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कैसे कहूं कि तुम क्या हो मेरे लिए

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कैसे कहूं कि तुम क्या हो मेरे लिए। पूर्णिमा की चांद सी हो तुम, जो अपनी छटा से जग को रोशन करती है। घास पर पड़ी ओस की बूंद हो तुम, जो गगन से उतरकर भूमि में मिल जाती है। फूल की पंखुड़ियों में छिपी पराग हो तुम, जिसे फूल छिपाकर रखना चाहता है। समंदर की लहर सी हो तुम, जो दूर रहकर भी मुझमें समा जाती है। कैसे कहूं कि तुम क्या हो मेरे लिए।। वसंत की हवा हो तुम, जो पास से गुजर जाए तो बदन सिहर उठती है। पतझर के पत्ते सी हो तुम, जो पेड़ से बिछड़कर अपना अस्तित्व ढूंढती है। नदी की धार हो तुम, जो समुंदर में मिलकर खुद को भूल जाती है। पहाड़ की चोटी सी हो तुम, जो आकाश की बुलंदियों को छूना चाहती है। कैसे कहूं कि तुम क्या हो मेरे लिए।। नवनीत कुमार जायसवाल

फैंस के नाम इरफान खान का पत्र...

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कुछ महीने पहले अचानक मुझे पता चला था कि मैं न्यूरोएन्डोक्राइन कैंसर से ग्रस्त हूं, मैंने पहली बार यह शब्द सुना था. खोजने पर मैंने पाया कि मेरे इस बीमारी पर बहुत ज्यादा शोध नहीं हुए हैं, क्योंकि यह एक दुर्लभ शारीरिक अवस्था का नाम है और इस वजह से इसके उपचार की अनिश्चितता ज्यादा है. अभी तक अपने सफ़र में मैं तेज़-मंद गति से चलता चला जा रहा था. मेरे साथ मेरी योजनायें, आकांक्षाएं, सपने और मंजिलें थीं. मैं इनमें लीन बढ़ा जा रहा था कि अचानक टीसी ने पीठ पर टैप किया, “आप का स्टेशन आ रहा है, प्लीज उतर जाएं.’ मेरी समझ में नहीं आया, “ना ना मेरा स्टेशन अभी नहीं आया है.’ जवाब मिला, ‘अगले किसी भी स्टाप पर आपको उतरना होगा, आपका गन्तव्य आ गया. अचानक एहसास होता है कि आप किसी ढक्कन (कॉर्क) की तरह अनजान सागर में, अप्रत्याशित लहरों पर बह रहे हैं… लहरों को क़ाबू कर लेने की ग़लतफ़हमी लिए. इस हड़बोंग, सहम और डर में घबरा कर मैं अपने बेटे से कहता हूं, “आज की इस हालत में मैं केवल इतना ही चाहता हूं… मैं इस मानसिक स्थिति को हड़बड़ाहट, डर, बदहवासी की हालत में नहीं जीना चाहता. मुझे किसी भी सूरत में मेरे पैर चाहिए, जिन पर...

जिंदगी की सच्चाई है मौत! जिसे छोड़कर कोई नहीं भाग सकता

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उस रात का इंतजार है जब मौत मुझसे आकर पूछे... चलें वो मुझे वक्त भी देगा लेकिन अब वक्त का क्या? जो बीत गया वो बीत गया... अब कोई उसे लौटा नहीं सकता मैं जनता हूं... अब ज्यादा वक्त नहीं है थोड़ी देर ही सही लेकिन हर किसी को एक न एक दिन आनी है वो हमेशा अपने चाहने वालों को पास बुला लेता है लेकिन मैंने कौन का कर्म किया जो तुम्हारा चाहने वाला हो गया चलो अच्छा है तुम ले चलो इस झंझावतों से शायद लोगों ने मेरा कद्र नहीं किया अब किसी और जन्म में आकर उन कमियों को पूरा करेंगे जो रह गई है... -नवनीत कुमार जायसवाल ये भी पढ़ें:- वो अनकही बातें हो कभी कह नहीं पाया

