कुंभ कथा-2: महिलाएं और नागा

पिंडदान कर 200 महिलाएं बनेंगी नागा संन्यासी.. जैसे ही यह खबर वरिष्ठ पत्रकार और प्रोफेसर डॉ सुशील उपाध्याय ने पढ़ी तो उनका मैसेज आया कि भाई महिलाएं नागा कैसे बन जाएंगी? चूंकि यह स्टोरी मैंने की थी इसलिए जवाब भी तैयार था। दरअसल 2021 के हरिद्वार कुंभ में जूना अखाड़े की ओर से 200 महिलाओं को नागा संन्यासी के तौर पर दीक्षित किया गया। इससे पहले कुंभ मेलों में अधिकतर लोग नागा साधुओं का शाही स्नान देख सुन चुके हैं लेकिन महिला नागा संन्यासियों के बारे में अभी भी अधिकतर लोग अनजान ही हैं। हमने भी कुंभ मेले की रिपोर्टिंग करते हुए ही नागा संन्यासियों के बारे में जाना- समझा।

महिला नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया गोपनीयता के साथ पूरी की जाती है। संन्यासियों के सबसे बड़े अखाड़ों में शुमार श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े के माईवाड़ा में महिला संन्यासियों का संन्यास दीक्षा कार्यक्रम हुआ था। नागा संन्यासी बनाने की प्रक्रिया काफी लंबी होती है और यह करीब 24 घंटे चलती है।सबसे पहले महिला नागा संन्यासियों की मुण्डन प्रक्रिया होती है। इस प्रक्रिया के दौरान अखाड़े के माईबाड़ा की पदाधिकारी मौजूद रहती हैं। महिला संन्यासियों के लिए माईबाड़ा केवल जूना अखाड़े में ही है। मुण्डन प्रक्रिया के बाद इन सभी को कोपीन,दण्ड व कमण्डल धारण कराया जाता है। यही वह दिन है जब अपने सभी सगे सम्बन्धियों से हर प्रकार के सम्बन्ध खत्म कर दिए जाते हैं।

हम बात महिलाओं का नागा संन्यासी के तौर पर दीक्षित करने की कर रहे थे। प्रकिया आगे बढ़ती है और महिला नागा संन्यासियों द्वारा धर्म ध्वजा के नीचे हवनयज्ञ में आहुति डाली जाती हैं। यहां यह भी बताना जरूरी है कि गंगा स्नान से पहले महिला संन्यासी सांसरिक वस्त्रों का त्याग कर कोपीन दंड, कंमडल धारण कर लेती हैं। सभी नागाओं का स्नान के दौरान स्वयं का श्राद्व कर्म संपन्न कराया जाता है।

नागाओं के बारे में लोगों को एक बात विचित्र लग सकती है कि ये खुद का पिंडदान करते हैं। हिंदू धर्म में मरने वालों का श्राद्ध आने वाली पीढ़ियां करती हैं। लेकिन नागा बाबा खुद अपना श्राद्ध करते हैं और जीते जी पिंड दान करते हैं। इस पूरी प्रक्रिया के बाद नागा बाबाओं का दुनियादारी से कोई रिश्ता नहीं रह जाता। भक्त और भगवान के बीच फिर कोई मोह का बंधन बाधा नहीं बनता।
सभी नव दीक्षित महिला नागा संन्यासी पहले दिन शाम को धर्म ध्वजा पर पहुंचकर विजया होम की प्रक्रिया पूरी करती हैं। महिला नागा की दीक्षा के बारे में जूना अखाड़े की महिला अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष आराधना गिरी ने बताया कि इस संन्यास दीक्षा में 5 संस्कार होते हैं। जिसमे 5 गुरु बनाये जाते हैं। जब कुम्भ पर्व पड़ता है तो वहां गंगा घाट पर मुंडन, पिण्डदान क्रियाक्रम होते है।जिसके बाद रात्रि में धर्मध्वजा के पास जाकर ओम नमः शिवाय का जाप किया जाता है। जहाँ आचार्य महामंडलेश्वर विजया होम के बाद सन्यास दीक्षा देते है।

