सामुदायिक रेडियो को किसी एक परिभाषा में बाँधना सम्भव नहीं है। प्रत्येक देश के संस्कृति सम्बन्धी क़ानूनों में अन्तर होने के कारण देश और काल के साथ इसकी परिभाषा बदल जाती है। किन्तु मोटे तौर पर किसी छोटे समुदाय द्वारा संचालित कम लागत वाला रेडियो स्टेशन जो समुदाय के हितों, उसकी पसंद और समुदाय के विकास को दृष्टिगत रखते हुए ग़ैरव्यावसायिक प्रसारण करता है, सामुदायिक रेडियो केन्द्र कहलाता है। ऐसे रेडियो केन्द्र द्वारा कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, समाज कल्याण, सामुदायिक विकास, संस्कृति सम्बन्धी कार्यक्रमों के प्रसारण के साथ-साथ समुदाय के लिए तात्कालिक प्रासंगिता के कार्यक्रमों का प्रसारण किया जा सकता है। सामुदायिक केन्द्र का उद्देशय समुदाय के सदस्यों को शामिल कर समुदाय के लिए कार्य करना है।
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सामुदायिक रेडियो मुख्यतः सामुदाय के लिए कार्य करती है। उत्तराखंड में सामुदायिक रेडियो की स्थापना सामाजिक कार्य के लिए हुआ है और यह अपने तरीके से सही कार्य कर रहे हैं। रेडियो खुशी को देखा जाए तो वह पूरी तरह सामाजिक बदलाव व जागरूकता के लिए कार्य कर रही है वहीं हिमगिरी की आवाज भी शहरी क्षेत्र में रहते हुए भी अपना अस्तित्व नही खोया है। अपने कार्यक्रम के माध्यम से हरसंभव प्रयास किया है। ये अपने कार्यक्रम के माध्यम से कुछ नयी चीजें लोगों के सामने पेश करते है जैसे कहा जाता है कि सामुदायिक रेडियो से नये युग की शरूआत हुई है। यह कहना काफी हद तक सही भी है क्योंकि सामुदायिक रेडियो की जब शुरूआत हुई थी तब कोई अन्य माध्यम भी ज्यादा सजग नही था।
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आज इंटरनेट के युग में रेडियो जैसे सशक्त माध्यम को लोग भुलते जा रहे हैं और नयी तकनीकों को अपना रहे हैं लेकिन कहीं न कहीं लोग रेडियो को भूल नहीं पा रहे है जिसका नतीजा यह है कि आज भी रेडियो लोगों के दिलों दिमाग पर आज भी राज कर रहा है। और खास कर सामुदायिक रेडियो को क्योकि इसका उद्देश्य समुदाय के सदस्यों को शामिल कर समुदाय के लिए कार्य करना रहा है। आधुनिक दिनों के सामुदायिक रेडियो स्टेशन अक्सर अपने श्रोताओं के लिए विभिन्न प्रकार की सामग्री पेश किया करते हैं, जो कि आवश्यक रूप से वाणिज्यिक रेडियो स्टेशनों द्वारा प्रदान नहीं की जाती है।
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सामुदायिक रेडियो केंद्र स्थानीय क्षेत्र की खबरें तथा सूचना कार्यक्रम चला रहे हैं, जिन पर बड़े मीडिया केंद्रों द्वारा कम ध्यान दिया जाता है। अधिक विशिष्ट संगीत कार्यक्रम भी प्रायः कई सामुदायिक रेडियो स्टेशनों की एक विशेषता रही है। जिसमे उत्तराखंड के गढ़वाली गीत, कुमांऊनी गीत व लोक संगीत महत्वपूर्ण भूमिका में रहे हैं। प्रस्तुत शोध के दौरान मैंने यह महसूस किया कि अभी भी हमारा असली देश गांव में ही है और गांव के कारण ही देश का अस्तित्व है। गांव में रहने वाले लोग ही देश के लिए अपने खुन पसीने से सींचकर अनाज उपजाते हैं और पुरे देश को भोजन जुटाने का प्रबंध करते हैं। और उन्हे ही सभी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि गांव में विकास नही हो पायी है लेकिन गांव के लोग कम संसाधन होते हुए भी हंसी खुशी जीवन यापन कर रहे हैं।
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उत्तराखंड पूरा पहाड़ी क्षेत्र है और यहां पहाड़ होने के बावजूद भी पहाड़ों पर खेती करके लोग अनाज उपजा रहे हैं। पूरे प्रदेश में बहुत सी समस्याऐं हैं एक का समाधान नही मिलता कि दूसरा आ टपकता है। इन सभी समस्याओं के बावजूद भी लोग समस्या को समस्या न मानते हुए सरल तरीके से जीवनयापन कर रहे हैं। यहां के सामुदायिक रेडियो जिसके द्वारा कृषि, स्वास्थय, शिक्षा, समाज कल्याण, सामुदायिक विकास, संस्कृति संबंधी कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है। इन सभी कार्यक्रमों को सुनकर लोग एक नये तरीके से जीवनयापन का तरीका सीख रहे हैं।
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