वसंत ऋतु के आगमन से नए कपोलों को मिलते हैं पंख

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वसंत के आगमन के साथ बारिश होने से उन नए कपोलों को पंख मिल जाते हैं। जो बाहर आकर इस नई दुनिया को देखना चाहते हैं और महसूस करना चाहते हैं। पतझड़ के बाद आने वाले नए पत्ते का भी प्रकृति हवा के झोंको से स्वागत करती है। गेंदा के नए फूल भी सहमति से मधुमक्खी को पराग ले जाने के लिए आमंत्रित करती है। वो नए उगे गेंहू के हरे पौधे जिसे देखकर लगता है किसी ने हरी घास की कालीन बिछा दी हो। उन गोभी मटर या आलू के पौधे जो अपना सर्वस्व न्यौछावर कर लोगों को पोषक तत्व प्रदान कर रही हो। पक्षियों का झुंड कलरव करते तालाब के इर्दगिर्द अटखेलियां करते हैं। दूर कहीं एक मशीन की आवाज के साथ सौंधी सौंधी खुशबू आती रहती है। पास जाकर पता चलता है कि यहां चूड़ा तैयार होता है। यहां लोग लंबी कतार के साथ उस भट्ठी के किनारे बैठकर हाथ सेंकते हुए अपनी बारी का इंतजार करते हैं। एक खुशी होती है कि कई महीनों की मेहनत के बाद निकले फसल को आज पूरा परिवार मिलकर एक साथ बड़े चाव से खाएगा। उन दिहाड़ी मजदूरी करने वालों की आंखों में खुशी झलकती है कि अब जल्दी काम मिलेगा और कमाए उन पैसों से बच्चों की ख्वाहिशें पूरी करूंगा। वो मकर सं...

मशहूर गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का पटना के PMCH में निधन

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आज मशहूर गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का पटना के PMCH में निधन हो गया। 74 साल की ज़िंदगी में 44 साल तक वो मानसिक बीमारी सिजेफ्रेनिया से पीड़ित रहे। कहते हैं शुरुआती सालों में अगर गणितज्ञ की सरकारी उपेक्षा नहीं हुई होती तो आज वशिष्ठ नारायण सिंह का नाम दुनिया के महानतम गणितज्ञों में सबसे ऊपर होता। वशिष्ठ नारायण सिंह वशिष्ठ नारायण सिंह एक ऐसे गणितज्ञ थे जिन्होंने कई बार विश्व पटल पर गणितज्ञ का लोहा मनवाया था। इन्होंने ही आंइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती दी थी। उनके बारे में मशहूर है कि नासा में अपोलो की लांचिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए तो कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक था। 1969 में उन्होंने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की और वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बन गए। नासा में भी उन्होंने काम किया। भारत लौटने के बाद आईआईटी कानपुर, आईआईटी बंबई और आईएसआई कोलकाता में अपनी सेवा दी थी। उन्होंने साईकल वेक्टर स्पेस थ्योरी पर शोध किया। पिछले दिनों जब पटना के अस्पताल में भर्ती हुए थे तब सभी ने उनके स्वास्थ्य लाभ की कामना की थी। सभी ...

वो अनकही बातें हो कभी कह नहीं पाया

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तकलीफें बहुत सी रही है जिंदगी में। कुछ को हँस कर काट लेते हैं और कुछ को संघर्ष में। तुमको जाने देना भी बहुत तकलीफदेह था। मगर तकलीफों को सहन करना पड़ता है। उस दिन भी यही किया था। काश! तुम देख पाती, समझ पाती कि अपने ही हाथों से अपनी क़ीमती चीज को तोड़ देना कितना दुःखद होता है। ये ठीक उसी तरह था जैसे आसमान में इकलौती पतंग आपकी उड़ रही हो और आप उसकी डोर अपने ही हाथों से तोड़ दें, हवा में बह जाने के लिए। उस दिन तुम्हारे सवाल का जवाब "हाँ" में देना था। मगर दिया कुछ और गया था। तुमसे मोहब्बत के सारे सबूत, सारी भावनाएं चेहरे पर से मिटा दी गयी थीं। वो खोखली मुस्कान,जो चेहरे पर तैर रही थी, उसको पढ़ने भी नही दिया तुमको। ये बहुत मुश्किल था,मगर ये करने का निर्णय बहुत दृढ़ था। तुम जा रही थी, और मैं देख रहा था। कई बार रोकना चाहा, कई बार सोचा कि तुम्हारा नाम पुकार कर बुला लूँ वापस और समेट लूँ तुम्हे अपनी बाहों की कैद में। मगर मेरे लिए ये मुमकिन न था उस दिन। तुम्हें जाने देना ही मेरी मोहब्बत की जीत थी और न मैं खुद हारना चाहता था और न ही तुमको हारने देना चाहता था। बेईमानी, कभी-कभी रिश...

