बदलते दौर के साथ-साथ बदलता सोशल मीडिया का सामाजिक दायरा
तकनीकी विकास के हर दौर में मीडिया का सत्ता और सरकार से अहम रिश्ता रहा है। भारत में अंग्रेजों के शासनकाल के समय प्रिंट मीडिया यानी प्रेस की भूमिका का जिक्र हो या अंग्रेजों के जाने के बाद दूरदर्शन और आकाशवाणी के जरिये सरकारी योजनाओं व नीतियों का प्रचार प्रसार की बात हो, मीडिया सरकार की नीतियों व योजनाओं को व्यापक लोगों तक पहुंचाने में अहम योगदान करती रही है। इसमें निजी व सरकारी दोनों ही तरह की मीडिया शामिल रही है। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक के बाद अब ऑनलाइन मीडिया ने समाज में अपनी जगह पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी है। इसे भारत में सोशल मीडिया के प्रसार के रूप में देखा जा सकता है। साथ ही सरकार के स्तर पर भी ऑनलाइन मीडिया खासतौर से सोशल मीडिया व नेटवर्किंग साइटों को प्रोत्साहित करने की नीति दिख रही है।
भारत में मोबाइल व इंटरनेट के जरिये सोशल मीडिया की पहुंच तेजी से बढ़ रही है, लेकिन अभी भी बहुत बड़ी आबादी इस माध्यम से दूर है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक 24.3 करोड़ लोग यानि करीब 19 प्रतिशत इंटरनेट उपभोक्ता हैं, जिसमें करीब 10.6 करोड़ लोग सक्रिय उपभोक्ता हैं। यह भारत की आबादी का महज 8 फीसदी हिस्सा है। मोबाइल की पहुंच भारत की 70 फीसदी आबादी तक है लेकिन मोबाइल पर सक्रिय रूप से इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या महज 15 फीसदी है, और जब मोबाइल पर सक्रिय रूप से सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों की बात आती है तो यह संख्या और कम होकर केवल 7 फीसदी रह जाती है। ब्रॉडबैंड की पहुंच भारत में 4.9 फीसदी लोगों तक है।
भारत में अभी भी 69 फीसदी आबादी यानि 88.90 करोड़ लोग गांवों में रहते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के गांवों में 5.9 करोड़ लोग ने अपने जीवन में कम से कम एक बार इंटरनेट का इस्तेमाल किया है। 4.9 करोड़ लोगों ही सक्रिय रूप से इंटनरेट का इस्तेमाल करने वाले हैं।6 एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक केवल 19 प्रतिशत ग्रामीण घरों में व 12 प्रतिशत के मोबाइल में इंटरनेट की पहुंच है। बाकी कुल ग्रामीण आबादी के आधे से ज्यादा लोगों 54 प्रतिशत को इंटरनेट तक पहुंचने के लिए 10 किलोमीटर तक चलकर साइबर कैफे जाना पड़ता है। ग्रामीण पृष्टभूमि के इंटरनेट उपभोक्ता इसका इस्तेमाल मुख्यतः मनोरंजन 75 प्रतिशत , संचार 56 प्रतिशत, ऑनलाइन सेवाओं 50 प्रतिशत, ई-कॉमर्स 34 प्रतिशत, सोशल नेटवर्किंग 39 प्रतिशत, ऑनलाइन वित्तिय लेनदेन 13 प्रतिशत, ग्रामीण जरूरतों 16 प्रतिशत के लिए करते हैं। ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों के लिए भाषा एक बड़ी रुकावट के रूप में देखी गई है। ऐसे इलाकों के ज्यादातर उपभोक्ता इंटरनेट का इस्तेमाल करते समय किसी ना किसी की मदद लेते हैं।
