कुंभ कथा-1: कुंभ और काले घोड़े की नाल

हरिद्वार पहुंचने के बाद श्रद्धालुओं का सबसे पहला उद्देश्य हरकी पैड़ी पर गंगा स्नान होता है। हालांकि 2016 के अर्द्धकुंभ और 2021 के कुंभ मेले में हरिद्वार शहर में गंगा किनारे अनेक नए घाट बनाए गए हैं। लेकिन इन पर ज्यादातर स्थानीय लोग ही स्नान करते हैं बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की पहली पसंद हरकी पैड़ी होती है। अगर किसी प्रशासनिक बंधन के चलते हरकी पैड़ी तक पहुंचने में बाधा आती है,तभी बाहर से आने वाले श्रद्धालु अन्य गंगा घाटों पर स्नान करते हैं। हरकी पैड़ी पर गंगा स्नान के बाद यात्री आसपास के बाजारों में खरीदारी करते हैं। हरकी पैड़ी के आसपास के बाजारों में पूजा पाठ का सामान, रत्न और नग आदि की खूब बिक्री होती है।

कुंभ की रिपोर्टिंग के सिलसिले में हरकी पैड़ी के आसपास के बाजार में घूम रहा था। इस बीच कई व्यापारियों से बात हुई। जिज्ञासावश पूछा कि इस बार कुंभ में आने वाले श्रद्धालु किस चीज की ज्यादा डिमांड ज्यादा कर रहे हैं। जानकार आश्चर्य हुआ कि अन्य दिनों की अपेक्षा इस बार बाहर से आने वाले श्रद्धालु काले घोड़े की नाल और उससे बने छल्लों के बारे में कुछ ज्यादा पूछ रहे हैं।

सूचना विभाग के सहायक निदेशक और कुंभ मेले के नोडल अधिकारी मनोज श्रीवास्तव ने भी बताया कि हरिद्वार कुंभ में काले घोड़े की नाल की खूब डिमांड है। देश भर से आए अनेक श्रद्धालु बाजार में जाकर काले घोड़े की नाल के बारे में पूछ रहे हैं। मोटे तौर पर व्यापारियों से बात कर यह अनुमान तो लग गया था कि काले घोड़े की नाल का उपयोग लोग ग्रहों की शांति के लिए करते हैं। लेकिन इसके बारे में अधिक जानने की जिज्ञासा हुई तो ज्योतिष का ज्ञान रखने वाले मित्र गवाक्ष जोशी को फोन मिलाया। पहला सवाल यही किया कि लोग काले घोड़े की नाल का क्या करते हैं। इस सवाल से गवाक्ष जोशी अचानक चौक पड़े, क्योंकि गवाक्ष जानते हैं कि मैं इस तरह के कर्मकांडों में नहीं पड़ता हूं। मेरा धर्म,अध्यात्म और ज्योतिष पर विश्वास है लेकिन उसके नाम पर ढोंग से बिल्कुल दूर रहता हूं। गवाक्ष जोशी के मन में उठे सवालों का जवाब मैंने खुद दिया और कहा कि अखबार में खबर लिखने जा रहा हूं और उसी संदर्भ में घोड़े की नाल को लेकर जो जिज्ञासा मन में है, उनका समाधान चाहता हूं। उन्होंने बताया कि काले घोड़े की नाल का इस्तेमाल लोग शनि ग्रह की दशा को शांत करने के लिए करते हैं।

कुछ लोग काले घोड़े की नाल का धारण करना समृद्धि का प्रतीक मानते हैं। शनि की दशा, महादशा, साढ़े सती हो या शनि देव की ढईया, ये शनि ग्रह की वो दशाएं हैं जो माना जाता है कि हर इंसान के जीवन काल में जरूर आती हैं। कुछ लोगों के लिए ये कष्टकारी भी होती हैं। कुछ ज्योतिषी शनि की इन दशाओं से राहत पाने के लिए काले घोड़े की नाल का बना छल्ला पहनने की सलाह देते हैं।
इसी बीच उन्होंने कहा कि इस विषय पर ज्यादा जानकारी उनके गुरु जी देंगे। उनके गुरु जी से पहली बार बात कर रहा था। पूछा कि उनके गुरु जी क्या कोई ज्योतिषी है। उन्होंने कहा नहीं, मेरे गुरु जी योगी हैं और इस वक्त में उनके ही पास हूं। इतना कहकर उन्होंने फोन योगी विपिन कुमार को दे दिया।

योगी विपिन कुमार ने बताया कि नाल घोड़े के पैर में होती है और घोड़े के पैर हमेशा चलते रहते हैं। शनि को स्थिर ग्रह माना गया है। ऐसे में घोड़े की नाल से बना छल्ला आदि पहनाने का तात्पर्य ही होता है कि शनि की जो दशा व्यक्ति के लिए कष्टकारी है,वह तेज गति से गुजर जाए।कुछ लोग घोड़े की नाल को घर के प्रवेश द्वार पर भी टांगते हैं। उन्होंने कहा कि घोड़े की पूरी नाल को घर के द्वार पर टांगने से ज्यादा लोग इसका इस से बना हुआ छल्ला पहनना पसंद करते हैं और छल्ला पहनने से ही लोगों को ज्यादा लाभ मिलता देखा गया है।

