पिछले कुछ दिनों में यु पी का माहौल
ऐसा बन गया है कि पूरे राज्य में एक जनक्रांति का माहौल बन गया है. वह सहारनपुर
हिंसा हो या जेवर गैंग रेप कांड इन सभी मामलो ने यु पी की दशा
दिशा बदल कर रख दिया है. योगी आदित्यनाथ
के मुख्यमंत्री बनने के बाद यु पी में जिस तरीके से बदलाव आये है वह राज्य के लिए अच्छी
ख़बर है. लेकिन इन दिनों कुछ ऐसे भी घटनाएँ हुए हैं जिसने राज्य ही नहीं पूरे देश
को हिला कर रख दिया है.
हाल ही पिछले दिनों हुए सहारनपुर हिंसा में
दर्जनों घरों को बर्बाद कर दिया. बुरी तरीके से लोगों को भेड़ बकरी की तरह काटा गया.
हजारों लोगों को बेघर होना पड़ा. जगह जगह गाड़ी जला दिए गए, सड़कें जाम कर दिया गया.
माहौल इस तरीके से बिगड़ चुका था कि संभालना मुश्किल था. इसी बीच भीम आर्मी पता नही
कहां से वहां के दलितों के उत्थान के लिए आ गयी. इससे पहले इस भीम आर्मी का कोई
अता पता नहीं था.
पता नहीं जब भी कोई दलित के खिलाफ जुर्म होता है तब कोई न कोई नया
प्रेशर ग्रुप दलितों के उत्थान के लिए, उनकी आवाज को सरकार तक पहुँचाने के लिए आ
जाती है. ऐसा माहौल बना देते है कि भारत में दलितों पर लगातार जुर्म ही हो रहे हैं
यहाँ उनके कल्याण की बात होती ही नहीं है. इस विकट परिस्थिति में दलितों के साथ
खड़े होते हैं वो दलितों के लिए नहीं बल्कि ये दलितों के नाम पर अपनी सियासी रोटी
सेंका करते हैं. अपनी छवि को दुनिया के सामने लाने और अपना नाम कमाने के लिए ऐसा करते
हैं.
इन सभी कारणों से सहारनपुर में हिंसा इतना बढ़ गया कि पुलिस व फ़ोर्स को इसे
संभालने के लिए आना पड़ा और जब माहौल शांत नहीं हुआ तो मजबूरन धारा 144 लगानी पड़ी और एक खास बात पता चली कि जब
सारे मोबाइल एवं इंटरनेट बंद करा दिए गए थे तब भी वहां पर रिलायंस जियो चल रहा था.
इन सभी चीजों का प्रभाव आम जनता पर
बहुत जल्दी पड़ जाता है. आजकल के लोग सकारात्मक चीजों को बाद में देखते हैं नकारात्मक
चीजें पहले ही नजर आ जाती है.
मानते हैं कि दलितों पर आत्याचार हो रहा है लेकिन
उनको लेकर राजनीति करना, दंगे करना, धरने करना ये कहाँ कि समझदारी है. अगर आप सच
में चाहते है तो दलितों के विकास के लिए कुछ करके दिखाएँ तभी तो उनका विकास हो
पाएगा. सिर्फ धरना प्रदर्शन करने से और सरकार को गाली देने से कुछ नहीं होने वाला.
कुछ राजनितिक पार्टियाँ कहती है कि इसके लिए सरकार जिम्मेदार है क्या सरकार सिर्फ
दंगे ही करवा रही है, सरकार को पूरा राज्य देखना पड़ता है और वो शांति और अमन-चैन
चाहती है न कि दंगे फसाद. इस प्रकार के मामलो में सरकार को दरकिनार कर दिया जाता
है और विपक्षी दलों पर भरोसा बढ़ जाता है जैसे वो कोई मसीहा बन कर आ गए हो लेकिन वो
करते कुछ नहीं सिर्फ भरोसा और दिलासा दिलाते हैं.
अभी कुछ दिन पहले ही बसपा सुप्रीमो मायावती
सहारनपुर के लोगों से मिलने गयी थी और उसके बाद भी हिंसा हो गयी. वहीं सरकार के
बिना अनुमति के राहुल गाँधी भी वहां के लोगों से मिलने पहुँच गये. उनके दर्द को
समझना अच्छी बात है लेकिन उनके नाम पर खुद के तारीफों के पूल बंधना और दूसरे दल या
पार्टी पर आरोप-प्रत्यारोप लगाना गलत बात है.
वहीँ जेवर में हुए गैंग रेप ने तो सबको हिला कर
रख दिया. ऐसी बर्बरता से उन मुस्लिम महिलाओं के साथ बलात्कार किया वह काफी ही शर्मनाक
था. पहले लूटपाट किया और फिर परिवार के मुखिया को गोली मारकर हत्या कर दी फिर चारों
महिलाओं के साथ बलात्कार किया. आखिर कब तक दलितों और महिलाओं पर आत्याचार होते रहेंगे इसके लिए
जरुरत है स्वच्छ मानसिकता की, शुद्ध विचार की जो दूसरों पर इल्जाम
लगाने के बजाए किस तरीके से इस गंदगी को ख़त्म किया जाये यह सोंचनें को मजबूर कर
दे. राजनीतिक पार्टी तो अपने फायदे के लिए ही कार्य करती है और उन्हें सिर्फ वोट
बैंक से मतलब होता है लेकिन हम सब एक इंसान हैं और इंसानियत के नाते यह सोंचना
जरुरी होता है कि आखिर हम इसके लिए क्या कर सकते है.
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