कुंभ कथा-3: बेटी की उम्र और कुंभ का अंतराल

बेटी व्याख्या का जन्म वर्ष 2010 में हुआ था। उस वर्ष हरिद्वार में कुंभ मेला लगा था। 2021 में कुंभ मेला आया तो बेटी 11 साल की हो चुकी है। बेटी ने कुंभ मेले के बारे में पूछा तो मैंने बताया कि हरिद्वार में  हर 12 साल बाद कुंभ पर्व आता है।इस पर बेटी ने सवाल किया कि जब  कुंभ वर्ष में उसका जन्म हुआ था तो इस कुंभ में वह 12 साल की क्यों नहीं है? मैंने बेटी को बताया कि इस बार कुंभ 11 साल में पड़ रहा है।इस पर बेटी ने कारण पूछा। दरअसल यह केवल मेरी बेटी का सवाल नहीं है बल्कि बहुत सारे लोग हैं जो 11 साल बाद कुंभ पर्व आने का कारण जानना चाहते हैं।  कुछ लोगों को छोड़ दें तो अधिकतर लोग निर्धारित अवधि से एक साल पहले कुंभ पर्व आने पर आश्चर्य जताते हैं। आइए इस एक साल के अंतर को समझते हैं।


कुंभ पर्व का योग वैसे तो प्रत्येक 12 साल बाद बनता है मगर इस बार यह ग्रह योग 11 साल बाद बना है। कुंभ  गुरु बृहस्पति की गति पर निर्भर करता है जोकि कुंभ के बाद12 राशियों के ऊपर से गुजरते हुए 12वें साल में पुनः कुम्भ राशि मे प्रवेश करते हैं। इसका सीधा सा अर्थ है कि गुरु लगभग 1 वर्ष तक एक राशि मे रहते हैं और वापस उसी राशि मे आने के लिए उन्हें 11 साल 87 दिन का समय लग जाता है।


हरिद्वार के ज्योतिषी डॉ  प्रतीक मिश्रपुरी के मुताबिक़ हर ग्रह का पूरा राशि चक्र घूमने का अलग अलग समयकाल होता है। इसी तरह  देव गुरु बृहस्पति को कुंभ राशि से कुंभ राशि मे वापस लौटने में 4333 दिन लगते है।  यह देवगुरु बृहस्पति की गति है,जिसके अनुसार कुम्भ पर्वों के काल का निर्णय होता है। इस हिसाब से प्रत्येक सात कुंभ  के बाद कुंभ 83 वर्षों में आ जाता है। जबकि 12 वर्षों के गणित के लिहाज़ से 84 वर्ष बाद आना चाहिए था।यानी हर सात कुंभ के बाद कुम्भ का समय काल 12 वर्ष के बजाय 1 वर्ष कम हो जाता है।यह घटकर 11 साल रह जाता है। हर सात कुंभ बाद जो कुंभ आता है वह 12 के बजाय देवगुरु बृहस्पति की ग्रह चाल के अनुसार 11 साल बाद आता है। इससे पहले इस तरह का ग्रहयोग साल 1938 में बना था और उससे पहले 1855 यह ग्रह योग बना था।


इस कुंभ के बाद जो सातवां कुंभ आएगा, वह फिर से एक साल पहले आ जाएगा। यानी 84 के बजाय 83 साल बाद कुंभ होगा और छठे तथा सातवें कुंभ के बीच अंतर 12 के बजाय 11 साल का होगा। इस बार हरिद्वार कुंभ पर पहले दिन से ही कोरोना का साया मंडराता रहा है।इसलिए पहले कुंभ की तैयारियां करने में विलंब हुआ और बाद में सरकार की ओर से कुंभ का नोटिफिकेशन भी करीब 3 महीने देर से किया गया। आमतौर पर हरिद्वार में जब भी कुंभ होता है तो उसका श्री गणेश जनवरी महीने से हो जाता है। हरिद्वार कुंभ करीब 4 महीने यानी अप्रैल तक चलता था लेकिन 2021 में सरकार ने कुंभ का नोटिफिकेशन 1 अप्रैल से 30 अप्रैल तक के लिए किया। यानी 4 महीने का मेला केवल 1 महीने में सिमट कर रह गया। परिस्थितियां ऐसी ही थी। सरकार के सामने पहली प्राथमिकता  जीवन बचाने की थी और उसी के दृष्टिगत कुंभ को सीमित करने का निर्णय लिया गया था। सरकार ने भले ही 1 अप्रैल से 30 अप्रैल तक के लिए कुंभ का नोटिफिकेशन किया था लेकिन क्या वास्तव में कुंभकाल यही था या फिर कुंभ काल जनवरी से लेकर अप्रैल तक होता है। सवाल है कि कुंभ काल का निर्धारण होता कैसे है?