2014 के आम चुनावों के बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार के गठन के तत्काल बाद ही संपादकों के संगठन एडीटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने बयान जारी कर कहा कि मीडिया को सरकार के मंत्रालयों तक पहुंचने और खबर करने में रुकावट डाली जा रही है। इससे पहले सरकार की तरफ से सभी मंत्रालयों को यह निर्देश दिया गया था कि कोई भी अधिकारी बिना अनुमति के मीडिया से बातचीत या कोई खबर साझा नहीं करेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जुकरबर्ग से दिल्ली में सार्वजनिक मुलाकात की और अपने डिजीटल इंडिया कार्यक्रम के बारे में चर्चा की। संचार एवं सूचना प्रद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अपने मंत्रालय के अधिकारियों को फेसबुक के साथ मिलकर फेसबुक की परियोजनाओं पर गंभीरता से काम करने के निर्देश दिए।
नई सरकार बनने के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि नरेंद्र मोदी ने सभी मंत्रियों को सोशल मीडिया के जरिये लोगों से सक्रिय रूप से जुड़ने के लिए कहा है। मंत्रालयों को सोशल मीडिया पर एकांउट खोलने और उस पर लोगों से जुड़ने तथा उनके सवालों के जवाब देने को कहा गया। संसद में सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने बताया कि मंत्रालय के अंतर्गत ‘न्यू मीडिया विंग’ खोला गया है और सभी मंत्रालयों?विभागों को सोशल मीडिया पर सक्रियता के लिए इसका इस्तेमाल करने को कहा गया है। 11 जुलाई 2014 को दिल्ली स्थित राष्ट्रीय मीडिया केंद्र में सभी मंत्रालयों के अधिकारियों का सोशल मीडिया के इस्तेमाल के लिए उन्मुखीकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया।
यह घटनाएं भारत में मीडिया के स्तर पर बदलती नीति की तरफ इशारा करती हैं। नीतियों में यह बदलाव केवल सरकार के स्तर पर लिया गया फैसला नहीं है, बल्कि एक नए माध्यम के तौर पर सोशल मीडिया को स्थापित करने का यह राजनीतिक फैसला है। राजनीतिक तौर पर वर्चस्व कायम रखना और समय के अनुसार माध्यम का चुनाव एवं उसका विस्तार एक दूसरे से जुड़े होते हैं।
तकनीकी विकास के हर दौर में मीडिया का सत्ता और सरकार से अहम रिश्ता रहा है। भारत में अंग्रेजों के शासनकाल के समय प्रिंट मीडिया यानी प्रेस की भूमिका का जिक्र हो या अंग्रेजों के जाने के बाद दूरदर्शन और आकाशवाणी के जरिये सरकारी योजनाओं व नीतियों का प्रचार प्रसार की बात हो, मीडिया सरकार की नीतियों व योजनाओं को व्यापक लोगों तक पहुंचाने में अहम योगदान करती रही है। इसमें निजी व सरकारी दोनों ही तरह की मीडिया शामिल रही है। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक के बाद अब ऑनलाइन मीडिया ने समाज में अपनी जगह पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी है। इसे भारत में सोशल मीडिया के प्रसार के रूप में देखा जा सकता है। साथ ही सरकार के स्तर पर भी ऑनलाइन मीडिया खासतौर से सोशल मीडिया व नेटवर्किंग साइटों को प्रोत्साहित करने की नीति दिख रही है।
भारत में मोबाइल व इंटरनेट के जरिये सोशल मीडिया की पहुंच तेजी से बढ़ रही है, लेकिन अभी भी बहुत बड़ी आबादी इस माध्यम से दूर है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक 24.3 करोड़ लोग यानि करीब 19 प्रतिशत इंटरनेट उपभोक्ता हैं, जिसमें करीब 10.6 करोड़ लोग सक्रिय उपभोक्ता हैं। यह भारत की आबादी का महज 8 फीसदी हिस्सा है। मोबाइल की पहुंच भारत की 70 फीसदी आबादी तक है लेकिन मोबाइल पर सक्रिय रूप से इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या महज 15 फीसदी है, और जब मोबाइल पर सक्रिय रूप से सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों की बात आती है तो यह संख्या और कम होकर केवल 7 फीसदी रह जाती है। ब्रॉडबैंड की पहुंच भारत में 4.9 फीसदी लोगों तक है।
