गढ़वाल हिमालय:- इतिहास, संस्कृति, यात्रा एवं पर्यटन


Image result for गढ़वाल हिमालय:- इतिहास, संस्कृति, यात्रा एवं पर्यटन रमाकान्त बेंजवालप्रस्तुत गढ़वाल हिमालय:- इतिहास, संस्कृति, यात्रा एवं पर्यटन रमाकांत बेंजवाल द्वारा लिखित पुस्तक गढ़वाल की संस्कृति, सभ्यता, यात्रा एवं पर्यटन को दर्शाता है। गढ़वाल का इतिहास सैंकड़ों वर्ष पुराना है। यह वर्षों से तीर्थयात्रीयों के आगमन का स्थान रहा है। वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में गढ़वाल का तपोभूमि के रूप में उल्लेख मिलता है। प्रत्येक ऋतु में यहां अपना विशिष्ठ सौन्दर्य है। गर्मी आते ही यात्री तीर्थाटन व घुम्क्करी के उमड़ पड़ते हैं। सर्दियो में स्कीइंग, राफ्टिंग, ग्लाइडिंग जैसे साहसिक पर्यटन इस क्षेत्र में होते हैं। इस पुस्तक को चार अध्यायों में बांटा गया है। प्रथम अध्याय में लेखक ने बताया है कि हिमालय के पांच खंडो में हरिद्वार से लेकर कैलाश पर्वत तक फैले वर्तमान गढ़वाल को पौराणिक समय में केदारखंड के नाम से जाना जाता था। पुराणों में केदारखंड को स्वर्गभूमि माना गया है। पुराने ग्रंथो में भी गढ़वाल का जिक्र किया गया है। यह भूमि रामायण एवं महाभारत के इतिहास की साक्षी है। रामायण काल के अवशेष भी यहां मिलते हैं। प्राचीन मंदिर, मूर्तियां, प्राचीन जातियां, पाल वंश एवं कई राजाओं के आगमन के कारण गढ़वाल काफी प्रसिद्ध रहा। जब सभी गढ़ों को एकीकरण किया गया तब जाकर गढ़वाल क्षेत्र बना।
पुरे अध्याय में गढ़वाल के इतिहास को लेखक ने बताया है। दूसरे अध्याय में धर्म एवं जातियों के बारे में विशेष रुप से लेखक ने विवरण दिया है। यहां अधिकतर ब्राह्मण जाति के लोग हैं क्योंकि यह देवों की भूमि है जो अपने आध्यात्मिक व धार्मिक प्रयोजनों के लिए प्रसिद्ध है। अधिकांश क्षेत्र पर्वतीय होने के कारण यहां के लोगों को ‘पहाड़ी’ कहा जाता है। जहां भिन्न-भिन्न जाति के लोग निवास करते हैं। तीसरे अध्याय में सांस्कृतिक परिदृश्य को दर्शाया गया है। जिसमें लोकजीवन, जाति, परंपरा, त्योहार, लोक संस्कृति, लोक वाद्य, लोकगीत, लोककला, मेले, उत्सव, तंत्र-मंत्र, यातायात, पत्रकारिता आदि के बारे में लेखक ने भलिभांति व्याख्या किया है। पुस्तक के चैथे अध्याय में भौगोलिक पर्यटन एवं तीर्थाटन के बारे में विस्तृत रुप से बताया है। पुरे गढ़वाल में जितने भी पर्यटन स्थल हैं एवं जितने भी तीर्थस्थल, नदी, चारघाम यात्रा हैं इसका बहुत ही महत्व है। इसके बारे में उल्लेख किया गया है।

लेखक:- रमाकान्त बेंजवाल
पब्लिकेशन:- विनसर पब्लिशिंग कंपनी (देहरादून, उत्तराखंड)
मूल्य:- 195 रुपये
पृष्ठ:- 208

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