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दैनिक जागरण में प्रकाशित खबर |
गंगा रक्षा को लेकर चल रहे अनशन की शुरुआत डेढ़ साल पहले हुई थी। इस कड़ी
की शुरुआत ब्रह्मलीन प्रोफेसर ज्ञान स्वरूप सानंद ने की थी। मुझे याद है 9
अक्टूबर 2019 को मैं हरिद्वार गया था और रात मैं ज्वालापुर मेरे मित्र (हिमांशु भट्ट) के यहां
रुका था। सुबह अचानक पता चला कि आश्रम पर पुलिस तैनात हो गई है और सानंद
जी को AIIMS ऋषिकेश भेजने की तैयारी हो रही है। उन्हें भर्ती कराया गया।
अनशन तोड़ने के लिए कई बार फ़ोर्स फीडिंग कराई गई। उनकी मौत के बाद क्रमिक
अनशन चल ही रहा है। यहां तक कि इसके लिए प्रयागराज के कुंभ
में भी जाकर अनशन किया गया था। वर्तमान में ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद ने
दिल्ली एम्स से लौटकर 40वें दिन अपना अनशन समाप्त कर दिया है। इसके साथ ही
साध्वी पद्मावती का अनशन 88वें दिन भी दिल्ली एम्स में जारी है।
राज्य में डबल इंजन की सरकार है। केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक
हरिद्वार से सांसद हैं। राज्य में शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक हरिद्वार से
विधायक हैं। फिर भी इस मुद्दे पर दोनों पक्षों में सहमति नहीं बन पा रही
है। पहले तो कोई बात करने भी नहीं आया, जब संत समाज आक्रोशित हुआ तो वार्ता
की गई, लेकिन सभी मांगों पर सहमति नहीं बन पाई। अब तक सिर्फ आश्वासन ही
मिल रहा है। केंद्र सरकार जल शक्ति मंत्रालय बना चुकी है फिर भी लोगों को
इसके कल्याण के लिए क्रमिक अनशन करना पड़ रहा है।
आज गंगा की स्थिति
काफी बदतर हो चुकी है। गंदगी का स्तर इतना बढ़ चुका है कि मानकों के अनुसार
'हर की पैड़ी' का पानी शुद्ध नहीं है। दिन रात खनन हो रहा है। लोग गंगा
किनारे घर बनाकर रहने लगे हैं और गंदा पानी से लेकर मल-मूत्र सब गंगा में
बहा रहे हैं। उत्तराखंड में गंगा को गंदा फैक्ट्री की गंदगी और होटल का
सीवेज कर रहे हैं। हालांकि सरकार ने सभी होटल को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट
लगाने को कहा है लेकिन सुनता कौन है। चल रहा है भगवान भरोसे। हरिद्वार जिले
में गिने चुने होटल और आश्रमों ने ही STP लगा रखा है। पूरा हरिद्वार घूमने
के बाद पता चलेगा कि हम सिर्फ गंदगी के ढेर पर रह रहे हैं। आज आधुनिकता की
होड़ में प्रकृति संपदा को क्षीण कर रहे हैं।
कभी सोचा है हम आने
वाली पीढ़ी के लिए क्या छोड़कर जाएंगे। ये गंदगी, ये दूषित जल! वैसे भी
उत्तराखंड राज्य की विडंबना रही है कि वो इन 4 मुद्दों (जल, जंगल, जमीन और
जवानी) पर जूझती रही है। अभी भी समय है सचेत हो सकते हैं वर्ना आने वाले
कुछ वर्षों में हम दिल्ली के यमुना की तरह गंगा को भी देखने लगेंगे और
जिम्मेदार हम और आप होंगे।
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