लिट्टी चोखा बिहारी के लिए व्यंजन नहीं एहसास है

मुझे घर से बाहर रहते हुए 12 साल हो गए। पहले पटना, रांची और कोलकाता की यात्रा के बाद 2015 में हरिद्वार आया और 2017 से दिल्ली-एनसीआर में हूं। लेकिन अपनी मिट्टी से जुड़ाव कभी खत्म नहीं हुआ। मैंने पिछली होली 2014 में परिवार के साथ मनाया था। हर साल पर्व त्योहार पर घर की याद आती रहती है। जब पटना में था शनिवार-रविवार घरवालों के साथ ही बिताता था। अब ऐसा वक़्त आया है कि साल या दो साल में एक बार ही घर जा पाता हूं। सच में जहां आपका बचपन बीतता है उस जगह को आप भुला नहीं पाते, यही मेरे साथ भी है। समय बदलने के साथ साथ हालात भी बदलता है और एक समय ऐसा आता है जब घर का मोह छोड़कर कुछ कर गुजरने की चाहत आपको सभी चीजों से विरक्त कर देती है।

आज सुबह अचानक लिट्टी बनाने का प्लान बना सोचा चलो इसी बहाने कुछ पुरानी यादों का ताजा कर लिया जाए। घर पर ठंड के दिनों में पापा उपले (गोइठा) पर सेंककर बनाते थे। यहां व्यवस्था न होने के कारण तेल में फ्राई कर बनाने का सोचा। वैसे छुट्टी होने के कारण आलस्य की पराकाष्ठा पर कर चुका था। अचानक दिमाग में आईडिया आने के बाद शरीर में फुर्ती आ गयी। तुरंत उठकर समान तैयार करने में जुट गया। इस काम में दुर्गेश ने काफी मदद की। कई लोगों को न्योता भी दिया जा चुका था जिसमें दीप्ति दीदी, नूतन भैया, अभिषेक भैया, अंजली, पल्लवी, सौरभ भाई और रवि भाई थे। बनने में लगभग 4 घंटे लगे। कहते है न मेहनत का फल मीठा होता है। बातचीत का दौर चलने के बाद समय का पता ही नहीं चला। आखिर में पहला निवाला लेने के बाद सच में घर की याद आ गई। ऐसा लग मानो घर में बैठकर खा रहा हूं। लिट्टी के साथ टमाटर की चटनी और आलू-बैगन का चोखा ने जायके में चार चांद लगा दिया था।


(किसी को रेसिपी जानना हो तो बेझिझक पूछ सकते हैं)

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