डिजीटल युग में भारतीय संस्कृति

Image result for डिजीटल युग में भारतीय संस्कृतिज्यादातर देखा गया है कि मनोरंजन के लिए लोग बड़े-बड़े माॅल घुमने जाते हैं सिनेमा देखने जाते हैं या कहीं घुमने का प्लान बनाते हैं। यह भारतीय ही नही करते बल्कि विदेशी भी भ्रमण के लिए जाते हैं। इन सभी चीजों के लिए लोगों को एकजुट होते देखा गया है। इससे सिर्फ मनोरंजन ही नही होता बल्कि लोग कुछ नया सीखते हैं। अगर कहीं घुमने जाते हैं तो वहो की संस्कृति से अवगत होते हैं और उनकी संस्कृति जानने की कोशिश करते हैं।
अगर डिजीटल की बात की जाए तो सबसे पहले हमारे दिमाग में कमप्युटर मोबाईल, इंटरनेट, गुगल आदि आता है और अगर संस्कृति की बात करें तों सबसं पहले खान पान रहन सहन वेश भुषा या उनके धर्म की बात आती है। अगर भारतीय संस्कृति को डिजिटल युग से जोड़ दिया जाए तो संस्कृति को एक नया आयाम मिल सकता है। जिससे लोगों के बीच भारतीय संस्कृति के बारे में नई नई जानकारी मिल सकती है। उन्हे इस संस्कृति के बारे में अवगत कराने का सही अवसर मिल सकता है।

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने कहा है कि संस्कृति का अर्थ मनुष्य का भीतरी विकास और उसकी उन्नति हैं। एक दूसरे के साथ सद्व्यवहार और दूसरों को समझाने की शक्ति है। संस्कृति हमें यह सिखाता है कि अनेकता में एकता एवं परस्पर सर्वधर्म समभाव का समन्वय। डिजिटल युग में जिस तरह से बदलाव आ रहे हैं, जिस प्रकार आज देश 4जी की स्पीड से चल रहा है। किसी भी कार्य को करने से पहले उसकी सलाह इंटरनेट से ली जा रही है। आज के लोग काफी जागरूक हो रहे हैं। सभी चीजों को देखसमझ कर पूर्ण सहमति से कार्य को करते हैं।
हमारा देश वर्षों से भ्रमण का स्थल रहा है। लोग देश विदेश से घूमने आते हैं यहां की संस्कृति को जानने आते हैं, यहां के बारे में अवगत होने आते हैं। इसी क्रम में वे सबसे पहले यहां की जानकारी इंटरनेट के माध्यम से लेते हैं। और तभी यहां आते हैं। हमारी संस्कृति काफी पुरानी है, और रहस्यमय भी। इसीलिए विदेशियों में भी हमारी संस्कृति ज्ञान की ज्योति जलाती है। विदेशी पर्ययक यहां आकर यहां की संस्कृति में रम जाते हैं। यहां की वेशभूषा में अपने आप को ढाल लेते हैं। पुरुष धोती कुर्ता एवं महिलाएं साड़ी पहन कर अपने आप को इस संस्कृति से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। हलांकि यहां की एक गलत बात यह है कि जिस तरीके से पश्चिमी सभ्यता ने अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है, लोग अंग्रेजी के अलावा अपनी मातृभाषा में बात नही करना चाहते हैं इसी कारण से बहुत से विदेशी सैलानियों की इच्छा रहती है कि मातृभाषा सीखें। किंतु पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव के कारण वे सीख नही पाते।
देहरादून में पिछले दस वर्षो से रह रही जर्मनी निवासी मारिया कहती हैं कि मैं अभी तक सही तरीके से हिंदी नही बोल पाती हूँ क्योंकि यहां कोई सही ढंग से सिखाने वाला नही है। उनका यह मानना था कि सभी स्कूलों से अंग्रेजी भाषा को खत्म कर देना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी अपनी संस्कृति से जुड़ी रहे, और उसे जन जन तक पहुँचाये।
अगर भारतीय लोगों की ऐसी मानसिकता रहेगी तो हमारे देश की संस्कृति धीरे धीरे नष्ट होने के कगार पर आ जायेगी, और लोग 4जी, 5जी और 6जी के पीछे भागते रहेंगे। अगर संस्कृति को भी डिजिटल युग से जोड़ दिया जाए तो दोनों के सामंजस्य से बहुत ही अच्छे युग का आगमन हो सकेगा।

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