2021 के हरिद्वार कुंभ की बात करें तो 13-14 अप्रैल की रात से भगवान भास्कर (सूर्य) मेष राशि में आ गए थे, जबकि बृहस्पति पहले से ही कुम्भ राशि में थे। ग्रहों और राशियों के इस संयोग से हरिद्वार में कुंभ का योग बना। हरिद्वार में कुंभ का मुख्य स्नान 14 अप्रैल को हुआ। इस दिन अखाड़ों की ओर से हरकी पैड़ी पर शाही स्नान भी किया गया। यानी सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में हों तब हरिद्वार में कुंभ का योग बनता है। ज्योतिषाचार्य डॉ प्रदीप जोशी का कहना है कि कुंभकाल ग्रह योग के हिसाब से ही निर्धारित होता है।


सूर्य के मेष राशि में आ जाने के चलते ही 14 अप्रैल के स्नान की विशेष महत्ता मानी गई। सरकार ने भले ही एक अप्रैल से कुंभ का नोटिफिकेशन कर दिया था लेकिन हरिद्वार में कुंभ का योग 13 -14 अप्रैल की रात को जाकर बना।  जहां पहले यह चर्चा हो रही थी कि सरकार कुंभ का नोटिफिकेशन करने में देर कर रही है, ज्योतिषीय लिहाज से देखा जाए तो सरकार ने कुंभ का नोटिफिकेशन करने में देर नहीं की। बल्कि 13 दिन पहले ही नोटिफिकेशन कर दिया था। इसमें यह तथ्य जोड़ना भी जरूरी है कि सरकार ने 30 अप्रैल को कुंभ का समापन कर दिया जबकि कुंभ काल इसके बाद मई महीने में भी बना हुआ था।

 
इस बार कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते कुंभ की तैयारियों में बाधा आ रही थी। दिसंबर 2020 आते-आते लगने लगा था कि इस बार कुंभ सामान्य परिस्थिति में नहीं हो पाएगा। सरकार की ओर से भी स्पष्ट कर दिया गया था कि कुंभ का आयोजन किया जाएगा लेकिन उसका स्वरूप कैसा रहेगा इस को लेकर सरकार की ओर से भी स्पष्ट नहीं किया गया था। सरकार ने कह दिया था कि फरवरी 2021 में जाकर कुंभ के स्वरूप को लेकर कुछ कहा जा सकता है। उस समय कोरोना के जो हालात होंगे उसी आधार पर आगे का निर्णय लिया जाएगा। तब एक आवाज यह उठी थी कि कुंभ को 2021 के बजाय 2022 में किया जाए, चूंकि आम तौर पर कुंभ 12 साल बाद होता है। हरिद्वार में 2010 में कुंभ हुआ था इसलिए 12 साल बाद की अवधि के लिहाज से 2022 में पड़ रहा था।

यह बात अलग है कि ज्योतिषीय गणना के चलते इस बार कुंभ एक साल पहले हो गया।  कई लोगों का कहना था कि कोरोना के चलते 2021 में कुंभ कराना वैसे भी चुनौतीपूर्ण हो रहा है। ऐसे में 2022 में शिफ्ट जाना चाहिए।लोगों का मानना था कि शायद तब तक स्थितियां कुछ बेहतर हो जाए और देश में अधिकतर लोगों का वैक्सीनेशन हो चुका होगा।इसके अलावा सरकार भी स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर पहले से बेहतर स्थिति में खड़ी होगी। कुंभ को 2022 में शिफ्ट करने की आवाज एक कोने से उठी जरूर थी लेकिन इस आवाज को बहुमत नहीं मिल पाया। यही कारण है कि कुंभ मेला निर्धारित समय 2021 में संपन्न कराया गया। हरिद्वार में जिस तरह से कोरोना की विपरीत परिस्थितियों में कुंभ मेला संपन्न कराया गया,उसके बाद तो अधिकतर लोग कहने लगे अच्छा होता कुंभ 2022 में ही कराया जाता।

- योगेश योगी (लेखक वर्तमान में पंजाब केसरी में कार्यरत हैं)

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