पर्यावरण को बचाने की शुरू करें मुहिम

पुरा विश्व आज प्रदुषण से ग्रसित है। आज जिस प्रकार से प्रदुषण फैलता जा रहा है आने वाले कुछ वर्षो में प्रदुषण के कारण ऐसी समस्याऐं उत्पन्न होगी जिससे निपटना आम बात नही होगी। प्रकृति और मनुष्य का संबंध पुराना है। पर्यावरण और जीवन की अभिन्नता से सभी परिचित हैं। पर्यावरण की स्वच्छता निर्मलता और संतुलन से ही संसार को बचाया जा सकता है। ऋगवेद में कहा गया है कि इस ब्रह्मांड में प्रकृति सबसे शक्तिशाली है, क्योंकि यही सृजन एवं विकास और यही हृास तथा नाश करती है। अतः प्रकृति के विरूद्ध आचरण नहीं करना चाहिए। लेकिन आज के मनुष्य ठीक इसके विपरीत कार्य कर रहे हैं। अपनी सुविधाओें के लिए वनों का नाश कर रहे हैं हरे भरे जंगल तबाह कर रहे हैं। जब जंगल नष्ट हो रहे हैं तो जंगली जानवरों के रहने की जगह खत्म हो रहे हैं और वे बस्तीयों-इलाकों में आ रहे हैं और यहां भी उन्हे मारा जा रहा है। हाल ही देश के कुछ राज्यों ने वन से आए पशुओं को मारने का निर्देश दिया है जिसमें नीलगाय, जंगली सुअर आदि आते हैं। ये ऐसे जानवर हैं जिनका आशियाना हम मनुष्यों ने पहले छीन लिया और जब वे हमारे क्षेत्रो में आए तो उसे बचाने के बजाय उसे मारने पर तुले हुए हैं। ज्यादातर यह समस्या जंगल के आसपास सटे क्षेत्रों में होती है। वहां आए दिन कोई न कोई घटनाऐं घटित होती रहती है। कभी जानवर फसल खा जाते हैं तो कभी इंसान पर हमला कर उसे घायल कर देती है। इससे बचने के लिए लोग कांटे के तार या प्लास्टिक के पारदर्शी रस्सी से क्षेत्र का घेराव कर देते हैं जिससे वे गांवों में प्रवेश न कर पाए। और यह काफी हदतक सही भी है। लेकिन इसके कारण जंगली जानवर उस तार में फंसकर अपनी जान गवां बैठते हैं। हमें कुछ ऐसा निष्कर्ष निकालना चाहिए जो सभी के हित में हो।  हम उसे मारने के बजाए उसे बचाने की कोशिश करें तो प्रकृति का संतुलन बनाने में ज्यादा नही तो थोड़ी मदद मिल सकती है।  
विज्ञान के क्षेत्र में असीमित प्रगति तथा नये अविष्कार की स्पर्धा के कारण आज मानव प्रकृति पूर्णतया विजय प्राप्त करना चाहता है। इस कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। वैज्ञानिक उपलब्धियों से मानव प्रकृतिक संतुलन को उपेक्षा की दृष्टी से देख रहा है। दूसरी ओर धरती की जनसंख्या की निरंतर वृद्धि, औधोगिकरण एवं शहरीकरण की तीव्र गति से जहां प्रकृति के हरे भरे क्षेत्रों को समाप्त किया जा रहा है। जहां तहां गंदगी फैलाया जा रहा है। नदी-नालों को प्रदूषित किया जा रहा है। जहाँ वर्षों पहले खेती की जाती थी वहां आज बड़ी-बड़ी अट्टालिकाऐं बन गयी है। जहां गांवों में चौपाल लगाए जाते थे वहां आज चौक-चौराहे बन गये हैं। हरे भरे खेत जहां कभी हल चलाए जाते थे वहां उद्योग-धंधे लग गये हैं। जिसके कारण वायु प्रदूषण होने लगा है। कल कारखाने से निकलने वाला दूषित वायु की बीमारियों का कारण बनता जा रहा है। वहां आसपास के लोग की गंभीर बीमारी के चपेट में आकर अपनी जान गंवाने को मजबुर हो रहे हैं। साथ ही जल प्रदूषण भी इसी कल-कारखानों से निकलने वाले दूषित जल के कारण होता है।आज पुरा देश गंगा बचाओ अभियान में लगा हुआ है लेकिन गंगा का जल कैसे साफ होगा? अगर इस तरीके से ही हम अभियान चलाएं तो यह यकीनन कहने में कोई संकोच नही होगा कि गंगा साफ हो रही है क्योंकि कोई भी व्यक्ति कूड़ा गंगा में नही फेंक रहा है लेकिन गंगा के गंदा होने का मुख्य कारण यह नही है। मुख्य कारण यह है कि जो कल कारखाने से दूषित जल और नाले से गंदा पानी गंगा में बहाया जाता है वह सीधे सीधे गंदगी सहित पानी में भेजा जाता है। इसका अगर निवारण नही किया गया तो आने वाले कुछ वर्षों में निर्मल गंगा दूषित हो जाएगी 

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