ग्राउंड रिपोर्ट: जश्न में बदला मातम, चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर मौत की चीखें
रिपोर्टर: बेंगलुरु से विशेष ग्राउंड रिपोर्ट
बेंगलुरु | 4 जून 2025 | शाम 6:00 बजे
बेंगलुरु के मशहूर एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम में जब आरसीबी के खिलाड़ियों को सम्मानित किया जा रहा था, तब स्टेडियम के अंदर जश्न की गूंज थी और बाहर चीख-पुकार का समंदर उमड़ा हुआ था. चारों तरफ भगदड़, टूटते बैरिकेड्स, गिरते हुए लोग, लाठीचार्ज, और जमीन पर बेसुध पड़े कई शव... ये तस्वीरें किसी आतंकी हमले की नहीं, बल्कि एक क्रिकेट टीम की जीत के सेलिब्रेशन की हैं.
लाशों के बीच बजता रहा डीजे
स्टेडियम के अंदर रौशनी, म्यूज़िक और तालियों की गूंज थी, लेकिन बाहर सन्नाटा और मातम. जब कार्यक्रम के अंदर 'आरसीबी! आरसीबी!' के नारे लग रहे थे, ठीक उसी वक्त गेट नंबर 18 और 12 के पास लोग चीख रहे थे, ‘बचाओ!’ ‘हटाओ मुझे!’ ‘साँस नहीं ले पा रहा!’ एक महिला की चीख गूंजती रही, लेकिन DJ का शोर उस आवाज़ को निगल गया. भगदड़ में गिर चुकी वो महिला बाद में अस्पताल में मृत घोषित हुई.
"हम तो बस अंदर जाना चाहते थे..."
स्टेडियम के गेट नंबर 6 के बाहर खड़े रामनाथ नाम के युवक ने रोते हुए कहा, “हम तो बस खिलाड़ियों को देखना चाहते थे. लेकिन भीड़ इतनी थी कि दम घुटने लगा. पुलिस ने लाठी चलाई और सब इधर-उधर भागने लगे. मेरे साथ आए दोस्त का अब तक कोई पता नहीं.”
गेट नंबर 6 पर चढ़ते समय एक युवक गिरा, उसका पैर टूट गया. लेकिन इससे भीड़ को कोई फर्क नहीं पड़ा. लोग उसके ऊपर से कूदते हुए अंदर घुसने की कोशिश कर रहे थे.
"हमने शवों को खुद खींचकर किनारे किया"
गेट नंबर 18 के पास चश्मदीद रही सोहिनी बैनर्जी, जो नर्स हैं, ने बताया कि पुलिस को कुछ समझ नहीं आ रहा था. “लोग एक-दूसरे को रौंद रहे थे. मैं खुद तीन शवों को खींचकर किनारे लाई. 20 मिनट तक कोई एंबुलेंस नहीं पहुंची. जो पहुंचे भी, वो भीड़ में फंस गए.”
3 लाख की भीड़, 35 हजार की जगह
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने माना है कि स्टेडियम की क्षमता 35 हजार है लेकिन 3 लाख लोग बाहर जमा हो गए थे. यह संख्या खुद सरकार की तरफ से जारी की गई है. सवाल यह है कि क्या सरकार को इसकी भनक नहीं थी? सोशल मीडिया पर आरसीबी के कार्यक्रम की जानकारी दो दिन पहले से फैल रही थी. बावजूद इसके ना कोई ट्रैफिक कंट्रोल था, ना ही स्टेडियम के बाहर मेडिकल या फायर रिस्पॉन्स यूनिट की व्यवस्था.
RCB के कप्तान और BCCI ने नहीं दी प्रतिक्रिया
कार्यक्रम के आयोजक कर्नाटक राज्य क्रिकेट संघ (KSCA) ने चुप्पी साध रखी है. RCB के कप्तान और खिलाड़ी भी घटना पर अब तक कोई सार्वजनिक बयान नहीं दे सके हैं. केवल एक ट्वीट में "गंभीर दुख" जताया गया है. लेकिन सवाल ये है कि जब लोगों की जान जा रही थी, तो क्या कार्यक्रम को तुरंत रोका नहीं जा सकता था?
अस्पतालों में चीखें, बाहर सन्नाटा
शिवाजीनगर के बॉरिंग अस्पताल के बाहर एक पिता अपने बेटे की तस्वीर हाथ में लिए फूट-फूटकर रो रहे थे. "उसने मुझसे कहा था, ‘पापा मैं विराट कोहली को एक बार लाइव देखना चाहता हूं।’ और आज मेरी गोद में उसकी लाश है.”
वहीं वैदेही सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में डॉक्टरों ने पुष्टि की है कि 4 लोगों की जान अस्पताल पहुंचने से पहले ही चली गई थी. अस्पतालों के बाहर ऐसे कई परिवार हैं, जिनका कोई अब भी लापता है.
सरकार बचाव में, विपक्ष हमलावर
मुख्यमंत्री ने घटना पर दुख जताया है. ₹10 लाख मुआवज़ा और मजिस्ट्रेट जांच की घोषणा की गई है. लेकिन विपक्ष इसे सरकारी लापरवाही से जोड़ रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने साफ कहा, “यह एक सुनियोजित आयोजन नहीं था. सरकार को पूरी जिम्मेदारी लेनी चाहिए.”
भीड़ को बुलाया, कंट्रोल करना भूल गए
विश्लेषकों का मानना है कि सरकार ने लोगों को कार्यक्रम में आने के लिए प्रोत्साहित तो किया, लेकिन सुरक्षा, भीड़ नियंत्रण और आपात प्रबंधन की तैयारी ज़ीरो थी. कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई थी. नतीजा ये रहा कि एक जश्न इतिहास के सबसे दर्दनाक हादसों में तब्दील हो गया.
नतीजे से पहले सवाल
इस हादसे के बाद एक ही सवाल बेंगलुरु की हर गली में गूंज रहा है – क्या एक जीत का जश्न इतना जरूरी था कि उसमें 11 ज़िंदगियाँ खत्म कर दी जाएं? क्या आयोजन को इतने बड़े पैमाने पर किए जाने से पहले सुरक्षा के इंतज़ाम नहीं होने चाहिए थे?
शहर में अब जश्न नहीं, ग़ुस्सा है. और ये ग़ुस्सा उन सवालों से पैदा हो रहा है, जिनका जवाब न तो सरकार दे पा रही है, न आयोजक और न ही वो क्रिकेट टीम जिसके नाम पर ये जानलेवा भीड़ जुटाई गई थी.
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