एक दिन ही काफी है

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आज हम बहुत ही हर्षोल्लास के साथ स्वन्त्रन्ता दिवस के 70 वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। आज ही के दिन 1947 में हमारा देश आजाद हुआ था और हर वर्ष की भांति इस वर्ष हम गर्व और उल्लास के साथ इस पर्व की मना रहे हैं।  आजादी के लिए हम उन सभी अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों के ऋणी हैं जिन्होंने इसके लिए कुर्बानियां दी थीं। कित्तूर की रानी चेन्नम्मा, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, भारत छोड़ो आंदोलन की शहीद मातंगिनी हाज़रा जैसी वीरांगनाओं के अनेक उदाहरण हैं। देश के लिए जान की बाजी लगा देने वाले सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, तथा बिरसा मुंडा जैसे हजारों स्वतंत्रता सेनानियों को हम कभी नहीं भुला सकते। आजादी की लड़ाई की शुरुआत से ही हम सौभाग्यशाली रहे हैं कि देश को राह दिखाने वाले अनेक महापुरुषों और क्रांतिकारियों का हमें आशीर्वाद मिला।  उनका उद्देश्य सिर्फ राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करना नहीं था। महात्मा गांधी ने समाज और राष्ट्र के चरित्र निर्माण पर बल दिया था। गांधीजी ने जिन सिद्धांतों को अपनाने की बात कही थी, वे हमारे लिए आज भी प्रासंगिक हैं।  राष्ट्रव्यापी सुधार और

उत्तराखंड में सामुदायिक रेडियो का योगदान

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सामुदायिक रेडियो को किसी एक परिभाषा में बाँधना सम्भव नहीं है। प्रत्येक देश के संस्कृति सम्बन्धी क़ानूनों में अन्तर होने के कारण देश और काल के साथ इसकी परिभाषा बदल जाती है। किन्तु मोटे तौर पर किसी छोटे समुदाय द्वारा संचालित कम लागत वाला रेडियो स्टेशन जो समुदाय के हितों, उसकी पसंद और समुदाय के विकास को दृष्टिगत रखते हुए ग़ैरव्यावसायिक प्रसारण करता है, सामुदायिक रेडियो केन्द्र कहलाता है। ऐसे रेडियो केन्द्र द्वारा कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, समाज कल्याण, सामुदायिक विकास, संस्कृति सम्बन्धी कार्यक्रमों के प्रसारण के साथ-साथ समुदाय के लिए तात्कालिक प्रासंगिता के कार्यक्रमों का प्रसारण किया जा सकता है। सामुदायिक केन्द्र का उद्देशय समुदाय के सदस्यों को शामिल कर समुदाय के लिए कार्य करना है।  सामुदायिक रेडियो मुख्यतः सामुदाय के लिए कार्य करती है। उत्तराखंड में सामुदायिक रेडियो की स्थापना सामाजिक कार्य के लिए हुआ है और यह अपने तरीके से सही कार्य कर रहे हैं। रेडियो खुशी को देखा जाए तो वह पूरी तरह सामाजिक बदलाव व जागरूकता के लिए कार्य कर रही है वहीं हिमगिरी की आवाज भी शहरी क्षेत्र में रहते हुए भी अपन

फोर्ब्स सूची में 100 इनोवेटिव कंपनियों में HUL एशियन पेंट्स और भारती एयरटेल शामिल

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फोर्ब्स की ओर से जारी की गई दुनिया की 100 सबसे ज्यादा इनोवेटिव कंपनियों की सूची में तीन भारतीय कंपनियां शामिल हैं। इनके नाम हिंदुस्तान यूनिलिवर, एशियन पेंट्स और भारती एयरटेल है। इस लिस्ट में पहला स्थान सेल्सफोर्स डॉट कॉम का है। कंपनी ने टेस्ला मोटर्स को पछाड़ा है। हालांकि हिंदुस्तान यूनिलिवर बीते वर्ष के 31 वें स्थान से 7वें और एशियन पेंट्स 18 वें से 8वें पायदान पर आ गया है। इस सूची में भारती एयरटेल 78वें स्थान पर है। वर्ष 2016 की लिस्ट में देश की दिग्गज आईटी कंपनी टीसीएस (टाटा कंसलंटेंसी सर्विसेज), सनफार्मा और लार्सन एंड ट्यूबरो थे, लेकिन इस साल यह कंपनियां सूची में अपनी जगह नहीं बना पाई। इससे लिस्ट में कुल भारतीय कंपनियों की संख्या पांच से घटकर तीन हो गई है। किन कंपनियों को माना जाता है इनोवेटिव दुनिया की सबसे इनोवेटिव कंपनियां उन्हें माना जाता है कि जिनको लेकर निवेशकों में उम्मीद होती है कि वे मौजूदा समय में और भविष्य में इनोवेटिव बनी रहेंगी। इसके अलावा लिस्ट में शामिल होने के लिये कंपनियों को सात वर्ष का पब्लिक फाइनेंशियल डेटा और 10 अरब डॉलर मार्केट कैप की जरूरत होती है। क्

सेक्स रेशियो नहीं सुधरा, तो बहन ढूंढते रह जाओगे!

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रक्षाबंधन पर बहनों से राखी बंधवाना, एक दूसरे को मिठाई खिलाना और फिर गिफ्ट देना, ऐसा तो हर साल होता है लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि देश के एक बड़े सामाजिक बदलाव के दौर से गुजर रहा है। अगर सब कुछ इस पैटर्न पर चलता रहा तो रक्षाबंधन की ख़ुशी आने वाले दिनों में फीकी पड़ सकती है। रक्षाबंधन के बहाने हम देश में सेक्स रेशियों की मौजूदा स्थिति पर गौर कर रहे हैं। सेक्स रेशियों का सीधा मतलब ये है कि किसी भी जगह प्रति 1000 पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की तादात कितनी है। हम देख सकते है कि साल 2001 की जनगणना के मुताबिक, देश में औसतन हजार पुरुषों के मुकाबले 943 महिलाएं है। सेक्स रेशियों के मामले में सबसे आगे केरल है, जहाँ प्रति हजार पुरुष के मुकाबले 1084 महिलाएं हैं। लिस्ट में हरियाणा सबसे निचले पायदान पर है, जहाँ प्रति हजार पुरुषों के मुकाबले 879 महिलाएं ही हैं। चिंता की बात यह है कि पिछले 5 दशकों से देश में सेक्स रेशियों 930 के आसपास ही बना हुआ है इसमें, तेज रफ़्तार से सुधार होता नहीं दिख रहा है। अगर तर्क की बात करें, तो किसी घर की एक ही बहन अपने चाहे कितने ही भाइयों को रा