हिंदुओं की आस्था का संगम और संतों का समागम है कुंभ मेला

आध्यात्मिक देश होने के कारण भारत में कई धार्मिक यज्ञ, मेला आदि समय समय पर आयोजित होते रहते हैं। कुंभ मेला भी आध्यात्मिक मेला है, जहाँ विधि- विधान के साथ पूजा पाठ, यज्ञ आदि होता है। ऐसा माना जाता है कि कुंभ  मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वो जीवन- मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। दिसंबर 2017 में यूनेस्को ने भारत मे आयोजित इस मेले को ‘इनटैन्जिबल कल्चर हेरिटेज ऑफ़ ह्यूमैनिटी लिस्ट’ में शामिल किया है। इस तरह से यह मेला एक वैश्विक स्तर का आयोजन बन गया है। सनातन धर्म में कुंभ मेले का अपना आध्यात्मिक महत्व है। सदियों से कुंभ  के मेले में स्नान की प्रथा चली आ रही है। सनातन धर्म के अनुसार मनुष्य की मृत्यु के बाद उसका पुनर्जन्म होता है। ऐसा माना जाता है कि कुंभ मेले में स्नान करने वाले व्यक्ति जन्म बंधन से मुक्त होकर परमात्मा को प्राप्त कर लेता है। इस मेले में एक साथ असंख्य हिंदू श्रद्धालु एक स्थान पर आ पाते हैं। विभिन्न तरह के साधु, सिद्ध पुरुष, विद्वान और पंडित इस मेले में आकर पूजा पाठ, यज्ञ आदि का आयोजन करते हैं। इस मेले में शामिल होकर आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किया जा सकता है।

कुंभ दो प्रकार का होता है अर्धकुंभ और पूर्ण कुंभ या महाकुंभ। अर्धकुंभ जहां हर 6 साल पर मनाया जाता है, वहीं पूर्ण कुंभ का आयोजन प्रति 12 वर्ष पर किया जाता है। अर्धकुंभ केवल हरिद्वार और प्रयागराज में लगता है। उज्जैन और नासिक में लगने वाले पूर्ण कुंभ को 'सिंहस्थ' कहा जाता है। हालांकि उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 2019 प्रयागराज कुंभ का नाम अर्द्धकुंभ की बजाय 'कुंभ' रख दिया है. सीएम योगी का कहना है कि हिंदू धर्म में कुछ भी अधूरा नहीं होता. उन्होंने अर्द्धकुंभ का नामकरण 'कुंभ' और पूर्ण कुंभ का 'महाकुंभ' कर दिया है। कुंभ मेला किस समय, किस स्थान पर लगेगा, इसका ताल्लुक राशियों से है. अमृत मंथन के बाद सूर्य, चंद्रमा, शनि और बृहस्पति ने कलश की रक्षा की थी. उस समय ये कुम्भ, मेष और सिंह राशि में थे. ऐसे में इन ग्रहों और राशियों के विशेष संयोग पर कुंभ मेला किस स्थान पर लगेगा, ये तय किया जाता है।

कैसे होती है कुंभ की तिथि निर्धारित
कुंभ की गणना एक विशेष विधि से होती है जिसमें गुरु का अत्यंत महत्व है। नियमानुसार गुरू एक राशि में लगभग एक वर्ष रहता है। यानि बारह राशियों में भ्रमण करने में उसे 12 वर्ष की अवधि लगती है। यही कारण है प्रत्येक बारह साल बाद कुंभ उसी स्थान पर वापस आता है अर्थात प्रत्येेक बारह साल में कुंभ आयोजन स्थल दोहराया जाता है। इसी प्रकार गणना के अनुसार कुंभ के लिए निर्धारित चार स्थानों में अलग-अलग स्थान पर हर तीसरे वर्ष कुंभ का अयोजन किया जाता है। कुंभ के लिए निर्धारित चारों स्थानों में प्रयाग के कुंभ का विशेष महत्व होता है। हर 144 वर्ष बाद यहां महाकुंभ का आयोजन होता है क्योंकि देवताओं का बारहवां वर्ष पृथ्वी लोक के 144 वर्ष के बाद आता है। कुंभ एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु इसके नियत स्थलों हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है। इससे पूर्व 2013 का कुंभ प्रयाग में हुआ था। पूर्ण कुंभ के छ: वर्ष बाद अर्ध कुंभ होता है।

कैसे बनता है चार ग्रहों का संयोग
इस बार 2019 का कुंभ 15 जनवरी से लेकर 4 मार्च तक प्रयागराज में चल रहा है। कहते हैं जिस समय में चंद्रमा सहित अन्य ग्रहों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले ग्रह जब आते हैं, उस समय कुंभ का योग होता है अर्थात जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है, उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहां अमृत की बूंद गिरी थी, उस स्थान पर कुंभ पर्व होता है। जैसे चन्द्रमा ने अमृत को बहने से बचाया था, गुरू ने कलश को छुपा कर रखा था, सूर्य देव ने कलश को नष्ट होने से बचाया था और शनि ने इन्द्र के कोप से उसकी रक्षा की थी। इसलिए जब इन ग्रहों का संयोग सही राशि में होता है तब कुंभ का अयोजन होता है। पौराणिक कथाआें के अनुसार माना जाता है कि पृथ्वी पर चार कुंभ होते हैं आैर आठ देवलोक में होते हैं।

