आस्था के नाम पर ये कैसा खिलवाड़
सावन का महीना खासकर हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण होता है ये महीना भगवान शिव के लिए सबसे ज्यादा मशहूर है। प्रत्येक वर्ष लाखों करोड़ों लोग भगवान शिव को जल चढ़ाने श्रद्धालु देश के कोने कोने से जाते हैं। उनके अंदर भोलेनाथ के प्रति अटूट विश्वास रहता है चाहे कितनी भी तकलीफ हो सब सहकर महादेव पर जल चढाते हैं।
रोजाना लाखों लोग हरिद्वार के हरकी पैड़ी से जल भरकर पुरे आस्था के साथ गाजे-बाजे लेकरअपने अपने क्षेत्रों की अोर यात्रा प्रारम्भ करते हैं और वहां स्थानीय शिवलिंग पर जल चढाकर अपने मनोवांछित फल पाते हैं। मगर कुछ कांवड़िये ऐसे भी हैं जिन्हे आस्था से दूर-दुर तक कोइ लेना-देना नही है वे सिर्फ घुमने-फिरने और मौज-मस्ती करने आते हैं। जिसके कारण वहां के स्थानीय लोगों से लेकर आने जाने वाले लोगों को भी बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
बिना सायलेंसर की बाइक
कुछ कांवरिये अपने दोपहिया वाहन साथ लाते हैं अौर उसका साइलेंसर खोलकर शोर मचाते रहते हैं जिससे शांतिपूर्ण माहौल काफी शोर-शराबे के माहौल में तब्दील हो जाता है। वे लापरवाह इंसान बनकर गली-गली के चक्कर लगाते फिरते हैं और कांवड़ मेले का भरपूर फायदा उठाते हैं। लेकिन वो ये नहीं समझते कि जो आम आदमी हैं उन्हें कितनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और साथ ही ध्वनि प्रदुषण को बढ़ावा मिलता है। इन्ही लोगों के कारण पूरी यातायात व्यवस्था बिगड़ी रहती है। मनचले की भांति भटकते रहना और अनुशासनहीनता करते रहना इनका काम हो गया है । इसे कांवड़िया समझकर न तो पुलिस प्रशासन कुछ बोलती है और न आम व्यक्ति ही कुछ बोल पाते हैं।
बड़े बड़े लाउडस्पीकर
भगवान शिव को जल चढाने के लिए लाखों लोग देश के अलग अलग राज्यों से देवभूमि हरिद्वार जाते है और वहां से जल भरकर लाते हैं लेकिन जो कांवड़ ले के जाते है साथ अपने बैंड बाजे के साथ लाते हैं जिसके कारण काफी शोर शराबा होता है
पुलिस द्वारा की गयी सुरक्षा व्यवस्था या चाक चौबंद
हजारों टन कूड़े छोड़ के जाते हैं कांवरिये
कांवड़ मेला शुरू होते ही राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) सजग हो जाता है क्योकि
आस्था के प्रतीकात्मक रूप हैं भगवान शिव
शिव को हमेशा से एक बहुत शक्तिशाली प्राणी के रूप में देखा जाता रहा है। साथ ही, यह समझा जाता है कि वह सांसारिक रूप से बहुत चतुर नहीं हैं। इसलिए, शिव के एक रूप को भोलेनाथ कहा जाता है, क्योंकि वह किसी बच्चे की तरह हैं। ‘भोलेनाथ’ का मतलब है, मासूम या अज्ञानी। आप पाएंगे कि सबसे बुद्धिमान लोग भी बहुत आसानी से मूर्ख बन जाते हैं, क्योंकि वे छोटी-मोटी चीजों में अपनी बुद्धि नहीं लगा सकते। बहुत कम बुद्धिमत्ता वाले चालाक और धूर्त लोग दुनिया में आसानी से किसी बुद्धिमान व्यक्ति को पछाड़ सकते हैं। यह धन-दौलत के अर्थ में या सामाजिक तौर पर मायने रख सकता है, मगर जीवन के संबंध में इस तरह की जीत का कोई महत्व नहीं है।
आम तौर पर, शिव को परम या पूर्ण पुरुष माना जाता है। मगर अर्धनारीश्वर रूप में, उनका आधा हिस्सा एक पूर्ण विकसित स्त्री का होता है। कहा जाता है कि अगर आपके अंदर की पौरुष यानी पुरुष-गुण और स्त्रैण यानी स्त्री-गुण मिल जाएं, तो आप परमानंद की स्थायी अवस्था में रहते हैं। अगर आप बाहरी तौर पर इसे करने की कोशिश करते हैं, तो वह टिकाऊ नहीं होता और उसके साथ आने वाली मुसीबतें कभी खत्म नहीं होतीं। पौरुष और स्त्रैण का मतलब पुरुष और स्त्री नहीं है। ये खास गुण या विशेषताएं हैं। मुख्य रूप से यह दो लोगों के मिलन की चाह नहीं है, यह जीवन के दो पहलुओं के मिलन की चाह है, जो बाहरी और भीतरी तौर पर एक होना चाहते हैं। अगर आप भीतरी तौर पर इसे हासिल कर लें, तो बाहरी तौर पर यह सौ फीसदी अपने आप हो जाएगा। वरना, बाहरी तौर पर यह एक भयानक विवशता बन जाएगा।
यह रूप इस बात को दर्शाता है कि अगर आप चरम रूप में विकसित होते हैं, तो आप आधे पुरुष और आधी स्त्री होंगे। इसका मतलब यह नहीं कि आप नपुंसक होंगे, बल्कि एक पूर्ण विकसित पुरुष और एक पूर्ण विकसित स्त्री होंगे। तभी आप एक पूर्ण विकसित इंसान बन पाते हैं।
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