वो अनकही बातें हो कभी कह नहीं पाया
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काश! तुम देख पाती, समझ पाती कि अपने ही हाथों से अपनी क़ीमती चीज को तोड़ देना कितना दुःखद होता है। ये ठीक उसी तरह था जैसे आसमान में इकलौती पतंग आपकी उड़ रही हो और आप उसकी डोर अपने ही हाथों से तोड़ दें, हवा में बह जाने के लिए।
उस दिन तुम्हारे सवाल का जवाब "हाँ" में देना था। मगर दिया कुछ और गया था। तुमसे मोहब्बत के सारे सबूत, सारी भावनाएं चेहरे पर से मिटा दी गयी थीं। वो खोखली मुस्कान,जो चेहरे पर तैर रही थी, उसको पढ़ने भी नही दिया तुमको। ये बहुत मुश्किल था,मगर ये करने का निर्णय बहुत दृढ़ था।
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बेईमानी, कभी-कभी रिश्तों को बचाने के लिए बेईमानी करनी पड़ती है। आप हर किसी रिश्ते के लिए ईमानदार नही हो सकते, वफादार नही हो सकते। यूं तो, बेईमानी, कभी भी खून में न थी। या तो घरवालों से बेईमान हो जाते, या फिर तुमसे या फिर किसी और से। मेरा बेईमान होना तय था, तो ये बेईमानी मैंने खुद के साथ कर ली। इसमें किसी का नुकसान नही हुआ। थोड़ा दिल मेरा दुखा और शायद तुम्हारा थोड़ा ज्यादा। जानती हो, तुमको केंद्रित करके हजारों कहानियाँ लिखी हैं, मगर किसी भी कहानी में अपना और तुम्हारा मिलन न लिख सका। क्योंकि अब तुम दूसरे की अमानत हो और अब हक़ जताने का हक़ मैं खो चुका हूँ। रिश्ते, कितनी तेजी से करवट बदलते हैं, इसका एहसास मुझे तुम्हारे जाने के बाद हुआ है। तुम तो शायद उस जगह से बहुत दूर निकल गयी हो, मगर अब भी वक़्त मेरे लिए वहीं पर ठहर गया है। जिंदगी में बहुत कुछ बदल गया है, अब वो जोश, पागलपन सब ख़त्म हो चुका है। उस दौर की सभी चीजों को खत्म कर दिया है, सिवाय तुम्हारे।
वजह, वजहों का अंदाजा, कोई कुछ भी लगा सकता है। मगर जवाब अब तैयार है, वो भी सिर्फ तुम्हारे लिए। क्योंकि जवाब मांगने का हक़ सिर्फ तुमको है और एक दिन आएगा जब तुम कभी मिलने आओगी, तो वो सारे सवाल पूछोगी, जो तुम्हें उस दिन पूछने चाहिए थे, उन सारे सवालों के जवाब तुम्हें देने के लिये तैयार हूं मैं।
ये जवाब बेचैन करते है मुझको, कई बार ठीक से नींद भी नही आती। मन करता है दौड़ जाऊं तुम्हारे पास, बोल दूं मन की सारी तकलीफें, सारी मजबूरियां। मगर नही, तुम्हें जाने देने का फैसला मेरा था और तुमसे मुलाकात का फ़ैसला अब तुम्हारा होगा।
To be continued...
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