पिथौरागढ़ के जन्मदिन पर जानिए कुछ खास बातें

आज पिथौरागढ़ जिले का जन्मदिन है. 60 साल पहले आज ही के दिन पिथौरागढ़ जिले का गठन किया गया था. 24 फ़रवरी 1960 से पहले तक पिथौरागढ़ अल्मोड़ा जिले की एक तहसील हुआ करता था. 24 फरवरी 1960 को सीर, सोर, गंगोली व अस्कोट परगनों के साथ मुनस्यारी, धारचूला, डीडीहाट और पिथौरागढ़ को मिलाकर अलग जनपद के रूप में प्रदेश व देश के नक़्शे में ला दिया गया.
यह उत्तराखण्ड के ऐतिहासिक नगरों में से एक है. इसे सोर घाटी के नाम से भी जाना जाता था. सोर का शाब्दिक अर्थ सरोवर होता है. कहा जाता है कि किसी समय में यहाँ पर सात सरोवर हुआ करते थे. वक़्त बीतने के साथ इन सरोवरों का पानी सूख जाने के कारण बनी पठारी भूमि में यह क़स्बा बसा. पठारी भूमि पर बसे होने के कारण ही इसका नाम पिथौरागढ़ पड़ा. इसके नाम एवं शासकों के बारे में इतिहासकारों के बीच मतभिन्नता है. पृथ्वीशाह का शासनकाल चौदहवीं शताब्दी का माना जाता है. इनका विवाह मायापुरहाट (अब हरिद्वार) के अमरदेव पुंडीर की बेटी गंगादेई के साथ हुआ. बाद में उनका विवाह गंगादेई की छोटी बहन मौलादेवी के साथ हुआ. यही मौलादेवी बाद में कत्यूरी राजमाता जिया रानी के नाम से जानी गयीं. जियारानी के पुत्र थे दुलाशाही और उनके मालूशाही. यह सभी उत्तराखण्ड की लोकगाथाओं, लोकगीतों के सर्वाधिक चर्चित पात्र हैं. कत्यूरी शासकों के अलावा पिथौरागढ़ में चम्पावत के चन्द शासकों का भी शासन रहा. यह भी मन जाता है कि कत्यूरियों द्वारा अधिकार में लेने से पहले यहाँ काली कुमाऊँ के चंडालकोट के शासकों, चंडालवंशियों का भी राज्य था. 1790 से 1815 तक यहाँ नेपाल के गोरखों का अधिपत्य रहा. जब 1815 में कुमाऊँ में ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकार हो जाने के बाद इसे ‘ब्रिटिश परगना ऑफ़ सोर एंड जोहार’ नाम दिया गया.

पिथौरागढ़ उत्तराखण्ड के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक क्षेत्रों में भी प्रमुख है. कैलाश मानसरोवर का यह महत्वपूर्ण पड़ाव और मार्ग है. इसके अलावा भी यहाँ हाटकालिका और पाताल भुवनेश्वर जैसे लोकप्रिय मंदिर भी हैं। पिथौरागढ़ में ऐतिहासिक, पुरातात्विक व धार्मिक महत्त्व के ढेरों मंदिर हैं जहाँ दुर्लभ मूर्तियाँ संरक्षित हैं –हनुमानगढ़ी, चंडाक, ध्वज, थलकेदार, मोस्टामानू, उल्कादेवी, विल्ल्वेश्वर, कपिलेश्वर, उल्कादेवी आदि. सांस्कृतिक विविधता और समृद्धि की दृष्टि से पिथौरागढ़ कुमाऊँ मंडल में सबसे आगे दिखाई देता है. यहाँ रंग, शौक और वनरावत आदि जनजातियाँ अपनी समृद्ध सांस्कृतिक परम्पराओं के साथ निवास करती हैं. यहाँ पर हिल्जात्रा जैसी विशिष्ट पुरातन सांस्कृतिक परम्पराएँ न सिर्फ जीवित हैं बल्कि फल-फूल रही हैं. यहाँ लगने वाले कई ऐतिहासिक मेले देश-विदेश में लोकप्रिय हैं. पिथौरागढ़ हमेशा से तिब्बत-चीन के साथ व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र तो रहा ही है. प्राकृतिक सौन्दर्य और प्राकृतिक संसाधनों की दृष्टि से भी पिथौरागढ़ जिला उत्तराखण्ड में अग्रणी है. यहाँ के कई पर्यटक स्थलों का नयनाभिराम दृश्य देश-विदेश के पर्यटकों को अपने मोहपाश में बांधता है।

स्वयं प्रकृति को यह स्थान बहुत प्रिय रहा होगा मुनस्यारी

समुद्र ताल से करीब 2200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मुनस्यारी पंचचूली की शानदार चोटियों के साए में बसा एक छोटा सा पहाड़ी कस्बा है. मिथकों में बताया गया है कि पंचचूली का नाम उन पांच चूल्हों से प्रेरित है जिन पर पांच पांडवों ने अपनी अलग-अलग रसोइयाँ बनाकर अपना अंतिम भोजन पकाया था. प्रकृति ने जिस तरह अपना सौन्दर्य मुनस्यारी पर निछावर किया है उसे देखकर ऐसा भी लगने लगता है जैसे स्वयं प्रकृति को यह स्थान बहुत प्रिय रहा होगा।

धारचूला की व्यास घाटी

कैलाश-मानसरोवर और आदि-कैलाश की पवित्र तीर्थयात्राओं का मार्ग उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की धारचूला तहसील में पड़ने वाली व्यांस घाटी से होकर गुज़रता है. पवित्र हिमालयी ऊंचाइयों में रं घाटियाँ भी हैं जहां की तमाम अनसुनी-अनकही कहानियां आज भी खोजे जाने की प्रतीक्षा में हैं।

साभार- काफल ट्री

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