यहां तक तो पुरुष और महिला नागाओं की दीक्षा लगभग एक जैसी होती है लेकिन इसके बाद अंतर यह आता है कि महिला नागाओं को तन ढकने को पौने दो मीटर कपड़ा दिया जाता है। फिर सभी संन्यासी गंगा में 108 डुबकियां लगाती है और फिर स्नान के बाद अग्नि वस्त्र धारण कर लेती हैं। नागाओं की दीक्षा अगले दिन जाकर पूरी होती है। यह दीक्षा अगले दिन तड़के आचार्य पीठ द्वारा प्रेयस मंत्र दिये जाने के साथ ही पूर्ण होती है। किस नागा साधु को कौन सी जगह के कुंभ में दीक्षित किया गया है यह उनकी उपाधि से जाना जा सकता है। प्रयागराज के कुंभ में दीक्षित होने वालों को नागा नाम से जाना जाता है।उज्जैन में दीक्षा प्राप्त करने वालों को खूनी नागा कहा जाता है। वहीं हरिद्वार में नागा बनने वालों को बर्फानी नागा और नासिक में दीक्षा प्राप्त करने वालों को खिचडिया नागा कहा जाता है।

नागा साधु की दिनचर्या सुबह 4:00 बजे शुरू हो जाती है।नागा साधु हर हाल में 4:00 बजे बिस्तर छोड़ देते हैं और स्नानादि से निवृत्त होने के बाद श्रृंगार में जुट जाते हैं। नागा साधु शरीर पर भस्म मलने के बाद खूब श्रंगार करते हैं। इसके बाद प्राणायाम, कपाल क्रिया, हवन, ध्यान आदि में व्यस्त हो जाते हैं। सबसे बड़ी बात यह होती है कि नागा साधु पूरे दिन में केवल एक बार शाम को भोजन करते हैं और उसके बाद अपने बिस्तर पर सोने चले जाते हैं। नागा साधुओं को त्रिशूल डमरू,तलवार, चिमटा, चिलम, धूनी, भभूत, कुंडल,शंख,कमंडल तलवार, रुद्राक्ष, कमरबंद आदि बहुत प्रिय होते हैं।

कुंभ मेले में सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र नागा बाबा ही होते हैं।देश दुनिया के लोग कुंभ मेले के दौरान ही नागा बाबाओं के दर्शन कर पाते हैं।इसके बाद नागा बाबा आश्रम, जंगलों और गुफाओं में साधनारत रहते हैं। आम दिनों में नागा बाबाओं के दर्शन मुश्किल से ही हो पाते हैं। नागा बाबाओं का संबंध शैव परंपरा से माना जाता है। सामान्य साधुओं की तुलना में इनकी दिनचर्या काफी कठिन होती है। कुंभ के दौरान अखाड़ों में नागा साधु बनाए जाने की होड़ लगी रहती है। फिलहाल सबसे ज्यादा नागा साधु जूना अखाड़े में हैं।अन्य अखाड़ों की ओर से भी हर कुंभ काल में नागा साधु की संख्या बढ़ाई जाती है। यहां पर यह जानना जरूरी है कि नागा साधु बनने की प्रक्रिया कुंभ के दौरान शुरू और पूर्ण होती है। पृथ्वी पर कुंभ का आयोजन चार स्थानों पर होता है।

हरिद्वार में गंगा तट, उज्जैन में शिप्रा नदी के तट, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में गंगा, जमुना, सरस्वती के संगम पर कुंभ मेला लगता है। मान्यता है कि इन चारों स्थानों पर समुद्र मंथन के दौरान अमृत की बूंद गिरी थी। इसलिए इन्हीं स्थानों पर नागा साधु बनाए जाते हैं। इस बार हरिद्वार कुंभ में भी अखाड़ों की ओर से नागा साधु बनाए गए। नागा साधु को कई कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। नागा साधु के साथ साथ उसके परिवार के इतिहास की जांच भी की जाती है। ऐसा नहीं होता कि कोई गृहस्थ जीवन छोड़कर तत्काल नागा साधु बन जाता है बल्कि इसके लिए कई सालों तक कठिन प्रक्रिया से गुजरना होता है। अपने गुरुओं की सेवा करनी होती है। साथ ही सभी इच्छाओं को त्यागना होता है।नागा साधुओं के लिए ब्रह्मचर्य सबसे पहली और अनिवार्य शर्त होती है।ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है और जो इस परीक्षा को पास कर लेता है उसे महापुरुष का दर्जा दे दिया जाता है।

- योगेश योगी (लेखक वर्तमान में पंजाब केसरी में कार्यरत हैं)

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