भारत में अभी भी 69 फीसदी आबादी यानि 88.90 करोड़ लोग गांवों में रहते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के गांवों में 5.9 करोड़ लोग ने अपने जीवन में कम से कम एक बार इंटरनेट का इस्तेमाल किया है। 4.9 करोड़ लोगों ही सक्रिय रूप से इंटनरेट का इस्तेमाल करने वाले हैं।6 एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक केवल 19 प्रतिशत ग्रामीण घरों में व 12 प्रतिशत के मोबाइल में इंटरनेट की पहुंच है। बाकी कुल ग्रामीण आबादी के आधे से ज्यादा लोगों 54 प्रतिशत को इंटरनेट तक पहुंचने के लिए 10 किलोमीटर तक चलकर साइबर कैफे जाना पड़ता है। ग्रामीण पृष्टभूमि के इंटरनेट उपभोक्ता इसका इस्तेमाल मुख्यतः मनोरंजन 75 प्रतिशत , संचार 56 प्रतिशत, ऑनलाइन सेवाओं 50 प्रतिशत, ई-कॉमर्स 34 प्रतिशत, सोशल नेटवर्किंग 39 प्रतिशत, ऑनलाइन वित्तिय लेनदेन 13 प्रतिशत, ग्रामीण जरूरतों 16 प्रतिशत के लिए करते हैं। ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों के लिए भाषा एक बड़ी रुकावट के रूप में देखी गई है। ऐसे इलाकों के ज्यादातर उपभोक्ता इंटरनेट का इस्तेमाल करते समय किसी ना किसी की मदद लेते हैं।
2014 के आम चुनावों के बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार के गठन के तत्काल बाद ही संपादकों के संगठन एडीटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने बयान जारी कर कहा कि मीडिया को सरकार के मंत्रालयों तक पहुंचने और खबर करने में रुकावट डाली जा रही है। इससे पहले सरकार की तरफ से सभी मंत्रालयों को यह निर्देश दिया गया था कि कोई भी अधिकारी बिना अनुमति के मीडिया से बातचीत या कोई खबर साझा नहीं करेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जुकरबर्ग से दिल्ली में सार्वजनिक मुलाकात की और अपने डिजीटल इंडिया कार्यक्रम के बारे में चर्चा की। संचार एवं सूचना प्रद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अपने मंत्रालय के अधिकारियों को फेसबुक के साथ मिलकर फेसबुक की परियोजनाओं पर गंभीरता से काम करने के निर्देश दिए।
नई सरकार बनने के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि नरेंद्र मोदी ने सभी मंत्रियों को सोशल मीडिया के जरिये लोगों से सक्रिय रूप से जुड़ने के लिए कहा है। मंत्रालयों को सोशल मीडिया पर एकांउट खोलने और उस पर लोगों से जुड़ने तथा उनके सवालों के जवाब देने को कहा गया। संसद में सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने बताया कि मंत्रालय के अंतर्गत ‘न्यू मीडिया विंग’ खोला गया है और सभी मंत्रालयों?विभागों को सोशल मीडिया पर सक्रियता के लिए इसका इस्तेमाल करने को कहा गया है। 11 जुलाई 2014 को दिल्ली स्थित राष्ट्रीय मीडिया केंद्र में सभी मंत्रालयों के अधिकारियों का सोशल मीडिया के इस्तेमाल के लिए उन्मुखीकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया।
यह घटनाएं भारत में मीडिया के स्तर पर बदलती नीति की तरफ इशारा करती हैं। नीतियों में यह बदलाव केवल सरकार के स्तर पर लिया गया फैसला नहीं है, बल्कि एक नए माध्यम के तौर पर सोशल मीडिया को स्थापित करने का यह राजनीतिक फैसला है। राजनीतिक तौर पर वर्चस्व कायम रखना और समय के अनुसार माध्यम का चुनाव एवं उसका विस्तार एक दूसरे से जुड़े होते हैं।
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