इसे बेचने वाले व्यापारी तो घोड़े की नाल के और भी कई फायदे गिनाते हैं। व्यापारियों का कहना है कि इससे घर में मौजूद नकारात्मकता दूर होती है और अनुकूल माहौल बनता है। वास्तु दोष भी दूर होता है। इसके साथ ही घर के बाहर घोड़े की नाल लगाने से घर नजर से भी बचा रहता है। व्यापारी इसका आर्थिक लाभ बताते हैं और कहते हैं कि इसे लगाने से आर्थिक समस्याएं दूर हो जाती हैं। जादू टोना और तंत्र मंत्र से मुक्ति के लिए भी घोड़े की नाल का प्रयोग कुछ लोग करते हैं।

कई पाठकों के मन में यह सवाल आ सकता है कि घोड़े की नाल होती क्या होती है। दरअसल घोड़े को पक्की सड़क पर दौड़ना पड़ता है और दौड़ने के इस क्रम में नीचे से उसके खुर (पैर का निचले वाला हिस्सा) छिल जाते हैं। जिससे उसके खुर दुखने लगते हैं और उसे चलने में दिक्कत होने लगती है।घोड़े के पैरों के तलवों में अंग्रेजी के अक्षर यू के सेफ का एक सोल ठोक दिया जाता है, ताकि घोड़ा जब सड़क पर चलता है तो उसके पैर सीधे सड़क के संपर्क में नहीं आते। लोहे का यह कवच उसके पैरों की रक्षा करता है लोहे के इसी कवच को नाल कहा जाता है।

बाजार में जाकर पूछा तो पता चला कि काले घोड़े की नाल से बने छल्ले 20 से 50 रुपए में मिल रहे हैं। अगर किसी को काले घोड़े की पूरी नाल खरीदनी है तो उसकी कीमत 400 -500 रुपए तक है। दुकानदारों ने बताया कि बाजार में अधिकतर लोग घोड़े की नाल से बने छल्ले खरीदने के लिए ही आते हैं।पूरी नाल खरीदने वाले ग्राहकों की संख्या काफी कम होती है। केवल बाजार ही नहीं अमेजॉन जैसी ऑन लाइन दुकानों पर भी घोड़े की नाल और उससे बने छल्ले खूब मिल रहे हैं।

यहां यह भी जानना जरूरी है कि काले घोड़े की नाल और उससे बने छल्लो में असली नकली का चक्कर भी है। काले घोड़े की नाल बताकर बाजार में नकली माल भी खूब बेचा जाता है। मेरे मन में सवाल उठा कि जो नाल हमें बेची जा रही है, क्या गारंटी है कि वो काले घोड़े के पैर में रही होगी। क्या पता वो किसी और रंग के घोड़े के पैर में रही हो।ये भी हो सकता है कि वो कभी किसी घोड़े के पैर में रही ही ना हो। यह सवाल कई लोगों के सामने उठाया। बाद में यही निष्कर्ष निकला कि काले घोड़े की नाल या उससे बना छल्ला आदि खरीदने है आपके पास विश्वास करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।इसमें टेस्टिंग की कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है,जिससे असली नकली के अंतर का पता चल सके।

कुंभ में काले घोड़े की नाल की खूब डिमांड, शनि ग्रह शांत करने को खरीद रहे श्रद्धालु.. शीर्षक से पंजाब केसरी के लिए स्टोरी की। उसके बाद कई मित्र पाठकों के फोन आए। उत्तराखंड के राज्यपाल के ओएसडी और मित्र देवेंद्र प्रधान का फोन आया कि अगर आपको काले घोड़े की असली नाल की जरूरत पड़ेगी तो बताइएगा देवेंद्र प्रधान के पास अच्छी नस्ल का काला घोड़ा है। कई बार उन्हें इस घोड़े की सवारी करते देखा।हालांकि काले घोड़े की नाल को लेकर पूरी खोजबीन अपनी खबर पूरी करने को लेकर थी। डिजिटल माध्यम पर स्टोरी पढ़ने के बाद मेरठ से पत्रकार पारुल भाटी का मैसेज आया कि यह मुझे भी दिलवा दीजिए। मैंने जवाब दिया कि काले घोड़े की नाल के बने छल्ले मेरठ में भी मिल जाएंगे। उन्होंने पूछा कि क्या इसका वास्तव में कुछ प्रभाव होता है। जवाब दिया कि मैंने कभी इसका प्रयोग नहीं किया।इसके बाद पारुल का सधा हुआ जवाब आया कि उन्हें लगता है, ईश्वर और ग्रहों को अपनी साधना से ही प्रसन्न किया जा सकता है। उनकी बात से सहमत नहीं होने का कोई कारण नहीं था।

- योगेश योगी (लेखक वर्तमान में पंजाब केसरी में कार्यरत हैं)

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