बिगबॉस-12 की कुछ यादें जो कभी भुलाई नहीं जा सकती!

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आखिर वो 106 दिन का सफर एक विनर के साथ समाप्त हो गया। कई लोग सपने लेकर किस्मत आजमाने आए। कुछेक का सपना टूटता चला गया। वे घर से बेघर होते चले गए। इन सब के बीच हम जैसे दर्शक जो बड़ी शिद्दत से व्यस्त समय से एक घंटा निकाल लेते थे। कुछ ग्रुप में गॉशिप भी कर लेते थे। इसकी आदत बन गयी थी। लगता था हमारी दिनचर्या में एक काम ये भी शामिल है। रात के 12 बजे या एक बजे ऑफिस से आने के बाद पहला काम इस शो को देखना ही था। कुछ प्रतिभागी फेवरेट थे जैसे शिवशीष, रोमिल, सोमी, नेहा पेडसे, सृष्टि, श्रीशांत, दीपक, सुरभी, करणवीर और दीपिका। इन सब में कुछ का सफर जल्द ही समाप्त हो गया लेकिन छोटे शहर से आये लोगों ने सब के दिलों पर राज किया। सुरभी :- हिमाचल प्रदेश की लड़की जिसने सभी टास्क में योगदान दिया। 5 बार कैप्टन रही। एक बार नॉमिनेट हुई वो भी श्रीशांत ने किया था। टिकट टू फिनाले जीत चुकी थी। इतनी उपलब्धि के बाद 15 वें हफ्ते घर से बाहर हो जाना दर्शकों के लिए निराशाजनक था। रोमिल :- हरियाणा के रोहतक जिले के वकील बाबू के अंदर काफी जज्बा था। काफी दमखम रखते थे। लेकिन कमी एक ही थी उनके लिए कई बार मु...

जब पटना के छात्रों ने कोचिंग संस्थान के शिक्षकों के खिलाफ आवाज उठाई थी

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हर कोई उच्च शिक्षा पाने के लिए शहर की ओर रुख करता है। बिहार के छात्र भी 10वीं पास कर आंख में इंजीनियर या डॉक्टर बनने का सपना लेकर राजधानी पटना की ओर रुख करते हैं। यहां कोचिंग संस्थान में एडमिशन लेकर जीतोड़ पढ़ाई करते हैं। बड़ी संख्या में छात्र होने के बाद कोचिंग सेंटर वाले भी मनमानी पर उतारू हो जाते हैं। आखिर कब तक छात्र इनकी मनमानी सहते। एक कहावत है स्प्रिंग को जितना दबाओगे छोड़ने पर वह तेज गति से उछलती है। इसका उदाहरण वर्ष 2010 में देखने को मिला जब एक संस्थान में गार्ड की बंदूक से एक छात्र को गोली लग गयी और उपचार के दौरान उसकी मौत हो गयी। छात्रों के आक्रोश ने काफी तबाही मचाई थी। प्रतीकात्मक तस्वीर बात उन दिनों की है जब बिहार में शिक्षकों के खिलाफ छात्रों ने आवाज उठाई थी। पटना के अधिकांश कोचिंग में छात्रों द्वारा उत्पात मचाया जा रहा था। सभी शिक्षक अपने संस्थानों को बंद कर छात्रों को पढ़ाने से इन्कार कर चुके थे। छात्रों का इतना उग्र रूप जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के बाद बिहार की राजधानी में पहली बार देखने को मिल रहा था। छात्रों के उग्र रूप की शुरुआत एक कोचिंग संस्थान से हुई। किस...