कुंभ कथा -4 :एक फोन कॉल और कुंभ मेले का विसर्जन

हरिद्वार में कुंभ एक अप्रैल से शुरू हुआ था। 16 अप्रैल आते आते हरिद्वार में कोरोना का कहर दिखना शुरू हो गया था।हर रोज कोरोना के 500- 600 या इससे भी अधिक पॉजिटिव मामले सामने आने लगे। हालांकि इसके पीछे कुंभ के चलते हरिद्वार में टेस्टिंग बढ़ाया जाना एक बड़ी वजह रही। ज्यादा टेस्टिंग हुई तो कोरोना के पॉजिटिव केस भी ज्यादा आने लगे। बहरहाल पूरे देश में यह बात फैल गई कि हरिद्वार कुंभ कोरोना का बड़ा संवाहक बन रहा है। राजनेताओं ने हरिद्वार कुंभ में कोरोना के संक्रमण फैलने को लेकर विवादित बयान दिए तो सोशल मीडिया पर भी कुंभ और कोरोना को लेकर चटकारे लिए जाने लगे। हरिद्वार से लौटने वाले लोगों को कोरोना के संभावित संवाहक के तौर पर देखे जाने लगा। सोशल मीडिया पर तो एक मैसेज खूब वायरल हुआ जिसमें कहा गया कि हरिद्वार से लौटे लोगों से दूरी बनाकर रखें, नहीं तो लोटे(अस्थियां) में हरिद्वार जाना पड़ेगा।

संतों के बीच से भी कुंभ मेले को समय से पहले संपन्न किए जाने की बात उठने लगी थी। लेकिन अखाड़ों का एक धड़ा इसका प्रबल विरोध कर रहा था। श्री निरंजनी और आनंद अखाड़े ने 15 अप्रैल को घोषणा कर दी थी कि उनकी ओर से कुंभ का समापन 17 अप्रैल को कर दिया जाएगा। श्री निरंजनी और श्री आनंद सन्यासियों के अखाड़े हैं। उनकी इस घोषणा पर बैरागी अखाड़े भड़क उठे थे। बैरागी अखाड़ों ने श्री निरंजनी अखाड़े के इस बयान पर माफी मांगे जाने की मांग तक कर दी और माफी नहीं मांगे जाने पर उनसे सारे संबंध तोड़ने की चेतावनी दी। बैरागी अखाड़ों के रुख को देखते हुए उत्तराखंड सरकार अथवा मेला प्रशासन इस स्थिति में नहीं था कि संतों से कुंभ मेले को समय से पहले खत्म किए जाने अथवा केवल सांकेतिक रखे जाने की बात कर सके। ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहल की। 17 अप्रैल की सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज को फोन किया। उन्होंने कहा कि दो शाही स्नान सम्पन्न हो चुके हैं। कोरोना को देखते हुए अब कुम्भ की प्रतीकात्मक ही रखा जाए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज से फोन पर संतों का हालचाल भी पूछा। उन्होंने कहा कि कुंभ को प्रतीकात्मक करने से संकट की घड़ी में लड़ाई को ताक़त मिलेगी। जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज ने कुम्भ को प्रतीकात्मक रखने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील का समर्थन तो किया लेकिन वे भी बैरागी अखाड़ों से कोई विवाद मोल लेना नहीं चाहते थे। इसलिए उन्होंने कह दिया कि 27 अप्रैल को अंतिम शाही स्नान केवल बैरागी अखाड़े स्नान करेंगे।अन्य अखाड़े इसमें प्रतीकात्मक रूप से शामिल होंगे। हालांकि इसमें नया कुछ भी नहीं था। अन्य सालों में भी आखिरी शाही स्नान बैरागी अखाड़े ही करते आए हैं और अन्य अखाड़े उसमें प्रतीकात्मक रूप से ही शामिल होते रहे हैं। यही परंपरा भी रही है। कुंभ मेले को प्रतीकात्मक रूप से संपन्न कराने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील को बैरागी संतों ने नकार दिया और कहा कि कुंभ प्रतीकात्मक नहीं प्रत्यक्ष होगा।

बैरागी कैंप स्थित अखिल भारतीय श्रीपंच निर्वाणी अनी अखाड़े में श्रीमहंत धर्मदास महाराज ने पत्रकारों से बातचीत में साफ कहा कि कहा कि कुंभ मेला प्रतीकात्मक रूप से नहीं प्रत्यक्ष रूप से किया जाएगा। कुंभ मेले में देवता वास करते है।हमारे इष्ट देव मौजूद रहते हैं और सभी साधु संत प्रत्यक्ष रूप से स्नान करते हैं। इसलिए मेला प्रत्यक्ष रूप से ही किया जाएगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बताएं कि स्नान में प्रतीकात्मक क्या होता है।  अखिल भारतीय श्रीपंच निर्मोही अखाड़े के अध्यक्ष श्रीमहंत राजेंद्र दास महाराज ने भी श्रीमहंत धर्मदास के सुर में सुर मिलाए।  कहा कि सभी संत महापुरुष सरकार की गाइडलाइन का पालन करते हुए ही 27 अप्रैल का शाही स्नान भव्य एवं दिव्य रूप से करेंगे। उन्होंने कहा कि कुंभ मेले को लेकर कोई भ्रम नहीं है। मेला 30 अप्रैल तक विधिवत रूप से ही होगा।