मेला में अखाड़ों का महत्व
शास्त्रों की विद्या रखने वाले साधुओं के अखाड़े का कुंभ मेले में काफी महत्व है. अखाड़ों की स्थापना आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म को बचाने के लिए की थी. अखाड़ों के सदस्य शस्त्र और शास्त्र, दोनों में निपुण कहे जाते हैं. नागा साधु भी इन्हीं अखाड़ों का हिस्सा होते हैं। सबसे बड़ा जूना अखाड़ा, फिर निरंजनी अखाज़ा, महानिर्वाण अखाड़ा, अटल अखाड़ा, आवाहन अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, पंचाग्नि अखाड़ा, नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा, उदासीन नया अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा और निर्मोही अखाड़ा। शुरुआत में प्रमुख अखाड़ों की संख्या केवल 4 थी, लेकिन वैचारिक मतभेदों के चलते बंटवारा होकर ये संख्या 13 पहुंच गई है। इन अखाड़ों के अपने प्रमुख और अपने नियम-कानून होते हैं।कुंभ मेले में अखाड़ों की शान-बान देखने ही लायक होती है। ये अखाड़े केवल शाही स्नान के दिन ही कुंभ में भाग लेते हैं और जुलूस निकालकर नदी तट पर पहुंचते हैं। अखाड़ों के महामंडलेश्‍वर और श्री महंत रथों पर साधुओं और नागा बाबाओं के पूरे जुलूस के पीछे-पीछे शाही स्नान के लिए निकलते हैं।

कुंभ जाने वालों के लिए प्रशासन ने की व्यवस्था
तीर्थराज प्रयाग मे चल रहा भव्य कुंभ कुल 45 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। मेले को 20 सेक्टर को बांटा गया है। लोगों की सहुलियत के लिए 40 अस्थायी पुलिस चौकियां बनाई गई हैं। गंगा नदी के इस पार से उस पार जाने के लिए 22 पीपा पुल बनाए गए हैं। मेले में खोया-पाया के 15 केन्द्र बनाए गए हैं जो अलग-अलग सेक्टरों में कार्यरत हैं। आपकी समस्याओं के समाधान के लिए मेला प्रशासन ने नक्शा जारी किया है।

प्रदेश के सभी शहरों से है सीधा बस संपर्क
कुंभ के मद्देनजर प्रदेश के सभी शहरों  से रोडवेज की बस सेवा प्रयागराज के लिए उपलब्ध है। लखनऊ से प्रयागराज के लिए हर 15 मिनट पर बसें उपलब्ध हैं। इसी तरह कानपुर, वाराणसी, गोरखपुर, आगरा, बरेली, फैजाबाद, अयोध्या, चित्रकूट, अलीगढ़, झांसी आदि शहरों से भी प्रयागराज के लिए सीधी बसें। इन शहरों से रोडवेज की एसी जनरथ सेवा भी है। इसके अलावा लखनऊ, वाराणसी, आगरा, दिल्ली, कानपुर से प्रयागराज के लिए वॉल्वों  भी उपलब्ध है।

शहर आने के बाद कैसे पहुंचे संगम
इलाहाबाद जंक्शन, सिविल लाइंस बस स्टेशन एवं बम्हरौली एयरपोर्ट उतरने के बाद संगम के लिए सिटी बस, टैक्सी, टेंपो आदि उपलब्ध है। बम्हरौली एयरपोर्ट से विमानों के आवागमन के दौरान सिटी बस और प्राइवेट टैक्सियां आसानी से मिल सकती है। प्राइवेट टैक्सी से संगम का न्यूनतम किराया 400 रुपया है। इसी तरह से रेलवे स्टेशन से संगम के लिए टेंपो में प्रति व्यक्ति किराया 20 रुपया है। सिटी बस का किराया 15 रुपये प्रतियात्री है। रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन से हर समय टेंपो, टैक्सी उपलब्ध है।

कितना बजट आवंटित किया उत्तरप्रदेश सरकार ने
दुनिया का यह सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन पूरी दुनिया में अपनी आध्यात्मिकता और विलक्षणता के लिए प्रसिद्ध है। उत्तर प्रदेश सरकार ने 50 दिन तक चलने वाले कुंभ मेले के लिए 4,200 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं जो वर्ष 2013 में आयोजित महाकुंभ के बजट का तीन गुना है। कुंभ में विदेशों से भी बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। इनमें ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, कनाडा, मलेशिया, सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड, मारीशस, जिम्बाब्वे और श्रीलंका प्रमुख हैं। सीआईआई के अनुमान के मुताबिक कुंभ मेले से राजस्थान, उत्तराखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश को भी इसका फायदा होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि कुंभ में शामिल होने वाले पर्यटक इन राज्यों के पर्यटन स्थलों पर भी जा सकते हैं। कुंभ मेले में करीब 15 करोड़ लोगों के आने की संभावना है।

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