दीपिका के JNU जाने पर मीडिया में क्यों मचा है बवाल?

Deepika Padukone reaches JNU Sabarmati T-point, expresses ...

वरुण ग्रोवर ने सही कहा था। मीडिया बारूद और माचिस भी देती है। जरूरत पड़े तो आग भी लगाती है। आग लगने के बाद लोगों दिखाती भी है कि ये देखो हमारे देश में क्या हो रहा है।

कल शाम जब से दीपिका JNU गई है तब से तथाकथित और SO CALLED पत्रकार फ़ेसबुक और ट्विटर पर शोर मचाए हुए हैं। कैसे पत्रकार हो बे...अगर तुम्हें क्रांति करनी है तो तुम भी जाकर छात्रों की तरह विरोध करो। लेकिन सोशल मिडिया पर आकर किसी को सपोर्ट और विरोध करना है तो मुख्यधारा में उतर जाओ लेकिन पत्रकार होने का ढोंग मत करो। पत्रकारिता समाज का आईना है और आईने में तुमने पहले ही प्रतिबिंब बना लिया है। तुमने वही भेड़ चाल को अपना लिया है जहां सभी जा रहे हैं। तब तुममें और आम आदमी में कोई अंतर नहीं है। तुमने दिमाग में बना लिया कि दीपिका का विरोध करना चाहिए या किसी द्वारा कह दिया गया कि सोशल मीडिया पर विरोध करो। तुम आंख मूंदकर उसी रास्ते पर चल पड़े।

मुझे ये समझ मे नहीं आया कि दीपिका का विरोध किस बात पर किया जा रहा है। इसीलिए कि वो JNU गई? या छात्रों के विरोध में शामिल हुई? क्या किसी ने दीपिका को एक भी शब्द कहते सुना? नहीं न तो फिर वहां सिर्फ जाने से उसका विरोध करने लगोगे। कल अगर प्रधानमंत्री चले जाएं तो उनका भी विरोध करोगे क्या? तुम्हें विरोध करने से पहले यह सोचना चाहिए था कि वो वर्तमान में मेघना गुलजार की फ़िल्म 'छपाक' के लिए प्रोमोशन कर रही है। उसे मेघना जहां कहेगी वो वहां जाएगी। और ये उनके कॉन्ट्रैक्ट में लिखा होता है।

तब तुम कहां थे जब आईशी घोष ने सर्वर रूम में तोड़फोड़ की थी और दूसरे पक्ष ने शिकायत की थी। अगर मुकदमा दर्ज हो जाता तो आज ये दिन नहीं देखना पड़ता। उस वक़्त तुम्हारी नैतिक जिम्मेदारी बनती थी कि जाकर वहां पर रहो और कवर करो, हो सके तो मुकदमा दर्ज कराने का प्रयास करो क्योंकि देश में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है। लेकिन सभी तथाकथित पत्रकार फील्ड पर जाने के बजाय 10×10 के कमरे में बैठकर उसे पकाएंगे और मिर्च मसाला डालकर परोसेंगे।

अमूमन हर शिक्षण संस्थान में छात्र संघ के दो गुट होते हैं और उन दोनों के बीच लड़ाई झगड़ा आम बात है। यहां भी यही हुआ था लेकिन JNU के विवादों में रहने के कारण यह मुद्दा बड़ा बन गया। इसमें कई तथाकथित बुद्धिजीवी लोग समर्थन और विपक्ष में कूद पड़े। सभी का यही कहना था कि शिक्षण संस्थान खतरे में है। छात्रों के साथ अन्याय हो रहा है। दरअसल अन्याय तो उन छात्रों के साथ हो रहा है जो इस गंदी राजनीति के इतर सिर्फ पढ़ने की मंशा से इस विश्वविद्यालय में आए थे और इन ज़िल्लतों को झेल रहे हैं। इनकी पढ़ाई के साथ साथ समय भी बर्बाद हो रहा है। राजनीति करने वाले इन छात्रों को आगे करके मुद्दों को हवा दे रहे हैं और अपनी रोटियां सेंक रहे हैं।

जब मारपीट हुई तब विश्वविद्यालय के कुलपति कहां थे? क्या उन्हें ये अंदेशा नहीं था कि ये जो हो हुआ है उसका क्या असर होगा? दरअसल कुलपति भी चाहते हैं कि ये मुद्दा गरमाया रहे ताकि मेरी कुर्सी बरकरार रहे और सरकार हमें हटा न सके। अगर वो हटते हैं तो लोगों को लगेगा कि सरकार बैकफुट पर आ गई है और सरकार ऐसा कभी नहीं करेगी।

मेरा सवाल उन तमाम सेलेब्रिटी से है जो बात बात पर विरोध करते हैं और सरकार को कोसते रहते हैं। आप सिर्फ एक विश्वविद्यालय में हुए मामलों पर सड़क पर आ जाते हो। कभी दूसरे विश्वविद्यालय का भी हालचाल ले लिया करो ताकि पता चले कि वहां कैसे छात्र पढ़ते है जिन्हें राजनीति के अलावा सिर्फ पढ़ाई से मतलब होता है। मुझे नहीं लगता है कि इतने पैसे कमाने के बाद भी इन्होंने एक गरीब छात्र की मदद की होगी लेकिन इन्हें विरोध सबसे पहले करना है।

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