एक ऐसा विधायक जिसके आगे सरकार का कद छोटा पड़ गया

विधायक महोदय पर आरोप है कि एक व्यापारी-पटियाला लस्सी वाले को फायदा पहुंचाने के लिए इन्होनें सिविल लाइंस के चैराहे से चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा ही उखाड़ दी। चंद्रशेखर आजाद का दोष इतना था कि वो दुकान के सामने मूंछ ऐंठ रहे थे। इसके खिलाफ पीडब्लूडी को ही कोर्ट जाना पड़ा। कोर्ट ने तो मूर्ति के हक में फैसला सुना दिया लेकिन चंद्रशेखर आजाद जी तमाम दबाव के बाद भी विधायक जी की मर्जी के आगे बेबस है। जबकि चंद्रशेखर जी की मूर्ति हटाने पर जमकर बवाल हुआ था लोगों ने प्रदीप बत्रा के खिलाफ न सिर्फ नारेबाजी की थी बल्कि उनके पुतले की शवयात्रा भी निकाली थी।
विभिन्न संगठन भी सड़क पर उतरे थे। पश्चिमी रूड़की भाजपा के मंडल अध्यक्ष सौरभ पंवार भी इनके खिलाफ संगठन के कार्यकर्ताओं की अनदेखी करने की शिकायत कर चुके हैं। सन् 1971 से स्थापित चंद्रशेखर की मूर्ति हटाने के मुद्दे पर उन्होंने भी कड़ी आपत्ति दर्ज करायी थी।
विधायक जी, अपनी और पत्नी की एलएलबी की फर्जी डिग्री को लेकर सीबीसीआईडी की जांच में दोषी पाए जा चुके हैं। ये बात और है कि विजय बहुगुणा के मंत्रिमंडल काल में इस प्रकरण को ठंडे बस्ते में डलवा चुके हैं।
ताजा मामला विधायक जी के बन रहे माॅल का है। नूजूल की जमीन पर कानून ताख पर रखने वाले विधायक प्रदीप बत्रा ने प्लाॅट के फ्रंट मौजूद पुलिस चैकी तक को उखाड़ कर फिंकवा दिया। अब कोर्ट ने फिर इनके खिलाफ फैसला दे दिया है। बीजेपी के कार्यकर्ता और इस प्रकरण को प्रमुखता से उठाने वाले अभय पुण्डीर का आरोप है कि विधायक जी ने बेहताशा पैसा पानी की तरह बहाया था।
पैसों की ताकत के आगे पूरा प्रशासन इनके आगें नतमस्तक है। प्रशासन के हाथों को अपनी जेबों में कैद कर देते हैं। और तो और इनका ये कारनामा तो सबपर भारी है। एक पुल का निमार्ण सरकार ने कराया पर विधायक जी ने चार लाख रूपय खर्च कर उस पुल पर अपने पिता प्रकाश जी के नाम पर कर दिया।
पुल सरकारी था लेकिन नाम प्रकाश गंगा, इसे लेकर भी काफी विरोध हुआ। दरअसल इस पुल का नाम पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर रखा था लेकिन प्रदीप बत्रा ने सेतु का नाम प्रकाश गंगा ब्रिज कर दिया तो वहीं कांग्रेस विरोध में पुल का नाम सरदार भगत सिंह क्रांति सेतु रख दिया। बाद में संगठन के दबाव के आगे सरकार को इस पुल का नाम पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर करना पड़ा।
बताया जा रहा है कि गंगा नहर पर लोक निर्माण विभाग विभाग की तरफ से नगर निगम कार्यालय के पास पुल का निर्माण कराया गया लेकिन इसको लेकर राजनीति उस समय गर्मा गयी जब लोगों ने देखा कि पुल का नाम पंडित दीनदयाल उपाध्याय प्रकाश गंगा सेतु के रूप में चमक रहा है।
पुल के नाम में प्रकाश शब्द जोड़े जाने की जानकारी आम होते ही बवाल शुरू हो गया। कांग्रेस के नेता व पूर्व विधायक धरने पर बैठ गये उनका कहना था कि पुल के नाम में विधायक के पिता का नाम जोड़ने से बेहतर है कि पुल का नाम महाराजा अग्रसेन पर कर दिया जाए।
हाल ही विगत माह एक खबर आयी थी कि रुड़की के मौजूदा विधायक प्रदीप बत्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो सकती है। एक मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने शहरी विकास सचिव और संबंधित विभाग को कार्रवाई करने के आदेश जारी किये हैं।
दरअसल, नगर निगम रुड़की के वर्तमान मेयर यशपाल राणा ने इस मामले में हाई कोर्ट में याचिका दायर कर प्रदीप बत्रा पर आरोप लगे थे कि रुड़की नगर पालिका चेयरमैन रहते हुये बत्रा ने अपने चहेतों को बिना किसी विज्ञापन या विज्ञप्ति के ही नगर पालिका की दुकानें आवंटित कर दी थीं।
प्रदीप बत्रा पर आरोप है कि उन्होंने नगरपालिका चेयरमैन रहते हुए पद का दुरुपयोग किया। उन्होंने अपने चहेतों को नगर निगम की दुकानों की छतें, आवासों की छतें व दुकानें भी आवंटित कर दी थीं। इस प्रकरण में शासन स्तर पर उच्चस्तरीय कमेटी से जांच कराई गई थी। कमेटी की 3 मार्च 2015 को आई जांच रिपोर्ट में घोटाले की पुष्टि भी हुई थी।
कोर्ट में सुनवाई के दौरान सभी सबूतों को देखते हुए शहरी सचिव और शहरी विकास मंत्री को इस मामले में कार्रवाई करने को कहा है। कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा है कि इस मामले में निष्पक्ष जांच कर जल्द एक्शन हो और जरूरत पड़ने पर बत्रा के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किया जाए। बता दें कि रुड़की नगर पालिका अब नगर निगम बन गया है और प्रदीप बत्रा कांग्रेस छोड़ बीजेपी के विधायक हैं।
दरअसल बीजेपी के कार्यकर्ताओं के लिए भी ये समझना काफी मुश्किल होता जा रहा है कि आखिर इतने बेअंदाज विधायक को भारतीय जनता पार्टी संगठन अपने छत्र छाया में क्यों पाल रही है। उत्तराखंड विधानसभा में सत्तर सदस्यीय विधायकों में पचपन विधायकों की ताकत रखने वाली भाजपा आखिर प्रदीप बत्रा के आगे खुद को बौना क्यों समझ रही है।
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