जब पटना के छात्रों ने कोचिंग संस्थान के शिक्षकों के खिलाफ आवाज उठाई थी


हर कोई उच्च शिक्षा पाने के लिए शहर की ओर रुख करता है। बिहार के छात्र भी 10वीं पास कर आंख में इंजीनियर या डॉक्टर बनने का सपना लेकर राजधानी पटना की ओर रुख करते हैं। यहां कोचिंग संस्थान में एडमिशन लेकर जीतोड़ पढ़ाई करते हैं। बड़ी संख्या में छात्र होने के बाद कोचिंग सेंटर वाले भी मनमानी पर उतारू हो जाते हैं। आखिर कब तक छात्र इनकी मनमानी सहते। एक कहावत है स्प्रिंग को जितना दबाओगे छोड़ने पर वह तेज गति से उछलती है। इसका उदाहरण वर्ष 2010 में देखने को मिला जब एक संस्थान में गार्ड की बंदूक से एक छात्र को गोली लग गयी और उपचार के दौरान उसकी मौत हो गयी। छात्रों के आक्रोश ने काफी तबाही मचाई थी।

प्रतीकात्मक तस्वीर
बात उन दिनों की है जब बिहार में शिक्षकों के खिलाफ छात्रों ने आवाज उठाई थी। पटना के अधिकांश कोचिंग में छात्रों द्वारा उत्पात मचाया जा रहा था। सभी शिक्षक अपने संस्थानों को बंद कर छात्रों को पढ़ाने से इन्कार कर चुके थे। छात्रों का इतना उग्र रूप जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के बाद बिहार की राजधानी में पहली बार देखने को मिल रहा था। छात्रों के उग्र रूप की शुरुआत एक कोचिंग संस्थान से हुई। किसी बात को लेकर एक छात्र और वहां के सुरक्षाकर्मी के बीच झड़प हो गयी। सुरक्षाकर्मी से बंदूक छीनने के दौरान गोली चल गई और छात्र की मौत हो गयी। 

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ये खबर सुनते ही छात्र आक्रोशित हो गए और कोचिंग संस्थानों में तोड़फोड़ करने लगे। जगह जगह जाम लगाने और आगजनी करने लगे। बाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने छात्र की मृत्यु पर शोक जताते हुए तत्काल डेढ़ लाख रुपये देने की घोषणा की थी। उन्होंने छात्रों से शांति बनाए रखने की अपील करते हुए कहा है कि उनकी शिकायतों की जांच करवाई जाएगी तथा जल्द ही राज्य में कोचिंग संचालकों के लिए कानून बनाया जाएगा। वहीं पटना के वर्तमान जिलाधिकारी जितेन्द्र कुमार ने प्रदर्शनकारी छात्रों से मिलकर पूरे मामले की जांच कराने का आश्वासन दिया था। उन्होंने कहा कि जांच के लिए एक समिति बनाई जाएगी तथा जो भी दोषी पाया जाएगा उसके खिलाफ कारवाई की जायेगी। पटना के अधिकतर कोचिंग संस्थान वाले इलाकों में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात कर दिया गया था।

इस दौरान एक छात्र भी 10वीं पास कर इंजीनियर बनने का ख्वाब लेकर पटना आया था। कुछ दिनों बाद हुई घटना ने उसे झकझोर कर रख दिया। जहां भी निकलता छात्रों का झुंड शिक्षकों के खिलाफ आंखों में गुस्सा लिए विरोध के नारे लगाते हुए गुजर रहा होता था। उन दिनों पटना में दो मशहूर लॉज हुआ करता था। पहला सैदपुर लॉज जहां (कुर्मी) व दूसरा पटेल लॉज जहां(ब्राह्मण या भूमिहार) जाति के छात्र रहा करते थे। इन दोनों लॉज के छात्र ही पूरे प्रकरण का संचालन करते थे। हालांकि अब सैदपुर लॉज को बंद कर दिया गया है।

आईआईटी की पढ़ाई के लिए देशभर में दो जगह ही मशहूर हैं। पहला कोटा(राजस्थान) और दूसरा पटना(बिहार)। यहां उत्तरप्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा एवं अन्य राज्यों से विद्यार्थी आईआईटी की तैयारी करने आते हैं। शिक्षकों के प्रति विरोध को देखकर दूसरे राज्य से आये छात्र भी अपनी पूरी सहभागिता दी। इस घटना के बाद कानून बना लेकिन अभी तक सही तरीके से पालन नहीं किया जा रहा है।

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इसका एक पक्ष तो पढ़ा आपने अब दूसरा पक्ष ये है कि पटना में जितने भी कोचिंग संस्थान चल रहे है अधिकतर उनके पास जगह की कमी है। सुविधाओं की कमी है। सीट से ज्यादा बच्चों को बैठाया जाता है। एक शिफ्ट खत्म नहीं होती कि दूसरी शिफ्ट के बच्चे सड़कों पर लाइन लगे मिल जाते हैं। कोचिंग का अड्डा बाजार समिति, मुसल्लहपुर हाट, भिखना पहाड़ी या बोरिंग रोड को कहा जाता है यहां भारी संख्या में बच्चे पढ़ने आते हैं। दुनिया की भेड़चाल में खुद को अव्वल बनाने के लिए छात्र कई कठिनाई झेलते हुए पढ़ाई कर मुकाम हासिल करते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर
गौरतलब हो कि वर्ष 2015 के अनुसार राजधानी में 233 कोचिंग संस्थान ही वैध हैं, बाकी अवैध रूप से चल रहे हैं। शिक्षा विभाग की तरफ से कोचिंग संस्थानों को निबंधन के आदेश की आखिरी तारीख पूरी हो चुकी है। विभाग के पास इन 233 की सूची तैयार है। कुल 549 आवेदनों में से 77 को अयोग्य करार दिया जा चुका है। शेष अावेदनों की जांच हो रही है। यानी, अयोग्य 77 और इसके अलावा आवेदन नहीं करने वाले सभी कोचिंग के खिलाफ विभाग अभियान चलाकर सख्त कार्रवाई कर सकता है, लेकिन ऐसा कुछ होता दिख रहा है और ही कुछ सुगबुगाहट ही है। निबंधन के लिए साल 2010 में बनाए गए बिहार कोचिंग इंस्टीट्यूट(कंट्रोल एंड रेगुलेशन) एक्ट के अनुसार ज्यादातर कोचिंग संस्थानों के पास सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए रजिस्ट्रेशन के लिए सामने नहीं आए।

पटना में कोचिंग संस्थानों की मनमानी पर बार-बार बात उठती है। ऐसी ही बातों के बाद 2010 में एक एक्ट लागू किया गया। निबंधन को अनिवार्य बनाया गया। समय सीमा बीत जाने के बाद जो निबंधन को नहीं पहुंचे या सही नहीं पाए गए, उनपर कार्रवाई नहीं की गई। अब आने वाले दिनों में कैसे हो पायेगा।

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