शाही स्नान को लेकर बैरागी सतों के कड़ा रूख अपनाने के बाद  केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सक्रिय हुए। सरकार के संकट मोचक  के तौर पर उन्होंने अखिल भारतीय श्रीपंच निर्मोही अनी अखाड़े के अध्यक्ष श्रीमहंत राजेंद्रदास महाराज से फोन पर बात की। गृहमंत्री ने शेष बचे आखिरी शाही स्नान में कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए सरकार की गाइड लाईन का पालन करने की अपील की है। केंद्रीय गृहमंत्री की ओर से की गई इस पहल का असर हुआ। 17 अप्रैल को शाम होते-होते बैरागी अखाड़ों का गुस्सा शांत हुआ तथा उन्होंने कहा कि सरकार की गाइड लाईन का पालन किया जाएगा और परंपराओं का पालन करते हुए संत सीमित संख्या में ही आखिरी शाही स्नान करेंगे। बैरागी संतों के मान जाने के बाद शाम को जूना अखाड़े की आकस्मिक बैठक बुलाई गई। जिसमें सर्वसम्मति से कुंभ मेले के विसर्जन का निर्णय हुआ।

जूना अखाड़ा की ओर से कुम्भ मेले में समस्त देवी देवताओं जिनका आहवान किया था,उन सभी को विधिवत पूजा अर्चना कर विर्सजन कर दिया गया।  उत्तराखण्ड के सभी देवी, देवताओं, सिद्वपीठों व तीर्थों से प्रार्थना की गई कि कोरोना महामारी से पूरे विश्व को मुक्ति मिले। अखाड़े की ओर कहा गया कि देवी देवताओं के विसर्जन के साथ ही कुम्भ मेला 2021 विसर्जित कर दिया गया है।
श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े के बाद देर शाम श्रीपंच दशनाम अग्नि अखाड़ा तथा श्रीपंचदशनाम आह्वान अखाडा ने भी कुम्भ मेला विसर्जन की घोषणा कर दी। जूना अखाड़ा के साथ ही श्रीपंचदशनाम अग्नि एवं आह्वान अखाड़ा भी शाही स्नान करते हैं। ऐसे में जूना अखाड़ा की ओर से कुम्भ विसर्जन करने की घोषणा के बाद इन दोनों अखाड़ो ने भी कुम्भ विसर्जन की घोषणा कर दी। इससे पहले श्री निरंजनी और आनंद अखाड़े की ओर से कुंभ समापन की घोषणा की जा चुकी थी।

17 अप्रैल की रात तक 13 में से 5 अखाड़े कुंभ  विसर्जन की घोषणा कर चुके थे।यानी इन अखाड़ों ने अपनी ओर से कुंभ का समापन कर दिया था।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक फोन कॉल ने उत्तराखंड सरकार और कुंभ मेला प्रशासन का काम आसान कर दिया। अगले ही दिन यानी 18 अप्रैल से कुंभ मेले की छावनी  खाली होने लगी थी। अनेक संतों ने वापसी शुरू कर दी थी। इस पर बैरागी अखाड़ों ने कहा कि कुंभ मेले के दौरान ग्रह नक्षत्र और परंपराओं के साथ ही देवताओं को स्थापित और विसर्जित किया जाता है। असमय कुंभ का विसर्जन परंपराओं के विरुद्ध है। कुंभ समाप्ति की घोषणा करने वाले संत परंपराओं के साथ खिलवाड़ कर समाज में भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे हैं। मातृसदन के प्रमुख स्वामी शिवानंद सरस्वती महाराज तो पांच अखाड़ों की ओर से कुंभ विसर्जन किए जाने पर भड़क उठे थे। उन्होंने कहा था कि  कुंभ के लिए देवी देवताओं का आह्वान किया गया था। राक्षस कोरोना के आक्रमण से डर से उन्हें बीच में ही जाने के लिए कह दिया गया। देवता अपमानित होकर गए हैं।

कुंभ के लिए संकल्प लिया जाता है और संकल्प को बीच में तोड़ने का क्या परिणाम होता है, यह आने वाले समय में सब देखेंगे।
इस पूरे घटनाक्रम के बीच बैरागी अखाड़ों की ओर से तय किया गया  कि कुंभ मेला निर्धारित अवधि 30 अप्रैल तक चलेगा और बैरागी अखाड़ों की ओर से अंतिम शाही स्नान किया जाएगा। हालांकि कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए सीमित संख्या में संत स्नान में शामिल होंगे।

- योगेश योगी (लेखक वर्तमान में पंजाब केसरी में कार्यरत हैं)

Comments

Popular Posts

कोलकाता का ऐसा बाजार जहां नुमाइंदगी होती है जिस्म की

100 रेपिस्ट के इंटरव्यू ने लड़की की सोंच को बदल दिया

दान और दक्षिणा में क्या अंतर है ?