आदिवासी क्षेत्र में नरसंहार और नई विचारधारा का विकास है खतरनाक
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पत्थलगड़ी हमेशा से स्वतंत्र व्यवस्था स्थापित करने के लिए आंदोलन करती आ रही है। ये सरकार की योजना का पुरजोर विरोध करते हैं। ये अपने क्षेत्र में सिर्फ आदिवासी को ही घुसने देते हैं। इसीलिए सीमा पर चेतावनी भी लिख दी जाती है। इनपर देशद्रोह का भी मुकदमा चल रहा है। हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री बनने के बाद 29 दिसंबर को फैसला लिया था कि पत्थलगड़ी समर्थकों पर लगे देशद्रोह के मुकदमे खत्म किए जाएंगे।
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आखिर इन भोले भाले आदिवासियों को कौन बरगला रहा है। इन सभी के बारे में इन्हें कौन जानकारी दे रहा है। ये साफ तौर पर एक योजना के तहत किया गया कार्य है। उनका कहना है कि डीएम-एसपी और प्रशासन हमारे सेवादार हैं वो हमारा प्रमाण पत्र कैसे बना सकते हैं। जब आधार बनना शुरू हुआ था तब भी ये विरोध कर रहे थे। ग्रामीणों से बात करने पर वे एक ही बात कहते हैं कि अगर ज्यादा जानकारी लेनी हो तो वो गुजरात चले जाएं। गुजरात में कुंवर केसरी हैं वो बेहतर बताएंगे। इसका मतलब क्या हुआ? आखिर केंद्र सरकार, राज्य सरकार, न्यायिक व्यवस्था के बारे में जानकारी होते हुए भी सरकारी व्यवस्था के बारे में बागी क्यों हो चुके हैं? यह नई विचारधारा आने वाली कई पीढ़ी को बर्बाद कर सकती है। इसपर सोचना लाजिम है।
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